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‘आजाद’ देश भारत में महिलाओं के पहनावा चुनने की आजादी पर सवालों का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है. पिछले कुछ दिनों में दो नेता, महिलाओं के कपड़ों को लेकर अपनी तंग सोच का प्रदर्शन कर चुके हैं. जहां उत्तराखंड के सीएम को ‘फटी जींस’ नापसंद लगी, तो वहीं, बंगाल बीजेपी चीफ दिलीप घोष को 66 साल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ‘साड़ी में पैर दिखाने’ से परेशानी हो रही है. अहम पदों पर बैठे इन नेताओं के ये बयान बताते हैं कि मर्द महिलाओं को उनके पहनावे से आंकते रहेंगे और महिलाओं की उपलब्धियों को डिस्क्रेडिट करने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे.
महिलाएं फिर चाहे संसद में पहुंच जाएं या सालों-साल किसी राज्य की कमान संभाल लें, पुरुष नेताओं की सेक्सिस्ट टिप्पणियों का शिकार वो बार-बार हुई हैं.
ताजा मामला पश्चिम बंगाल से है. पश्चिम बंगाल चुनाव में जमकर वार-पलटवार हो रहा है. इसी जोश में कई नेता अपनी मर्यादा भी भूल गए हैं. 24 मार्च को बंगाल बीजेपी चीफ दिलीप घोष ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर बेहद शर्मनाक टिप्पणी की.
बनर्जी के पैर में लगी चोट पर सवाल उठाते हुए घोष ने कहा, “जनता ममता का मुंह भी नहीं देखना चाहती है, इसीलिए वो अब अपना टूटा हुआ पैर दिखा रही हैं... वो कैसी साड़ी पहनती हैं, जिसमें एक पैर ढंका है और एक दिख रहा है? अगर वो अपना पैर ही दिखाना चाहती हैं तो बरमूडा पहन सकती हैं, इससे पैर साफ दिखेगा.”
ऐसे घटिया बयान के बाद उम्मीद की जाती है कि नेता कम से कम माफी मांग ले, लेकिन दिलीप घोष तो अपना बचाव करते दिखे. जब बयान पर विवाद और सोशल मीडिया पर आलोचना हुई तो उन्होंने कहा, “हम उनसे उम्मीद करते हैं कि वे बंगाल की संस्कृति के अनुरुप व्यवहार करें. साड़ी में पैर दिखाने वाली महिला सही नहीं लगती. लोग इस पर आपत्ति जता रहे हैं, तो मैंने भी आपत्ति जताई.”
चंद दिनों पहले की बात है जब ‘फटी जींस’ पर बयान देकर उत्तराखंड सीएम तीरथ सिंह रावत विवादों में घिरे थे. सीएम साहब ने महिलाओं की फटी जींस से उनके संस्कार देख लिए थे और सर्टिफिकेट दे दिया था कि वो बच्चों को सही नहीं पाल सकतीं.
नेताओं के ये बयान न केवल उनकी घटिया मानसिकता की प्रदर्शनी है, बल्कि ये समाज में बेहद अंदर तक घुसे उस पूर्वाग्रह को भी दिखाता है, जो महिलाओं को “सुंदर चेहरे और औरत” के चश्मे से परे देखने में असफल है. ये वही सोच है जो ये मानती है कि महिलाएं अच्छी ड्राइवर नहीं हो सकतीं. ये बयान जेंडर रोल्स को लेकर पूर्वाग्रहों को भी पुख्ता करते हैं.
फेमिनिस्ट्स इस बात पर जोर देती आई हैं कि “Gender is a social construct”, यानी आसान भाषा में कहूं तो किसी जेंडर को किस तरह से बर्ताव करना है, ये पैमाने समाज ने तय किए हैं.
याद है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक महिला की काबिलियत को #DespiteBeingAWoman बोलकर कम कर दिया था? जून 2015 में ढाका यूनिवर्सिटी में आतंकवाद पर बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना की तारीफ करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि “महिला होने के बावजूद आतंकवाद को लेकर उनका जीरो टॉलरेंस है.”
ऐसा नहीं है कि महिलाओं के खिलाफ ये सेक्सिस्ट टिप्पणियां देने में केवल बीजेपी के नेता अव्वल हैं. भारत में हर सौ कदम पर संस्कृति भले बदल जाती है, लेकिन नेताओं की सोच नहीं. सेक्सिज्म (महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह या भेदभाव) और मिसॉजिनी (महिलाओं के प्रति नफरत) से हर पार्टी बराबर पीड़ित है. कुछ उदाहरण:
साल 2012 में कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने स्मृति ईरानी के लिए कहा था,
PRP नेता जयदीप कावड़े ने साल 2019 में स्मृति ईरानी के लिए कहा था,
बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ने बीएसपी सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती की उम्र और कपड़ों पर सवाल उठाते हुए कहा था,
जून 2013 में एसपी नेता ओम प्रकाश सिंह ने मायावती की अपीयरंस पर कमेंट किया था,
घटिया बयानबाजी के लिए पहचाने जाने वाले बीजेपी नेता सुरेंद्र सिंह ने मार्च 2019 में कहा था,
प्रियंका गांधी इन टिप्पणियों का सामना तब से कर रही हैं, जब उन्होंने राजनीति में कदम भी नहीं रखा था. कांग्रेस का महासचिव बनाए जाने के बाद तो उनकी तरफ ये तीर खूब आए. साल 2019 में बिहार में तब मंत्री रहे विनोद नारायण झा ने कहा था,
एक और बीजेपी नेता हरीश द्विवेदी ने प्रियंका गांधी के कपड़ों पर सवाल उठाते हुए कहा था,
बीजेपी नेता विनय कटियार ने जब ये बयान दिया तो शायद उन्हें लगा होगा कि वो अपनी पार्टी की नेता की तारीफ कर रहे हैं. अफसोस!
ऑस्ट्रेलियन फेमिनिस्ट लेखिका जीडी एंडरसन की एक बात यहां फिट बैठती है. फेमिनिज्म को लेकर उन्होंने कहा था, “फेमिनिज्म महिलाओं को ताकतवर बनाने के बारे में नहीं है. महिलाएं पहले से ताकतवर हैं, दुनिया इस ताकत को किस तरह देखती है, उस नजरिए को बदलना ही फेमिनिज्म है.”
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