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अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन के असर को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 15 मई को राहत पैकेज की तीसरी किस्त में कृषि क्षेत्र के लिए कई बड़े ऐलान किए, क्योंकि देश भर में किसान इस वक्त भयंकर संकट का सामना कर रहे हैं.
सरकार की घोषणाओं में 1.63 लाख करोड़ रुपये का प्रोत्साहन पैकेज, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग यानि अनुबंध खेती को बढ़ावा और आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव कर अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और टमाटर को इसकी परिधि से हटाने – ताकि कृषि सामग्रियों की बिक्री आसान हो - का फैसला शामिल है.
लेकिन सुधार के इन सुझावों ने जानकारों को इस सवाल पर दो हिस्सों में बांट दिया है कि क्या वाकई इससे किसानों को मौजूदा संकट में मदद मिलेगी?
जहां अशोक गुलाटी, कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष, जैसे लोग ये कहकर इन सुधारों की तारीफ कर रहे हैं कि इससे कृषि बाजार में एकाधिकार और उपभोक्ता पूर्वाग्रह यानि Consumer bias खत्म होगा, वहीं पूर्व कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री जैसे लोगों का मानना है कि सरकार को किसानों का शोषण रोकने के लिए दखल देनी चाहिए थी.
द क्विंट ने कृषि विशेषज्ञों से बात की तो पता चला कि सरकार के इन सुझावों से तत्काल नकदी की तंगी झेल रहे किसानों की परेशानियों का समाधान नहीं होगा.
भारतीय कृषि अर्थशास्त्री और कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी ने कृषि सुधारों की सराहना की. उनका मानना है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम की वजह से फसलों की कटाई के समय में इन चीजों के दाम घट जाते थे.
वरिष्ठ पत्रकार विवियन फर्नांडिस, जो कि कृषि से जुड़ी वेबसाइट ‘स्मार्ट इंडियन एग्रीकल्चर’ चलाते हैं, का मानना है कि इन कृषि सुधारों से मिलने वाला फायदा बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि इसे लागू कैसे किया जाता है.
लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि इससे किसानों को तत्काल फायदा नहीं होगा.
‘सरकार ने कृषि बाजार में सुधार और मूल सेवा यानि Core service में निवेश की घोषणा की है, लेकिन अगर अगले मौसम में मेरी पैदावार अच्छी नहीं हुई, तो बाजार में मैं क्या बेचूंगा? मैं ये नहीं कह रहा कि सरकार को उन्हें कैश-ट्रांसफर कर देना चाहिए था या कर्ज माफी कर देनी चाहिए थी, लेकिन कर्ज का ढांचा जरूर बदलना चाहिए,’ उन्होंने कहा.
फर्नांडीस की तरह रमणदीप सिंह मान, जो कि हरियाणा और पंजाब के किसान कार्यकर्ता हैं, का मानना है कि कृषि बाजार राज्य सरकारों के दायरे में आता है. ऐसे में केन्द्र सरकार के इन ऐलानों से क्या जमीनी बदलाव आ पाएगा ये देखने वाली बात होगी, उन्होंने कहा.
‘कोई सरकार के इन कदमों का विरोध नहीं कर रही. सवाल ये है कि किसानों को तत्काल किस तरह की सहायता चाहिए? सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि कृषि बाजार का नियंत्रण राज्यों के हाथ में है. जब तक सभी राज्य सरकारें सहमत नहीं हों, इन फैसलों को लागू कराना ही अपने आप में बड़ी चुनौती होगी. दूसरी तरफ, अगर केन्द्र का इरादा पक्का है तो इन सुधारों को मानने के लिए वो राज्यों को बाधित कर सकता है, और उन्हें इसे लागू करना होगा.’
पूर्व कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री ने सरकार के फैसलों को निरर्थक करार दिया.
उन्होंने कहा, ‘जिन सुधारों का ऐलान हुआ है वो पूरी तरह बेतुके हैं; मौजूदा हालात को देखते हुए पूरी तरह गैर-जरूरी फैसले लिए गए हैं. और ये सिर्फ और सिर्फ भुखमरी और पलायन जैसे तात्कालिक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए उठाया गया कदम है. जिन्हें लोगों के सामने जादुई और चकाचौंध से भरी भाषा में परोसा जा रहा है, लेकिन इनकी बारीकियों में शैतान छिपा है.’
स्वराज अभियान के संस्थापक योगेन्द्र यादव ने पूछा सरकार के इन फैसलों में आखिर नया क्या है.
‘हमने इस बारे में अभी कोई खाका नहीं तैयार किया है, हमारे पास सिवाय इरादे के और कुछ नहीं है, और मुझे समझ में नहीं आता इसका किसानों की मौजूदा समस्याओं से क्या लेना-देना है,’ उन्होंने पूछा.
कृषि विशेषज्ञ देवेन्द्र शर्मा ने बताया कि पहले के मामलों में भी APMC की बाध्यता हटाने से किसानों को होने वाले फायदे को लेकर जैसा अनुमान लगाया गया था वैसा ही परिणाम नहीं मिला.
शर्मा ने ये भी कहा कि सरकार के इन सुधारों का असर लंबे-वक्त में ही दिख सकता है, इससे नकदी की तंगी झेल रहे किसानों को तुरंत कोई राहत नहीं मिलने वाली है, खास तौर पर उन किसानों को जिनके पास खराब होने वाली फसल मौजूद है. उनके मुताबिक महामारी के इस मुश्किल दौर में किसानों को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से जरूर फायदा होगा.
‘पिछले दो सालों से सरकार पर दबाव बनाया जा रहा था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम से स्टॉक की सीमा संबंधी प्रावधान हटा दिए जाएं. ऑनलाइन राशन स्टोर से लेकर रीटेल चेन तक सभी को बड़ी मात्रा में सामान स्टॉक करना होता है, इसलिए वो परेशान थे. अब इसकी मार उपभोक्ताओं को झेलनी पड़ेगी. क्या ऐसे हालात में इन सुधारों की जरूरत थी? ये बड़ा सवाल है,’ शर्मा ने कहा.
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