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26/11 की घटना के एक दशक बाद कोस्टल सुरक्षा के लिए एक अहम कदम उठाया गया. केंद्र सरकार ने कोस्टल पुलिसिंग के लिए गुजरात में नेशनल अकादमी बनाने की योजना बनाई है. प्रस्तावित अकादमी उन सभी 9 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों की कोस्टल पुलिस फोर्स को ट्रेनिंग देगी, जहां समुद्री सीमा है.
मौजूदा समय में समुद्री सीमा वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास कोस्टल या समुद्र के अंदर सुरक्षा के लिए कोई स्थायी सिक्योरिटी पुलिस विंग का इंतजाम नहीं है. इन राज्यों में व्यवस्था कुछ ऐसी है कि कुछ समय तक समुद्री सीमा की देखरेख करने के बाद सुरक्षा जवान पुलिस की दूसरी ड्यूटी में लौट जाते हैं. इसका नतीजा ये होता है कि कोस्टल सिक्योरिटी की ड्यूटी में ये जो कुछ भी अनुभव हासिल करते हैं उसे वापस सामान्य ड्यूटी के दौरान खो देते हैं.
तमाम राज्य सरकारों के लिए कोस्टल सिक्योरिटी किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि ये सिर्फ विशुद्ध पुलिस का रोल नहीं, बल्कि मिलिट्री के काम से भी मिलता-जुलता होता है. और राज्य सरकारों के पास अब केवल ऐसी ही पुलिस फोर्स हैं, जो समुद्री सुरक्षा की विशेषज्ञता वाली नहीं, बल्कि सीमा के अंदर होने वाली सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों के लिहाज से सशक्त हैं. जब तक केंद्र सरकार सेंट्रेल मरीन पुलिस फोर्स (सीएमपीएफ) तैयार नहीं करती, तब तक ये अकादमी कोस्टल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस काम की ट्रेनिंग देगी. इसीलिए, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने जून 2016 में एक बैठक में प्रस्ताव रखा था, जिसके तहत सीएमपीएफ के गठन की बात कही गई थी, ताकि मुंबई में देश के कोस्टल सिक्योरिटी मैनेजमेंट की स्थिति को रिव्यू किया जा सके.
तमिलनाडु ने एलटीटीई के गंभीर खतरों को देखते हुए कोस्टल सिक्योरिटी को खास तवज्जो दिया है. 1994 में बनाए गए तमिलनाडु पुलिस कोस्टल सिक्योरिटी ग्रुप (सीएसजी) एक काफी प्रशिक्षित फोर्स है, जो कि राज्य की 1076 किलोमीटर समुद्री सीमा की रक्षा करती है. बाकी 8 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों के मरीन सिक्योरिटी फोर्स तमिलनाडु के सीएसजी से तुलना नहीं कर सकते.
भारतीय पुलिस फोर्स की पहली जिम्मेदारी वीआईपी सिक्योरिटी और राजनीतिक इंटेलिजेंस मानी जाती है. इसीलिए, राज्य पुलिस फोर्स से ये उम्मीद करना कि वे कोस्टल सिक्योरिटी मैनेजमेंट पर ध्यान देंगे, एक असंभव-सी उम्मीद है. ये एक तथ्य है कि देश की जनसंख्या के लिहाज से हमारे देश काफी कम पुलिस फोर्स है. यहां प्रति 761 लोगों के लिए पुलिस का सिर्फ एक व्यक्ति है. यानी एक लाख आबादी के लिए सिर्फ 131 पुलिस वाले. इसका नतीजा ये है कि समुद्री सीमा वाले इलाकों में प्रभावी कोस्टल सिक्योरिटी की व्यवस्था संभव नहीं है.
तमाम दूसरे देशों के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति पुलिस की संख्या काफी कम है. इंडियन ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के मुताबिक, अगर एक लाख की आबादी के लिए सिर्फ 176 पुलिस वाले हैं, तो इसका मतलब ये है कि एक पुलिस वाला 568 लोगों को अपनी सेवा दे रहा है.
इसके अलावा, राज्य की पुलिस फोर्स कोस्टल सिक्योरिटी में सक्षम नहीं है. और इसलिए देश की सिक्योरिटी में सीएमपीएफ की जरूरत काफी बढ़ जाती है. ये सुरक्षा बल राष्ट्रीय सुरक्षा में मौजूद महत्वपूर्ण खाई को भरने में सक्षम होगा.
