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गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की प्रयागराज के एक हॉस्पिटल के बाहर मीडियाकर्मी बनकर आए तीन शूटरों ने गोली मारकर हत्या (Atiq Ahmed Murder) कर दी. 'बाहुबली' माफिया अतीक की कभी प्रयागराज में तूती बोलती थी. लेकिन उमेशपाल हत्याकांड में नाम आने के बाद उसका भविष्य अधर में लटका हुआ था. यूपी पुलिस उसके चारों ओर फंदा कसने के हर मौके को भुना रही थी.
वास्तव में, अतीक को यह पहले ही अंदाजा हो गया था कि उसके साथ क्या होने वाले है. उसने कई बार कहा था कि उनकी जान को खतरा है.
अतीक, उसका छोटा भाई अशरफ और अतीक के बेटे उमर और अली अहमद अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी या सरेंडर के बाद से जेल की सजा काट रहे थे.
पुलिस-प्रशासन की लगातार कार्रवाई के बाद, कभी खूंखार रहा यह गिरोह शांत हो गया था. गिरोह के अधिकांश सदस्य निष्क्रिय हो गया थे- या कम से कम फरवरी 2023 तक अधिकारियों का यही मानना था.
अतीक के खिलाफ 100 से अधिक आपराधिक मामले थे और उसने पिछले दो दशक सलाखों के पीछे बिताए थे. उसके लिए वर्चस्व के दिन अतीत की बात बन गए थे. एक वक्त था जब उसने प्रयागराज के चकिया क्षेत्र में अपना गढ़ बनाया था.
हालांकि, 24 फरवरी 2023 की दोपहर को सभी कयास गलत साबित हुए जब कम से कम पांच हमलावरों ने उमेश पाल पर घात लगाकर हमला किया. उमेशपाल 2005 में हुई BSP विधायक राजू पाल की हत्या का मुख्य गवाह था. अपनी हत्या के दिन उमेशपाल 2006 के अपहरण मामले में सुनवाई में भाग लेने के बाद प्रयागराज अदालत से घर लौटा रहा था. इस अपहरण मामले में अतीक और उसका भाई अशरफ आरोपी थे.
सामने आए सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पुलिस ने अतीक के तीसरे बेटे- असद पर कथित रूप से उमेश पाल पर हमले का आरोप लगाया. बंदूकें, एक राइफल और देशी बमों से लैस कम से कम पांच लोगों ने दिनदहाड़े उमेश और पुलिस द्वारा नियुक्त उनके 2 गनर पर हमला कर दिया था.
सवाल है कि दिन-दिहाड़े गोलीबारी में उमेश पाल की हत्या के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने अतीक के गिरोह के खिलाफ अपनी पूरी ताकत क्यों झोंक दी?
24 फरवरी 2023 को प्रयागराज में हुई उमेश पाल हत्याकांड उतनी ही दिन-दिहाड़े थी, जितनी की वो हो सकती थी. घटना की जांच कर रहे अधिकारियों ने दावा किया कि हमलावरों ने अपना चेहरा छिपाने का भी कोई प्रयास नहीं किया. माना गया कि ऐसा अतीक के खिलाफ गवाही देने वालों को एक संदेश भेजने और अन्य गवाहों को डराने के लिए किया गया था.
हालांकि, जब इस हत्याकांड का सीसीटीवी फुटेज वायरल हुआ तो सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच यूपी में बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति पर बातचीत होने लगी.
सरकार ने इसका जवाब राज्य टास्क फोर्स (एसटीएफ) को सामने लेकर दिया. जब भी सरकार मुसीबत में रही है, STF ने संकटमोचन का काम किया है.
प्रयागराज गोलीकांड के एक दिन बाद 25 फरवरी 2023 को, बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर यूपी विधानसभा में विपक्ष ने सरकार पर तीखे हमले किए.
विपक्ष को जवाब देते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीखे लहजे में कहा, "इस माफिया (अतीक) को मिट्टी में मिला देंगे"
यह 'युद्धघोष' दूर-दूर तक सुनाई दे रहा था. अतीक की बहन आयशा नूरी ने प्रयागराज में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "उस समय विधानसभा में मुख्यमंत्री जी को अखिलेश जी ने इस बयान के लिए उकसाया था."
हमलावरों का पता लगाने की जिम्मेदारी एसटीएफ को देने के साथ ही आरोपियों के एनकाउंटर की अटकलों का दौर शुरू हो गया था.
13 अप्रैल को झांसी में यूपी एसटीएफ की एक टीम के साथ एनकाउंटर में असद और गुलाम की मौत और प्रयागराज में अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या के बाद, सीएम आदित्यनाथ की अब सत्ता पक्ष के समर्थकों द्वारा सराहना की जा रही है. उनका मानना है कि सीएम योगी ने विधानसभा में किया अपना "वादा" निभाया है.
मौजूदा योगी शासन में, 2018 में बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या के अपवाद को छोड़कर, यूपी पुलिस ने ड्यूटी के दौरान मारे गए पुलिसकर्मियों की मौत का खून से बदला लिया है.
2021 में कासगंज में शराब माफिया द्वारा मारे गए कांस्टेबल देवेंद्र सिंह से लेकर 2020 में कानपुर में विकास दुबे और उसके गिरोह द्वारा मारे गए आठ पुलिसकर्मियों तक, यूपी पुलिस ने इन घटनाओं के तत्काल बाद एनकाउंटर का सहारा लिया है.
जब द क्विंट ने आईपीएस (रिटायर्ड) प्रकाश सिंह, पूर्व पुलिस महानिदेशक (यूपी) से बात की, तो उन्होंने कहा कि एक पुलिस अधिकारी की हत्या को अलग तरह से देखा जाएगा.
उन्होंने कहा, "मुझे बताओ कि अगर आपके किसी करीबी और प्रिय को मार दिया जाता है तो आपका क्या होगा. आपकी तरह, पुलिस भी (गुस्सा) होगी. इसे ऐसे समझिए"
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