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भारत में मध्यस्थता पुरानी अवधारणा, महाभारत में हुई थी शुरुआत- CJI रमना

CJI N.V. Ramana- "न्यायिक देरी का मुद्दा जटिल समस्या है और यह सिर्फ भारत में नहीं है"

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<div class="paragraphs"><p>CJI N.V. Ramana-भारत में मध्यस्थता पुरानी अवधारणा</p></div>
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CJI N.V. Ramana-भारत में मध्यस्थता पुरानी अवधारणा

(फोटो: कामरान अख्तर/क्विंट)

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भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमना (CJI NV Ramana) ने शनिवार,17 जुलाई को कहा कि एक अवधारणा के तौर पर मध्यस्थता भारतीय समाज में गहराई से समाई हुई है और बड़े पैमाने पर आम जनता के लिए सस्ते और सरल विकल्प होने के कारण भारत के संबंध में इसको सामाजिक न्याय के टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

यह बात उन्होंने "मेकिंग मीडिएशन मेनस्ट्रीम : रिफ्लेक्शन फ्रॉम इंडिया एंड सिंगापुर" शीर्षक वाले भारत-सिंगापुर मध्यस्थता शिखर सम्मेलन के दौरान दिए गए अपने भाषण में कही. चीफ जस्टिस ने कहा "भारत कई पहचानो,धर्मों और संस्कृतियों का घर है .यह विविधता के माध्यम से इसकी एकता में योगदान करते हैं. यहीं पर न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित होती है तथा कानून के शासन की भावना जन्म लेती है ".

"भारत की डायवर्सिटी के अनुकूल तंत्र अंततः कानून के शासन को बनाए रखती है. यह विभिन्न समुदायों को अपनी स्वायत्तता का पूरा उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन देती है ,ताकि वे उचित और न्याय पूर्ण नतीजे पर पहुंच सके"
एन.वी रमना,भारत के मुख्य न्यायाधीश
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भारत में मध्यस्थता पुरानी अवधारणा - जस्टिस रमना

महाभारत में संघर्ष समाधान के टूल के रूप में मध्यस्थता को शुरुआती प्रयास का उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि, भगवान कृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच विवाद में मध्यस्थता करने का प्रयास किया था. महाभारत में मध्यस्थता की विफलता के कारण ही विनाशकारी परिणाम हुआ था.

जस्टिस रमना ने एक अवधारणा के तौर पर मध्यस्थता पर जोर देते हुए कहा कि यह भारत में ब्रिटिश शासन के आने के बहुत पहले से समाज का अंग रहा है.

"1975 में ब्रिटिश कोर्ट सिस्टम की स्थापना के साथ ही भारत की समुदाय आधारित स्वदेशी विवाद समाधान तंत्र को नुकसान पहुंचा. ब्रिटिश न्यायिक प्रणाली ही अंततः जरूरी संशोधनों के साथ भारत की मौजूदा न्यायिक तंत्र का आधार बन गई "
एन.वी रमना,भारत के मुख्य न्यायाधीश

"न्यायिक देरी का मुद्दा जटिल समस्या है और ये सिर्फ भारत में नहीं है"

भारतीय अदालतों में लंबित मामलों के आंकड़ों पर भी कड़ी आपत्ति जताते हुए जस्टिस रमना ने कहा कि "अक्सर यह माना जाता है कि यहां 4.5 करोड़ मामले लंबित है और ऐसा इसलिए है क्योंकि अदालतें इसको संभाल नहीं पाती"

उन्होंने आगे कहा, "लेकिन यह कठोर विश्लेषण है. कल दर्ज मामले को भी इसमें जोड़ दिया जाता है। इसलिए भारतीय न्यायिक तंत्र कैसा काम कर रही है, इसको जांचने का यह उपयोगी पैमाना नहीं है .न्यायिक देरी का मुद्दा जटिल समस्या है और यह सिर्फ भारत नहीं है"

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