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“करनाल (Karnal) में किसानों का धरना हुआ खत्म, लाठीचार्ज कांड की होगी जांच, मृतक के 2 परिजनों को मिलेगी नौकरी”.... इस खबर को किसान और खट्टर सरकार के बीच सुलह का नतीजा मान लिया जाए, ये हजारों किसानों के साथ इंसाफ नहीं होगा. क्योंकि किसानों ने अपने दम पर ये लड़ाई जीती है, अगर ये कहा जाए कि, इस बार किसानों ने अपना हक छीनकर ले लिया है तो ये गलत नहीं होगा.
जो खट्टर सरकार लगातार किसानों को हुड़दंगी बता रही थी, कानून तोड़ने वाला बता रही थी, उसी सरकार को अब किसानों के आगे झुकना पड़ा है.
पूरे करनाल एपिसोड ने फिर से साबित कर दिया है कि 10 महीने गुजर जाने के बाद भी तीन कृषि कानून को लेकर किसान आंदोलन की धार कमजोर नहीं पड़ी है. साथ ही एक बार फिर ये बता दिया है कि, किसानों का आंदोलन और किसान किसी मीडिया कवरेज के मोहताज नहीं हैं.
एक साल पहले 10 सितंबर 2020 को हरियाणा के पिपली में किसानों पर इसी तरह के लाठीचार्ज ने तीन कृषि अध्यादेशों का विरोध करने वाले किसानों को एकजुट करने का काम किया था.
28 अगस्त को करनाल में जब हरियाणा बीजेपी की एक बैठक का ऐलान हुआ तो SKM के नेतृत्व में किसान संगठनों ने करनाल में सड़कों को जाम करने का फैसला लिया. लेकिन जैसे ही किसान प्रदर्शन करने पहुंचे तो उन पर जमकर पुलिस ने लाठियां बरसाईं. पुलिस की इस कार्रवाई में कई किसान खून में सन गए और उनके सिर पर गंभीर चोटें आईं.
लेकिन मामले ने तूल तब पकड़ा जब एक वीडियो सामने आया जिसमें डिप्टी मजिस्ट्रेट (SDM) आयुष सिन्हा पुलिसकर्मियों को ये आदेश देते देखे गए कि वहां से कोई भी गुजरे तो उसका सिर फूटा होना चाहिए. इसी लाठीचार्ज में कथित तौर पर एक किसान सतीश काजल की मौत हो गई. हालांकि अंत तक प्रशासन मौत का कारण दिल के दौरे को बताकर अपना पल्ला झाड़ता रहा.
इसके बाद बयानों का एक पूरा दौर चला. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने करनाल में पुलिस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा था कि शांतिपूर्ण विरोध का आश्वासन दिया गया था, लेकिन पुलिस पर पथराव किया गया.
दूसरी तरफ उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि "आईएएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी."
लाठीचार्ज पर दुष्यंत चौटाला के अलग राग का कारण था उनका जननायक जनता पार्टी से सम्बन्ध और जननायक जनता पार्टी का किसानों से सम्बन्ध. जाट किसानों को अपना कोर वोटबैंक मानने वाली जेजेपी ने पीछे एक साल में बीजेपी के साथ सरकार में रहने के कारण अपना व्यापक आधार खोया है. चौटाला का यह अलग राग उसी आधार को संजोये रखने की कोशिश है.
हालांकि बाद में दुष्यंत चौटाला ने ये कहकर पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया कि, अगर कोई किसी के सामने हमला करने आएगा तो माला लेकर स्वागत नहीं किया जाएगा.
इसके बाद सरकार का रुख देखते हुए भी प्रशासन ने भी सख्त रवैया अपना लिया. डीएम करनाल ने मुख्यमंत्री के साथ सुर से सुर मिलाते हुए पुलिस कार्रवाई को जायज बताते हुए कहा कि, जिन्होंने प्रदर्शन किया था उन्होंने कानून तोड़ा था और ऐसे में उन्हें मुआवजा नहीं दिया जाएगा. साथ ही ये भी साफ कहा कि किसी भी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं होगी.
करनाल एपिसोड ने किसान आंदोलन को फिर से जगाने का काम किया है और इसमें कोई दो राय नहीं है. SKM के बैनर तले मुजफ्फरनगर के सरकारी इंटर कॉलेज मैदान में आयोजित किसान महापंचायत से किसानों ने केंद्र सरकार को स्पष्ट संकेत दिया है कि वे विवादास्पद कृषि कानूनों पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. भीड़ का आलम यह कि राज्य सरकार को पीएसी की छह कंपनियां, रैपिड एक्शन फोर्स की दो कंपनियां और 1,200 पुलिसकर्मी को तैनात करना पड़ा.
अब करनाल में जो कुछ भी हुआ है, उसकी गूंज कहां तक जाएगी, ये तो फिलहाल कोई नहीं जानता है, लेकिन बीजेपी शासित राज्यों और खासतौर पर जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उनके लिए ये एक खतरे की घंटी जैसा है. किसानों के लिए करनाल मामले ने एक बड़े बूस्ट की तरह काम किया है, साथ ही ये भी बता दिया है कि अपना हक सरकारों से कैसे लेना है.
जो किसान पिछले 10 महीने में सरकार के रुख से हताश हो रहे थे, उनमें भी इस जीन ने जान फूंकने का काम किया है.
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