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''हम रोज बम, सायरन की आवाज सुनते हैं, लेकिन यूक्रेन से वापस भारत नहीं जा सकते''

Russia Ukraine war: कुछ भारतीय छात्र युद्ध के बावजूद पढ़ाई करने यूक्रेन लौट गए हैं. उनके परिवार चिंतित हैं.

आशना भूटानी
शिक्षा
Published:
<div class="paragraphs"><p>जंग के बीच, कीव में भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों को 19 अक्टूबर को देश लौटने के लिए कहा.</p></div>
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जंग के बीच, कीव में भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों को 19 अक्टूबर को देश लौटने के लिए कहा.

(नमिता चौहान/द क्विंट)

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हम इस बात की गिनती अब भूल चुके हैं कि हम हर दिन कितने बम और सायरन की आवाज सुनते हैं. लेकिन हम फिर भी भारत वापस नहीं जा सकते हैं. भारत में भी हमारा भविष्य सुरक्षित नहीं है. फरवरी में जब हम घर लौटे तो काफी उम्मीद थी. लेकिन अब हमारे पास कुछ नहीं बचा है. हमें अपना कोर्स यहीं खत्म करना है क्योंकि और कोई विकल्प नहीं है”.

युद्धग्रस्त यूक्रेन के सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे 23 साल के भारतीय मेडिकल छात्र शेख अबरार ने फोन पर ये बातें कहीं. फिर से बढ़ रही लड़ाई के बीच यूक्रेन की कीव स्थित भारतीय दूतावास ने एडवायजरी जारी कर 19 अक्टूबर को उन्हें वतन वापस आने को कहा. सभी भारतीय छात्रों को किसी भी तरह यूक्रेन छोड़कर भारत लौटने की सलाह दी गई. पहले की एडवाइजरी से पहले ही कुछ छात्र यूक्रेन छोड़ चुके हैं.

इस साल फरवरी में जब से रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ा है, तब से लगभग 18,000 भारतीय छात्रों का जीवन और भविष्य किसी धागे की तरह हवा में लटका हुआ है. कई छात्र पहले ही सूचना मिलने के बाद यूक्रेन से निकल गए. हालांकि, पिछले दो महीनों में, कई लोग अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए वापस यूक्रेन गए. और कुछ अभी भी भारत में हैं, लौटने के लिए सही समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

दो दिन पहले, एक ताजा एडवाइजरी ने इन छात्रों और उनके माता-पिता को फिर से चिंता में डाल दिया है. कई मेडिकल छात्रों ने द क्विंट (The Quint) को बताया कि भारत लौटना कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उनको निजी तौर पर उपस्थित होकर प्रैक्टिकल क्लास को पूरा करना है, इसे किए बिना उनकी डिग्री अधूरी रहेगी.

साल 2022 की शुरुआत में यूक्रेन से छात्र क्यों भागे?

जब युद्ध छिड़ा तो, द क्विंट ने रिपोर्ट किया था कि यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को उनके छात्रावास के अधिकारियों ने बंकरों में छिपने के लिए कहा था. उस समय छात्रों के पास भोजन और पैसे भी नहीं बचे थे और इधर घर पर माता-पिता चिंतित थे क्योंकि उनका संपर्क अपने बच्चों से हो नहीं रहा था. कई छात्रों ने अपने हॉस्टल और बंकरों में खुद के वीडियो रिकॉर्ड किए, जिसमें उन्होंने अपनी आपबीती बताई और रोते हुए मदद की गुहार लगाई.  

राहत बचाव प्रक्रिया के दौरान हंगरी और पोलैंड की सीमाओं तक पहुंचने में इन छात्रों को भारी दिक्कत हो रही थी. सूमी (Sumy) के छात्रों को सीमाओं पर जाने के लिए संघर्ष करना पड़ा क्योंकि निकटतम सीमा 60 k.m. दूर थी और उस समय बर्फ गिर रही थी. कड़ाके की ठंड में कई छात्र 50 k.m. से अधिक पैदल चलकर नजदीकी सीमा तक पहुंचे. 

उन्हीं छात्रों ने कहा कि, उन्होंने बेहतर भविष्य के लिए यूक्रेन के विश्वविद्यालयों में प्रवेश लिया था "क्योंकि भारत सरकार के मेडिकल कॉलेजों में सीटें सीमित हैं" और "निजी कॉलेज अफोर्डेबल नहीं हैं."

