advertisement
(*पहचान छिपाने के लिए कुछ नाम बदल दिए गए हैं)
"SC/ST कैंपस छोड़ो", "जय परशुराम". 2 दिसंबर 2022 को, जब दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (IIMC) में इंग्लिश जर्नलिज्म के स्टूडेंट परेश* ने अपनी क्लास का व्हाट्सएप ग्रुप खोला, तो वह यह देखकर चौंक गए कि उनके बैचमेट अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समूह के छात्रों को निशाना बनाते हुए विवादास्पद नारों के साथ इस तरह के मीम्स शेयर कर रहे हैं.
दलित छात्र परेश ने द क्विंट को बताया, "पहले, मुझे लगा कि यह प्रतिक्रिया में थी. उसी दिन, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) कैंपस के अंदर की दीवारों पर ब्राह्मण विरोधी नारे लिखे गए थे. लेकिन हमने उन नारों को नहीं लिखा. फिर यह मीम हमारे व्हाट्सएप ग्रुप पर क्यों शेयर किया गया? मैं उस छात्र का सामना करना चाहता था जिसने इसे भेजा था, लेकिन उस समय हिम्मत नहीं जुटा सका."
"ब्राह्मण कैंपस छोड़ो", "खून बहेगा", "ब्राह्मण भारत छोड़ो" और "ब्राह्मण-बनिया, हम तुम्हारे लिए आ रहे हैं!" - कुछ ऐसे ही नारे दीवारों पर लिखे गए और इनकी तस्वीरें बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं.
जेएनयू प्रशासन ने मामले में जांच का आदेश दिया और वामपंथी और दक्षिणपंथी झुकाव वाले छात्र संगठनों ने एक-दूसरे को दोषी ठहराया. दूसरी तरफ IIMC में, इस घटना ने जातिगत पूर्वाग्रह के मामलों और इस मुद्दे को हल करने के लिए फैकल्टी की अनिच्छा के तमाम सबूत सामने ला दिए.
5 दिसंबर 2022 को छात्रों के अनौपचारिक/अनऑफिसियल व्हाट्सएप ग्रुप पर कथित मीम्स शेयर किए जाने के बाद, स्क्रीनशॉट के साथ एक गुमनाम शिकायत, संगीता प्रणवेंद्र (इंग्लिश जर्नलिज्म विभाग की प्रमुख) और सुरभि दहिया (इंग्लिश जर्नलिज्म कोर्स डायरेक्टर) सहित फैकल्टी सदस्यों को भेजी गई थी.
इनमें से दहिया ने शिकायत को IIMC के डायरेक्टर जनरल (डीजी) संजय द्विवेदी सहित संबंधित अधिकारियों को भेज दिया. इन शिकायतों की कॉपी द क्विंट के पास है.
शिकायतकर्ता ने क्विंट को बताया, "प्रोफेसर सुरभि ने शिकायत को डीजी, एडीजी और अन्य अधिकारियों को भेज दिया. पांच महीने से अधिक हो गए हैं और हमें उनसे कोई जवाब नहीं मिला है."
द क्विंट ने IIMC को ईमेल लिखकर उनका जवाब मांगा. प्रोफेसर दहिया ने कहा कि वह पिछले एक साल से चाइल्ड केयर लीव पर थीं और 24 अप्रैल को ही दोबारा ज्वाइन किया. उन्होंने कहा, "मुझे कुछ भी पता नहीं है. डीजी या एडीजी से बात करें."
नाम न छापने की शर्त पर, IIMC के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया कि शिकायत पर विचार नहीं किया गया क्योंकि इसे गुमनाम रूप से भेजा गया था. अधिकारी ने कहा, "अगर शिकायतकर्ता अपनी पहचान उजागर नहीं करते हैं, तो हम कोई कार्रवाई नहीं कर सकते हैं. कॉलेज में एक एससी/एसटी सेल है. वे अपनी समस्याओं के साथ सेल से संपर्क कर सकते हैं, लेकिन शिकायत दर्ज कराने और हमारे द्वारा मामले की जांच करने के लिए शिकायतकर्ता को आगे आना होगा."
