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देश की कमर तोड़ चुकी कोरोना वायरस (COVID-19) की दूसरी लहर पर ये कहना है केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का. गृहमंत्री ने भारत में कोविड की खतरनाक दूसरी लहर पर कहा कि दूसरी लहर में महामारी इतनी तेजी से फैली, लेकिन इस परिस्थिति में भी पीएम मोदी ने गांव और शहरों में 6-7 दिनों के अंदर 10 गुना ऑक्सीजन देने की व्यवस्था करने का प्रयास किया.
अमित शाह का कहना है कि इसपर काबू पाना मानवीय रूप से संभव नहीं था, लेकिन सरकार के हाथ में जो था, क्या वो उसने ठीक से किया?
पूरी दुनिया में कोहराम मचाने वाले कोरोना पर काबू पाने के खोखले दावे हमने कर लिए. नतीजे सामने हैं. 28 जनवरी 2021 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनियाभर में ऐलान कर दिया था कि भारत ने कोरोना वायरस को हरा दिया है. वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के दावोस डायलॉग में पीएम मोदी ने कहा था,
वहीं, पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने भी मार्च में कहा कि भारत ने कोरोना वायरस को हरा दिया है. और फिर? फिर अप्रैल में आई कोरोना की खतरनाक दूसरी लहर.
दिक्कत की बात ये है कि यूं लगा कि कोरोना को हरा दिया सिर्फ कहा ही नहीं, मान भी लिया. तभी तो लापरवाहियों का नेशनल रिकॉर्ड बनाया गया, तैयारियां धीमी पड़ गईं.
महामारी के बीच चुनाव कराना ऐसा था, जैसे कोरोना को न्योता दिया गया हो. चुनाव रोकने में चुनाव आयोग की असफलता और अयोग्यता से लाखों जिंदगियां दांव पर लगीं. चुनावी रैलियों में कोरोना नियमों का जमकर उल्लंघन हुआ. जमकर भीड़ इकट्ठा हुई. न किसी के चेहरे पर मास्क दिखा, तो न ही सोशल डिस्टेंसिंग. उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में ड्यूटी के कारण भी सैकड़ों शिक्षकों की मौत हो गई.
पिछले साल दिसंबर से कोरोना वायरस के केसों में कमी आने के साथ ही, देश के अलग-अलग राज्यों में कड़े प्रतिबंध हटाये जाने लगे. फरवरी में ऐसा लगा कि जीवन पटरी पर वापस लौट आया है. ट्रेनों में लगभग पहले जैसी भीड़ दिखने लगी, लोग घूमने जाने लगे, सभी बाजार खोल दिए गए, शादियों में लोगों की संख्या बढ़ा दी गई, धार्मिक आयोजनों को भी अनुमति दे दी गई. अगर लॉकडाउन के सभी प्रतिबंधों में एकदम से ढील न दे कर, इसे एक-एक कर खोला जाता, तो हालात थोड़े काबू में किए जा सकते थे.
कोरोना वायरस की खतरनाक दूसरी लहर के बीच, उत्तराखंड के हरिद्वार में हिंदुओं के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन की अनुमित दी गई. प्रशासन ने कहा कि कोविड के चलते 3-4 महीने चलने वाला कुंभ केवल एक महीने होगा. लाखों की संख्या में साधु-संत और आम लोग हरिद्वार पहुंचे और गंगा में डुबकी लगाई. याद रहे, ये सब तब हो रहा था, जब देश में रोजाना 1 लाख से ऊपर केस आ रहे थे.
सरकार ने कहने को प्रतिबंध लगाए कि नेगेटिव रिपोर्ट ले आएं. फिर स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि एक लाख टेस्ट तो फर्जी थे. हरिद्वार में साधु-संतों के कोविड पॉजिटिव होने की खबर आई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हुई तो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कुंभ को केवल प्रतीकात्मक मानें.
कोरोना वायरस के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार सावधानी और वैक्सीन हैं. लेकिन ये समझने में भारत सरकार ने काफी देर कर दी. जब महामारी की शुरुआत में ही अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश और यूरोपियन यूनियन ने वैक्सीन के बड़े ऑर्डर दे दिए थे, तब भारत एक्शन में नहीं आया. 16 जनवरी को वैक्सीनेशन प्रोग्राम लॉन्च हुआ और उससे महज दो हफ्ते पहले तक ऑर्डर नहीं दिया गया था. जो ऑर्डर दिया गया वो भी नगण्य था.
दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन मेकर सीरम, जिसपर हम निर्भर थे, उसके पास पैसों की किल्लत थी. उसे ऑर्डर नहीं मिला, उसने क्षमता नहीं बढ़ाई. जब तक हल्ला मचा, तब तक दूसरी लहर करोड़ों लोगों को रुला चुकी थी. वैक्सीन हमारे पास थी नहीं, और हम विदेशों में भेज रहे थे. क्यों?
भारत में सबसे पहले सीरम इंस्टीट्यूट में बनने वाली ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल (EUA) की अनुमति दी गई. लेकिन भारत में EUA के लिए सबसे पहले अप्लाई करने वाली अमेरिकी कंपनी की फाइजर थी, जिसने जर्मनी की बायोएनटेक के साथ मिलकर वैक्सीन विकसित की है. लेकिन भारत सरकार ने तब फाइजर को अनुमति नहीं दी.