'यूक्रेन से जुड़ी खबरों पर नजर रखना भयावह ': छात्रों के परिवार 

जब ये छात्र भारत लौटे, तो फिर ये अनिश्चितता बढ़ गई कि क्या वे अपना पाठ्यक्रम पूरा कर पाएंगे या नहीं ?  

उन्होंने सोचा कि क्या उनकी डिग्री ऑनलाइन कक्षाओं के साथ मान्य मानी जाएगी.

शेख अबरार के प्रैक्टिकल्स चल रहे हैं, उन्होंने गुरुवार को द क्विंट को बताया, "मुझे कक्षाओं के लिए शारीरिक रूप से उपस्थित रहना होगा ताकि मेरे पाठ्यक्रम को राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (एनएमसी) से मान्यता मिल सके. " 

उनके पिता सज्जाद अबरार जो कश्मीर में रहते हैं, उन्होंने द क्विंट से अपनी चिंताएं, तकलीफ और डर साझा किया. वो कहते हैं,  “यह हमें हर दिन पीड़ा देता है. हम बेहद चिंतित हैं. मैं चाहता हूं कि वह लौट आए लेकिन मेरा बेटा कहता है कि उसे यूक्रेन में रहने की जरूरत है क्योंकि यहां उसके लिए कोई विकल्प नहीं है. हम खबरें देखते रहते हैं और यह भयावह है. हम उससे रोज बात करते हैं..इसके सिवाय हम और क्या ही कर सकते हैं?

उन्होंने कहा कि इस समय अपने बेटे को दूसरे देश में ले जाना उनके वश का नहीं है. अबरार यूक्रेन के विश्वविद्यालय में पांचवें वर्ष की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं.

कक्षा में छात्र

(फोटो: दीपक कुमार, एमबीबीएस)

NMC रेगुलेशन पर भारत में अनिश्चितता  

शिवम चावरिया, जो यूक्रेन के इवानो में इवानो-फ्रैंकिव्स्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में दूसरे साल के छात्र हैं, अभी युद्ध की वजह से भारत में हैं. उन्होंने द क्विंट से कहा, 'हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. हमें वापस जाना ही होगा, अन्यथा जब हम FMGIE यानि फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएशन एग्जामिनेशन के लिए जाएंगे तो हमारी डिग्री मान्य नहीं मानी जाएगी. मैंने अगले साल की शुरुआत में यूक्रेन वापस जाने की योजना बनाई थी. मैं सरकार की सलाह का इंतजार कर रहा था.”

जुलाई में, केंद्र ने लोकसभा को बताया कि NMC को भारतीय कॉलेजों में विदेशी मेडिकल छात्रों को स्थानांतरित करने या समायोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इसका मतलब यह है कि विदेशी मेडिकल छात्रों को भारत में एनएमसी से मान्यता प्राप्त करने के लिए उसी कॉलेज से प्रशिक्षण और इंटर्नशिप सहित अपने पाठ्यक्रम की पूरी अवधि पूरी करनी होगी. छात्र सैद्धांतिक विषयों की ऑनलाइन कक्षाओं में तब तक भाग ले सकते हैं जब वो ऑफलाइन प्रैक्टिकल्स और क्लीनिकल ट्रेनिंग करते रहते हैं.

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सितंबर में, एनएमसी ने यूक्रेन में विश्वविद्यालयों में नामांकित लोगों के लिए अकेडमिक मोबिलिटी प्रोग्राम को मंजूरी दी. हालांकि, यह सभी के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि ये काफी महंगा होगा.

इसलिए, सभी बैचों के छात्र अनिश्चित हैं. पहले तीन वर्षों में वे अनिश्चित हैं कि उन्हें यूक्रेन में होना चाहिए या भारत में और जो अपने चौथे और पांचवें वर्ष में हैं , वो अपने प्रैक्टिकल्स के पूरा होने को लेकर आशंकित हैं क्योंकि ये यूक्रेन में ही पूरे होंगे. 