साक्षी*, एक दलित छात्रा, पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ती थीं. अब IIMC में पढ़ने वालीं साक्षी ने कहा कि उन्होंने बहुत पहले ही जाति-संबंधी पूर्वाग्रहों के प्रति "चमड़ी मोटी" कर ली थी.
उन्होंने कहा, "ज्यादातर एससी/एसटी छात्र कम उम्र से ही जातिगत पूर्वाग्रह का सामना करना सीखते हैं. इसका सामना आप स्कूल, यूनिवर्सिटी, और वर्कप्लेस पर करते हैं. जब मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी तब मैंने इसके लिए एक मोटी चमड़ी विकसित की थी. जिस कॉलेज में मैंने दाखिला लिया था उसमें एससी/एसटी सेल काम नहीं करता था. हमने आंदोलन किया और इसे क्रियाशील बनाने के लिए प्रशासन पर दबाव डाला. इस तरह के आंदोलन की गुंजाइश IIMC तक सीमित है. वे (फैकल्टी) सीधे कहते हैं कि हमें एक्टिविज्म में शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि यह हमारे प्लेसमेंट को प्रभावित करेगा."
एक तरफ तो IIMC की आधिकारिक वेबसाइट पर दावा किया गया है कि पिछड़े वर्ग के छात्रों के खिलाफ अत्याचार के मामले में कड़ी कार्रवाई करने के लिए एक SC/ST सेल है, तो दूसरी तरफ द क्विंट से बात करने वाले किसी भी छात्र को ऐसे किसी सेल के अस्तित्व के बारे में पता नहीं था.
साक्षी* ने कहा, "यह केवल कागज पर मौजूद है. हमने इस सेल के बारे में कभी नहीं सुना है. जाति आधारित हिंसा/उत्पीड़न के मामले में हमारे पास शिकायत करने का एकमात्र तरीका हमारे कोर्स प्रभारी या डीजी और एडीजी से संपर्क करना है. आप देखिए क्या होता है जब हम ऐसा करते हैं."
द क्विंट से बात करते हुए, भारतीय दलित अध्ययन संस्थान के अध्यक्ष और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव थोराट ने कहा कि कॉलेज के अधिकारियों को गुमनाम रूप से शिकायत भेजी गई थी, सिर्फ इस वजह से उन्हें इस मामले में कार्रवाई करने से खुद को नहीं रोकना चाहिए था.
सुखदेव थोराट ने कहा, "अगर वे (अधिकारी) जानते थे कि कोई समस्या थी, तो उन्हें तुरंत इस पर कार्रवाई करनी चाहिए थी. अगर शिकायतकर्ता की पहचान पता है तो इसे प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन ऐसा कोई सख्त नियम नहीं है कि शिकायतकर्ता को अपनी पहचान प्रकट करनी ही है. उन्हें स्थिति के बिगड़ने के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए था."
थोराट पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 2007 में गठित थोरट समिति के अध्यक्ष थे, जो हाशिए के समूहों के छात्रों द्वारा सामना किए जाने वाले जाति-आधारित भेदभाव पर एक रिपोर्ट की जांच करने और प्रकाशित करने के लिए बनी थी.
परेश ने शुरू में सोचा था कि व्हाट्सएप ग्रुप पर शेयर किया गया SC/ST को कैंपस छोड़ने के लिए कहने वाला मीम, जेएनयू में जो कुछ हुआ था, उसकी "प्रतिक्रिया" थी. लेकिन अब परेश का मानना है कि उनकी यह धारणा "बेहद गलत" थी और हाशिए के समुदायों के छात्रों को टारगेट करने वाले मीम उसके बाद अक्सर ग्रुप पर शेयर किए जाते हैं.
उन्होंने क्विंट को बताया, "एक बार जब यह शुरू हुआ, तो यह बंद नहीं हुआ. हर कुछ दिनों में दलित या आदिवासी छात्रों को निशाना बनाने वाले मीम या मैसेज आते थे. उन्होंने बाबासाहेब (अंबेडकर) को भी नहीं बख्शा."
