भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमन्ना (CJI NV Ramana) ने 15 जुलाई को भारत के अटॉर्नी जनरल के.के वेणुगोपाल (KK Venugopal) से राजद्रोह के प्रावधान की जरूरत पर सवाल किया. जस्टिस रमन्ना ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या औपनिवेशिक शासन से आजाद होने के 75 साल बाद भी भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 124A में मौजूद राजद्रोह के प्रावधान की जरूरत है.
"विवाद यह है कि यह अंग्रेजों के जमाने का कानून है और इसका प्रयोग वे स्वतंत्रता को दबाने के लिए करते थे. इसका प्रयोग महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर हुआ था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है?"मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमन्ना
मुख्य न्यायाधीश रमन्ना ने यह टिप्पणी एसजी. वोम्बाटकेरे द्वारा दायर याचिका की सुनवाई में की. CJI की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को इस मामले में नोटिस जारी किया और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा इसी तरह के एक पेंडिंग याचिका को भी सुनवाई में शामिल कर लिया.
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने भी सुप्रीम कोर्ट के सामने एक याचिका दायर करके राजद्रोह कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने CJI द्वारा देशद्रोह कानून पर सवाल उठाए जाने की सराहना करते हुए ट्वीट किया
" उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी का हम स्वागत करते हैं "
तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट करते हुए कहा "अंततः उम्मीद है कि भारत सरकार द्वारा दुरुपयोग किए जाने वाले पुराने कानून को निकाल फेंका जाएगा".
एक दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा "विडंबना है कि जहां एक तरफ सुप्रीम कोर्ट इस आउटडेटेड लॉ के ऊपर सवाल उठा रही है वहीं हरियाणा पुलिस ने बीजेपी नेता के वाहन पर कथित हमले के आरोप में 100 से अधिक किसानों पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया है"
NDTV रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा के ऑफिशियल वाहन पर हमले को लेकर हरियाणा पुलिस ने 100 से अधिक किसानों पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया है.
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने अपने ट्वीट में कहा " मामला यह है कि कल सिरसा में किसानों के खिलाफ एक मंत्री के वाहन की विंडशील्ड तोड़ने के लिए देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया "
लेकिन UAPA का क्या ?
दूसरी तरफ वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि असहमति को दबाने के लिए देशद्रोह के इस औपनिवेशिक कानून के दुरुपयोग पर सरकार के खिलाफ खड़े होने के लिए सुप्रीम कोर्ट और CJI को बधाई"
इसके अलावा गौतम भाटिया पारस नाथ सिंह जैसे वकीलों ने UAPA की वैधता पर भी सवाल उठाए.
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