चावरिया ने कहा, “हमारी कक्षाएं ऑनलाइन हैं लेकिन यह शारीरिक रूप से वहां होने के समान नहीं है. हमारे शरीर रचना विज्ञान यानि अनाटॉमी की क्लास के दौरान, हमें एक स्क्रीन पर हड्डियों को दिखाया जाता है ... हमें आखिर जाना ही होगा, या कुछ और जुगाड़ करना पड़ेगा. पैसे रिफंड मिलना संभव नहीं है और दूसरी जगह ट्रांसफर लेना बहुत महंगा है.

सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले शेख अबरार कहते हैं,

"हमने सोचा था कि हमें अपने देश में इंटर्नशिप मिल जाएगी पर ऐसा हुआ नहीं.  इसलिए मैं 12 सितंबर को यूक्रेन लौट गया. हालात तब से बहुत संकट भरे हैं. बिजली और पानी सप्लाई कभी भी रुक जाती है. लेकिन हम किसी तरह अपनी पढ़ाई कर पाते हैं."

अब हमें आदत हो गई है. हम युद्ध से नहीं डरते, हम भारतीय शिक्षा प्रणाली से डरते हैं. भारत में छात्र उदास हैं क्योंकि उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है.

युद्ध से पहले कक्षा में छात्र

(फोटो: छात्रों द्वारा साझा किया गया)

'अगर भारत में हमारे लिए कुछ किया गया होता तो हम यूक्रेन नहीं लौटते ': छात्र

यूक्रेन के ओडेसा नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पांचवें साल में पढ़ रहे यूपी के रायबरेली के शाहनवाज अंसारी 11 अक्टूबर को विश्वविद्यालय लौट आए. उन्होंने द क्विंट से कहा, “मेरे पास कोई विकल्प नहीं था, इसलिए मैं लौट आया. भले ही यह शहर युद्ध क्षेत्र में नहीं है लेकिन हम हर घंटे सायरन सुनते रहते हैं. यह डरावना है लेकिन भारत वापस जाना भी कोई विकल्प नहीं है. हालांकि ओडेसा अपेक्षाकृत सुरक्षित है लेकिन यह कभी कभी डरावना हो जाता है. ड्रोन, मिसाइल या बम गिरने पर एयर डिफेंस सिस्टम एक्टिव हो जाता है. इसलिए, हर कुछ घंटों में सायरन बंद हो जाते हैं.

इस बीच सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी में पांचवें साल की पढ़ाई कर रही एक छात्रा जो अपनी पहचान नहीं बताना चाहती. उन्होंने द क्विंट से कहा कि  “ हमारा सिर्फ दो महीने का कोर्स बचा हुआ है ..अगर भारत में हमारे लिए कोई इंतजाम किया गया होता तो शायद हम कभी वापस नहीं जाते. चूंकि हम उस बैच में हैं जो थोड़ी देर से शुरु हुआ था, इसलिए हम भारत में अपनी इंटर्नशिप करने के काबिल नहीं हैं.

23 साल की यह छात्रा जो फिलहाल अपने होमटाउन श्रीनगर में है और आने वाले महीनों में वापस यूक्रेन जाने की योजना बना रही हैं. इन छात्रों के लिए छठा वर्ष तब माना जाता है जब उन्हें अपनी इंटर्नशिप करनी होती है. कुछ पांचवें वर्ष के छात्रों के लिए भारत में इंटर्नशिप करने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन केवल तभी जब उन्होंने एक निश्चित अवधि तक ही ग्रैजुएशन किया हुआ हो. सभी पांचवें वर्ष के छात्र इसके पात्र नहीं थे.

उसकी मां ने कहा, "हम बहुत चिंतित हैं - छात्रों के लिए कोई कुछ भी नहीं कर रहा . हमने अपनी बेटी की कॉलेज की ट्यूशन फीस भरने के लिए कर्ज लिया था. अब, हम ट्रांसफर का खर्च नहीं उठा सकते क्योंकि इसके लिए तीन-चार लाख रुपये और लगेंगे”.  

उनका पति सरकारी कर्मचारी है और वो गृहिणी हैं. छात्रा की मां ने कहा, “हमें उम्मीद है कि छात्रों के लिए यहां अपना पाठ्यक्रम पूरा करने की व्यवस्था की जाएगी. हम यहां अतिरिक्त शुल्क पर आपत्ति नहीं करेंगे. "

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