दलित समुदाय की स्टूडेंट रेखा* ने कहा, "कोई सोच सकता है कि एक मीडिया संस्थान होने के नाते, IIMC एक प्रगतिशील/प्रोग्रेसिव जगह है. हालांकि, ऐसा बिल्कुल नहीं है. कैंटीन में समोसा खाते हुए मैंने अपने क्लासमेट्स को यह कहते सुना है कि 'आरक्षण की वजह से हरिजन भरे हुए हैं कैंपस में"
'हरिजन' दलित समुदाय के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अपमानजनक शब्द है. 2017 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "हरिजन" और "धोबी" जैसे शब्द जो "जाति को नीचा दिखाने" के लिए उपयोग किए जाते हैं.
एसटी समुदाय के एक छात्र रमेश* के लिए, उनके घर और दिल्ली के बीच की दूरी बहुत लंबी है.
"हममें से कई लोगों के लिए दिल्ली या मुंबई जैसे बड़े शहरों में करियर बनाने का सपना देखना आसान नहीं है. शुरू के सालों में वित्तीय कठिनाइयों और शिक्षा तक पहुंच सहित कई बाधाएं हैं. इसके बावजूद जब हम में से कुछ यहां पहुंचते हैं, तो हमारे साथी सबसे पहले हमें नक्सलियों, हरिजनों और चमारों और फिर अपने क्लासमेट के रूप में देखते हैं.'
रमेश ने कहा कि कई उदाहरण हैं जब उनके क्लासमेट्स ने उनसे पूछा है कि क्या उन्होंने या उनके परिवार के किसी व्यक्ति ने कभी नक्सलियों को पनाह दी है या आंदोलन का हिस्सा थे.
IIMC के कई छात्रों ने क्विंट से बात की और आरोप लगाया कि जब भी पढ़ाई में आरक्षण का विषय चर्चा में आता है तो उनके बैचमेट उनका मजाक उड़ाते हैं.
संस्थान के एक दलित छात्र सुरेश* ने कहा, "एक बार जाति पर केंद्रित एक शॉर्ट फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद, प्रोफेसर ने डिस्कशन का मौका दिया. अधिकांश छात्रों ने दावा किया कि जाति अतीत की अवधारणा है और आजके दौर में यह मौजूद नहीं है. जब मैंने विरोध किया, तो मुझे वामपंथी झुकाव वाले उदारवादी के रूप में लेबल किया गया."
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर इस व्यवहार के गंभीर प्रभाव के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, "जब मैंने मीम का स्क्रीनशॉट देखा जिसमें 'एससी/एसटी कैंपस छोड़ो' कहा गया था, तो मुझे शारीरिक रूप से बीमार महसूस हुआ. मैं घर वापस जाना चाहती था और बस सोना चाहती थी."
उन्होंने कहा, "अगर मैं इन घटनाओं के बारे में अपने माता-पिता को बताती हूं, तो वे मुझे कोर्स छोड़कर घर लौटने के लिए कहेंगे. और मैं यह होने नहीं दे सकती."
यह पहली बार नहीं है कि IIMC, जिसे व्यापक रूप से भारत का एक प्रमुख पत्रकारिता स्कूल माना जाता है, अपने कैंपस में जातिगत पूर्वाग्रह की अनदेखी करने के लिए विवाद में पड़ गया है.
2016 में, कैंपस में एक "जाति युद्ध" उस समय छिड़ गया जब दलित छात्रों ने आरोप लगाया कि हिंदी पत्रकारिता के एक छात्र उत्कर्ष सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट में समुदाय के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की. इसके बाद, 18 दलित छात्रों और तीन अन्य ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के एक दलित पीएचडी छात्र रोहित वेमुला के लिए एक बैठक की, जिनकी सुसाइड से मौत हो गयी थी.
जहां एक तरफ उत्कर्ष सिंह ने दलित छात्रों द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाया, वहीं कैंपस के दलित छात्रों ने उससे सार्वजनिक माफी की मांग की.
उसी वर्ष, द कारवां की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि IIMC के एकैडमिक एसोसिएट नरेंद्र सिंह राव को कथित तौर पर दलित सफाई कर्मचारियों की अवैध बर्खास्तगी का विरोध करने पर बाहर निकाल दिया गया था.
पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार, तत्कालीन डीजी को संबोधित एक खुले पत्र में राव ने दावा किया कि उन्हें दंडित किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने कैंपस में कमजोर लोगों के खिलाफ किए जा रहे कई अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)