फाइजर की वैक्सीन को WHO से अनुमति मिलने के बाद भी अभी तक भारत में अनुमति नहीं दी गई. जब सीरम और भारत बायोटेक हमारी जरूरतें पूरी नहीं कर पाईं तो सरकार ने कहा कि अब हम विदेशी कंपनियों को तुरंत अप्रूवल देने को तैयार हैं. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. इन कंपनियों ने दूसरी जगह ऑर्डर दे दिया था. बाहर से वैक्सीन आएगी, किल्लत दूर होगी, इसके तमाम दावों के बावजूद आज हम जुलाई में बैठे हैं और आज भी किल्लत बनी हुई है.
21 जून से केंद्र ने अपने पास टीकाकरण अभियान को वापस लिया. उस दिन रिकॉर्ड संख्या में टीके पड़े. वर्ल्ड रिकॉर्ड के दावों की हेडलाइन बनी. ऐसा प्रतीत कराया गया कि अब टीके का टोटा खत्म हो गया. लेकिन अगले चंद दिनों में हाल फिर हो गया. आज नौबत ये है कि कई राज्य शिकायत कर रहे हैं कि टीका नहीं है. तो वैक्सीन के बदले हेडलाइन का इंतजाम क्यों करते हैं?
कोरोना वायरस की तीसरी लहर को लेकर एक्सपर्ट्स पहले ही आगाह कर चुके हैं. कहा जा रहा था कि कोविड की तीसरी लहर अक्टूबर-नवंबर में आ सकती है, लेकिन SBI रिसर्च की रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि दूसरी लहर की शुरुआत अगस्त में हो सकती है, और इसका पीक सितंबर में आ सकता है. IMA ने कहा है कि तीसरी लहर का आना पक्का है, लेकिन देश के हालात देख कर लगता है कि हम फिर से दूसरी लहर के पहले वाली गलतियां दोहरा रहे हैं.
ये समय की सबसे बड़ी जरूरत है कि लॉकडाउन नियमों में पहले की तरह ढील न दी जाए. हालांकि, देखने से ऐसा नहीं लगता. जून-जुलाई में कोविड के मामलों में कमी आने के साथ ही घूमने को बेचैन लोगों की भीड़ देखी जा रही है. हिमाचल प्रदेश के शिमला और धर्मशाला, और उत्तराखंड के मसूरी और नैनीताल में पर्यटकों का हुजूम दिखाई दे रहा है.
सोशल मीडिया पर हिमाचल प्रदेश की भी तस्वीरें खूब वायरल हो रही हैं. भीड़ बढ़ी तो सरकार ने लोगों को चेतावनी दी और प्रशासन ने अब पर्यटकों को वापस भेजना शुरू कर दिया है. कोरोना को देखते हुए अमरनाथ यात्रा, उत्तराखंड चार धाम यात्रा रोक दी गई, लेकिन पुरी में जगन्नाथ यात्रा से अच्छी तस्वीरें नहीं आ रहीं. IMA चेतावनी दे रहा है कि उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा न कराइए, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी साफ दिख रही है.
अब समय आ गया है कि तीसरी लहर रोकने के लिए सरकार युद्ध स्तर पर वैक्सीन का जुगाड़ करे. महीनों से चली आ रही वैक्सीन की किल्लत आज भी जारी है. दिल्ली, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों में जहां वैक्सीन की कमी के कारण टीकाकरण रुक गया, तो वहीं कुछ राज्यों में ज्यादा दिन का टीका नहीं बचा है.
सरकार ने दो नई वैक्सीन को अनुमति दे दी है, लेकिन उससे भी अभी तक ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा है. स्पुतनिक को अप्रैल में मंजूरी मिलने के बावजूद इसके अभी ज्यादा डोज रिसीव नहीं हुए हैं. इस वैक्सीन को सितंबर से सीरम इंस्टीट्यूट में ही मैन्युफैक्चर किया जाएगा, जिससे प्रोडक्शन बढ़ने की उम्मीद तो है, लेकिन यहां भी दिल्ली दूर ही लगती है.
कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने देश के जर्जर मेडिकल सिस्टम की तस्वीर पूरी दुनिया को दिखा दी. अप्रैल-मई में दिल्ली, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में अस्पतालों में बेड की कमी हो गई. लोगों को आईसीयू बेड नहीं मिले.
अब एक सवाल पूछती हूं. क्या सरकार आज ये गारंटी दे सकती है कि आ रही तीसरी लहर में इसकी कमी नहीं होगी. क्या इंतजाम हैं, क्या नंबर हैं, क्या पब्लिक को पता है? नेताओं से ज्ञान तो खूब मिल रहा है, लेकिन तीसरी लहर का प्लान कहां है? दावोस में जाकर डींगे हांकने की स्थिति तो नहीं रही, लेकिन ठीक पहली लहर के बाद की तरह कई नेता फेंक रहे हैं कि हमने दूसरी लहर पर काबू पा लिया. अव्वल तो यही झूठ है दूसरी बात ये जो कर लिया उसका जिक्र करने से ज्यादा जरूरी इस वक्त आने वाली मुसीबत की फिक्र, यानी तीसरी लहर.
भगवान न करे हम दूसरी लहर के आसूं फिर रोएं. ऐसा हुआ तो ये दिलासा आंसू नहीं पोछ पाएगा कि -तीसरी लहर को रोकना मानवीय रूप से संभव नहीं था.
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