महत्वपूर्ण ये है कि फिशिंग बोट्स में जमीन पर मौजूद ऑटोमैटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम वाले ट्रांसपॉन्डर्स लगाने की जरूरत है. लेकिन हम अभी तक ये काम नहीं कर पाए हैं. ये एक ऐसी कमी है, जो बाकी तमाम मोर्चों पर सुरक्षा के लिए की गई प्रगति को बेकार कर देती है. ट्रांसपॉन्डर्स से युक्त ‘आंख’ और ‘कान’ की जोड़ी से लैस सभी फिशिंग बोट्स कोस्टल सिक्योरिटी सिस्टम का हिस्सा होते हैं. ठीक इसके उलट बिना ऐसे किसी सिस्टम वाला हर वोट सुरक्षा के लिहाज से अपने आप में एक खतरा होता है.
ये एक विवादित और राजनीतिक मुद्दा है, क्योंकि फिशिंग बोट्स की बड़ी-बड़ी फ्लीट रखने वाले तमाम बोट्स मालिक नहीं चाहते कि उनके बोट्स को ट्रैक किया जाए. ये वो लोग हैं जो पार्टियों को चुनाव के लिए फंडिंग करते हैं. क्योंकि इनमें से कई समुद्र में स्मगलिंग और दूसरी अवैध गतिविधियों में शामिल बताए जाते हैं.
राज्यों की सरकारें अकसर इस सोच में होती हैं कि सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र की है. और इस कारण वे समुद्री हमलों से बचने के लिए भारतीय नौसेना और इंडियन कोस्ट गार्ड (आईसीजी) पर निर्भर करते हैं.
हालांकि समस्या आती है क्योंकि अपने भारी-भरकम वारशिप के कारण भारतीय नौसेना 200 नौटिकल माइल के बाहर गहरे समुद्र में ही गश्त कर पाती है. जबकि इंडियल कोस्ट गार्ड के जवान 12 से 200 नौटिकल माइल के बीच ही सुरक्षा देते हैं. इस वजह से 1 से 12 नौटिकल माइल का हिस्सा खाली रह जाता है. इस हिस्से में मछली पकड़ने से लेकर दूसरी व्यापारिक गतिविधियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी मरीन पुलिस फोर्स पर आ जाती है.
ये देखते हुए कि कानून और व्यवस्था का मामला राज्यों का होता है आखिर केंद्र की सरकार कोस्टल सिक्योरिटी मैनेजमेंट में क्या भूमिका हो सकती है?
समुद्री सीमा पर कोस्टल सिक्योरिटी में केंद्र सरकार का योगदान अहम है. इसके लिए केंद्र की सरकार मरीन प्लेटफॉर्म और कोस्टल सिक्योरिटी पुलिस स्टेशन के लिए फंड देने से लेकर बीच स्कूटर्स और नाइट विजन डिवाइस जैसी चीजें उपलब्ध कराती है.
मुंबई में 26/11 हमलों के बाद केंद्र सरकार ने मेरिटाइम और कोस्टल सिक्योरिटी को मजबूती देने के लिए नेशनल कमिटी का गठन किया. कैबिनेट सेक्रेटरी को इसका प्रमुख बनाया गया. इसका उद्देश्य समुद्री सीमा की सुरक्षा को लेकर जागरूकता पैदा करना था. इस प्रोजेक्ट का जिम्मा नेवी और कोस्ट गार्ड, स्टेट मरीन पुलिस और कुछ दूसरे राज्य और केंद्रीय एजेंसियों ने उठाया. देखा जाए तो कोस्ट गार्ड नेवी से नीचे है लेकिन मरीन से जुड़े अनुभवों, हथियारों के प्रशिक्षण और ट्रेनिंग के लिहाज से पुलिस से ऊपर है. इस लिहाज से ये फोर्स कोस्टल सिक्योरिटी मैनेजमेंट के लिए अधिक कारगर है.
इसके पहले चरण में पूरे भारत के कोस्ट लाइन को कवर करने की योजना थी. इसे तहत देश की मुख्य भूमि पर 74 ऑटोमैटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम रिसीवर और 46 कोस्टल रडार लगाने की योजना बनाई गई. इससे कोस्टल वॉटर में छोटे नावों पर नजर रखने की योजना बनाई गई.
हालांकि, अकेले तकनीक ही देश की 7517 किलोमीटर की समुद्री सीमा की सुरक्षा नहीं कर सकती.
साफ है कि इस तकनीक पर आधारित सुरक्षा तंत्र के साथ बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स की तरह कोस्टल सिक्योरिटी फोर्स की जरूरत है. सिर्फ एक सक्रिय कोस्टल पुलिस फोर्स ही उथले समुद्र में होने वाली किसी भी गलत गतिविधियों की जांच करने और उन्हें नाकाम करने में सक्षम है.
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