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ऑटोचालक,मजदूर,डिलीवरी ब्वॉय-रात की ठंड में कमाई के संघर्ष को बयां करतीं तस्वीरें

सुरक्षा गार्ड सोनू ने कहा, हर साल की तुलना में इस साल काफी ठंड है,लेकिन हमारे पास काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं.

आश्ना भूटानी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>शीत लहर की चपेट&nbsp;में राजधानी दिल्ली&nbsp;</p></div>
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शीत लहर की चपेट में राजधानी दिल्ली 

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

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ठंड और कोहरे की मार से इस वक्त पूरा उत्तर भारत कांप रहा है.वहीं देश की राजधानी दिल्ली (Delhi ) भी इन दिनों भीषण सर्दी की चपेट में है. शुक्रवार को दिल्ली में तापमान 1.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. वहीं लगातार गिरते तापमान में भी कुछ लोग बाहर रहने के लिए मजबूर हैं. इस सर्दी की सबसे सर्द रातों में से एक 5 जनवरी को क्विंट ने डिलीवरी एक्जीक्यूटिव, ऑटो चालकों और सुरक्षा गार्डों से मुलाकात की, जो ठंड के बावजूद रात में शहर को चालू रखते हैं.

इनमें से अधिकांश दिहाड़ी मजदूर हैं जो आजीविका के तलाश में अन्य स्थानों से राजधानी दिल्ली में आए हैं. 5 जनवरी की रात साउथ दिल्ली के कुछ हिस्सों का दौरा किया और रात में जगे लोगों की कहानी तस्वीरों के माध्यम से आप सब तक पहुंचाने की कोशिश है.

साउथ दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश में एक गेस्ट हाउस के सुरक्षा गार्ड सोनू चावरा ने कहा, हर साल की तुलना में इस साल काफी ठंड है, लेकिन हमारे पास इस ठंड में काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. चावरा और कुछ अन्य सुरक्षा गार्ड अलाव जलाकर उसके बगल में छिप जाते हैं. चावड़ा और अन्य लोगों के लिए गार्ड रूम नहीं है.

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

साउथ दिल्ली की एक और कॉलोनी में 48 वर्षीय सुखदेव सुरक्षा गार्ड के रूप में काम कर रहे हैं. सुखदेव ने कहा, मेरी पत्नी, जो पास में ही घरेलू सहायिका के रूप में काम करती है. वो मुझे बताती है कि मुझे लकड़ी के टुकड़े कहां मिल सकते हैं. मैं इसे हर रात अपने गार्ड पोस्ट पर ले जाता हूं.सुखदेव की 12 घंटे की शिफ्ट रात 8 बजे शुरू होती है. कॉलोनी के अंदर सुखदेव के बैठने के लिए कोई गार्ड रूम नहीं है.

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

साउथ दिल्ली की एक कॉलोनी में सुरक्षा गार्ड सोनू एक पेड़ के नीचे अलाव जलाकर बगल में एक कुर्सी पर बैठे थे. उन्होंने कहा, “मैंने सुरक्षा गार्ड की नौकरी चुनी क्योंकि ये अधिक स्थिर है. जब मैं सुबह घर पहुंचता हूं तो मेरे परिवार का दिन शुरू हो चुका होता है. मेरी बेटी पहले ही स्कूल जा चुकी होती है. वो दोपहर 2 बजे वापस आती है. इसलिए मैं उसे कुछ घंटों के लिए देखता हूं. वो हर शाम मदनगीर से बस से सफर करते हैं.

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

एक महंगी रिहायशी कॉलोनी के गेट पर तीन सुरक्षा गार्ड पहरी कर रहे थे. 50 वर्षीय सुरेंद्र मिश्रा ने कहा, इस साल पहली बार आरडब्ल्यूए ने हमें ये अंधेरे में चमकने वाली, गर्म जैकेट दी हैं. हालांकि, गार्ड ने इस साल आरडब्ल्यूए से हीटर के लिए कहा था. उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले मिश्रा काम पर जाने के लिए बदरपुर बॉर्डर से रोजाना बस से सफर करते हैं. इनको 10,000 रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाता है और उनका सारा वेतन घर चलाने में खर्च हो जाता है. मिश्रा ने कहा कि गर्म कपड़े या आग के लिए कोयला खरीदने के लिए बहुत कम पैसा बचता है.

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

आधी रात को खाली सड़क पर एक रिक्शा और पुलिस वैन दिखा. गुरुवार को कड़ाके की ठंड थी. राजधानी दिल्ली में न्यूनतम तापमान 3 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया और ये अब तक की सबसे सर्द रातों में से एक रही. लोधी रोड पर तापमान 2.8 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था.

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

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सुरक्षा गार्ड सुरेंद्र मिश्रा ने कहा कि, लकड़ी का कोई भरोसा नहीं है (आप लकड़ी पर भरोसा नहीं कर सकते हैं). यहां के पहरेदार जब कॉलोनी का चक्कर लगाते हैं तो जलाने के लिए लकड़ी ढूंढते हैं. उन्होंने कहा कि हमारे पास लकड़ी के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है.

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

साउथ दिल्ली में अब तक की सबसे सर्द रातों में से  एक थी. इस दौरान अधिकतर सड़कें खाली मिली. सड़कों पर बहुत कम कारें दिखाई दी और कभी-कभी बाइक पर गिग वर्कर दिख रहे थे. छत्तीसगढ़ के रहने वाले 17 वर्षीय Zepto डिलीवरी एक्जीक्यूटिव दिखें जो शाम 6 बजे से रात 1.30 बजे तक ड्यूटी पर रहते हैं. उन्होंने कहा कि, 'मुझे कंपनी से गर्म कपड़े नहीं मिले हैं. ये ठंडा हो जाता है, लेकिन कोई क्या कर सकता है? हमें करना होगा काम.'

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

शाम 7 बजे से 1 बजे तक काम करने वाले स्विगी डिलीवरी एक्जीक्यूटिव अजय कश्यप ने कहा कि, 'मैं अपनी खुद की जैकेट पहनता हूं क्योंकि कंपनी द्वारा दी गई जैकेट पर्याप्त गर्म नहीं होती हैं.' उन्होंने दावा किया कि उन्हें सर्दियों में जैकेट के लिए कंपनी को 300 रुपये का भुगतान करना पड़ता है. मानसून में रेनकोट के साथ भी ऐसा ही होता है.

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

ऑटो चालकों का एक समूह अलाव जलाकर बैठे थे. जबकि उनके ऑटो उनके पीछे खड़े थे. वे सुबह तक काम करते हैं. ऑटो किराए पर दिए जाते हैं, इसलिए एक व्यक्ति दिन में ऑटो चलाता है और दूसरा रात में चलाता है. 27 वर्षीय अजय सिंह ने कहा, 'हममें से अधिकांश के पास अपने ऑटो हैं, हम उन्हें दिन में किराए पर दे देते हैं.'

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

ऑटो चालक अजय सिंह कहते हैं, 'अगर हम रात में ऑटो नहीं चलाते हैं, तो उन लोगों का क्या होगा जिन्हें रात में परिवहन की आवश्यकता होती है? हमें प्रति रात लगभग दो-तीन यात्री मिलते हैं, ज्यादातर नर्सें जो देर तक अस्पतालों में काम करती हैं. हम रात में बहुत से छोटे अपराध होते देखते हैं. इसलिए हमारा काम महत्वपूर्ण है. किसी को सड़कों पर होना चाहिए.'

(फोटोः आशना बुटानी/द क्विंट)

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