अगर एक स्कूल प्रिंसिपल का बेटा अपनी क्लास में भारी अंतर से टॉप करे तो उसकी दो वजह हो सकती हैं. पहली ये कि वो बेहद प्रतिभाशाली है और दूसरी ये कि टीचर इस बात से डरते हैं कि बेटे को ज्यादा नंबर ना दिए तो प्रींसिपल साहब नाराज हो जाएंगे.
ये बात मेरे दिमाग में इलेक्टोरल बॉन्ड के ताजा आंकड़ों को देखने के बाद आई. ये आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2018 में जारी किए गए 222 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड में ये 210 करोड़ रुपये चुनावी चंदे के तौर पर बीजेपी के खाते में आए. यानी कुल रकम का 95 परसेंट.
कथा जोर गरम है....
चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए लॉन्च किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को हुआ तो क्या ये महज इत्तेफाक है या फिर इसमें कोई पेंच है? अब वो पेंच क्या हो सकता है ये समझने से पहले मैं जरा आपको इलेक्टोरल बॉन्ड की फिलोसफी समझाता हूं.
1 फरवरी 2017 को दिए अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि अब पॉलिटिकल पार्टियों को चंदा कैश में नहीं इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिलेगा. कौन कितने रुपये का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदकर किस पार्टी को दे रहा है इसकी जानकारी किसी को नहीं होगी. मतलब ये कि आपने अगर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे तो वो चंदे की शक्ल में बीजेपी को गए या कांग्रेस को, मायावती की पार्टी को मिले या ममता बनर्जी को, ये बात खुद आपके अलावा किसी को पता नहीं होगा.
माना जाता है कि चुनाव में जिस पार्टी के जीतने की संभावना होती है लोग उस पार्टी को खुलकर चंदा देते हैं ताकि सरकार बनने के बाद उससे फायदा लिया जा सके.
और सरकार में होने वाले सारे भ्रष्टाचार की जड़ यही है.
क्विंट की स्पेशल इनवेस्टिगेशन
तो जनाब, बीजेपी सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई यानी जब पार्टी को ये पता ही नहीं होगी कि चंदा किसने दिया तो वो फायदा किसे पहुंचाएगी. अब सुनने में तो इंतजाम बढ़िया है लेकिन क्विंट रिपोर्टर पूनम अग्रवाल ने स्पेशल इंवेस्टीगेशन से आपको बताया कि इंतजाम इतना भी बढ़िया नहीं है.
पूनम ने 1-1 हजार रुपये के दो इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे. बॉन्ड में कोई छुपा हुआ फीचर या नंबर है या नहीं, ये जानने के लिए उन्हें देश की एक नामी लैब में फॉरेंसिक टेस्ट के लिए भेजा गया. और रिजल्ट ये आया कि इलेक्टोरल बॉन्ड में अल्फा न्युमेरिक नंबर्स हैं जो नंगी आंख से तो नहीं दिखते लेकिन अल्ट्रा वायलेट लाइट में टेस्ट करने पर ओरिजिनल डॉक्यूमेंट के दाहिने ऊपरी कोने में एक छिपा हुआ सीरियल नंबर दिखता है
हाथ कंगन को आरसी क्या?
यानी पर्दे में रहने दो पर्दा ना उठाओ का राग भले ही अलापा जा रहा हो लेकिन असल में बैंक के जरिए सरकार के पास इस 'अल्फा-न्युमेरिक नंबर' के जरिए पूरा ब्योरा होगा.
किस बैंक अकाउंट से कितने के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए और वो किस पार्टी को चंदे के तौर पर दिए गए. ये खबर आपको न्यूज चैनलों और अखबारोंं ने ना तब दिखाई थी और ना अब दिखाएगा.
लेकिन साहब, हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या? आंकड़े कुछ बोल रहे हैं और वो ये कि 1 मार्च 2018 से 10 मार्च 2018 के बीच लॉन्च किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की 95 परसेंट रकम बीजेपी को चंदे के तौर पर मिली
अब हो सकता है कि बॉन्ड खरीदने वाले लोगों की पहली पसंद ही बीजेपी हो लेकिन मैं ये फैसला आप पर छोड़ता हूं. आप खुद तय कीजिए कि क्लास में टॉप करने वाला स्टूडेंट असाधारण तौर पर प्रतिभाशाली है या फिर ज्यादा नंबर इसलिए मिले हैं कि कहीं ‘प्रिंसिपल साहब’ नाराज ना हो जाएं.
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