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किसान दिवसः कानून वापसी से किसानों ने खोजी अपनी ताकत लेकिन पिक्चर अभी बाकी

किसानों पर कर्ज और आत्महत्या के आंकड़े दोनों बढ़ रहे हैं

वकार आलम
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>किसान दिवसः कानून वापसी से किसानों ने खोजी अपनी ताकत...समस्याएं अभी बाकी हैं</p></div>
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किसान दिवसः कानून वापसी से किसानों ने खोजी अपनी ताकत...समस्याएं अभी बाकी हैं

फोटो- क्विंट हिंदी

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23 दिसंबर का दिन हमारे देश में किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है जो चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन है. चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) ने कहा था कि ‘किसान (Farmer) इस देश का मालिक है, परंतु वह अपनी ताकत को भूल बैठा है.’ लेकिन किसान हाल ही में मोदी सरकार को झुकाकर घर लौटे हैं तो क्या किसान ने अपनी ताकत को अब पहचान लिया है. अगर हां तो किसानों ने अपनी इस ताकत को दोबारा कैसे खोजा है और अब भारत का किसान फिलहाल कहां खड़ा है?

जब किसान तीन कृषि कानून वापस कराकर घर लौट रहे थे तो उनके चेहरे पर जीत की मुस्कान और आंखो में संतुष्टि का पानी था. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी पर कमेटी बनाने के बाद भी किसान को कुछ खास हासिल नहीं हुआ है. जिस पर बाद में विस्तार से बात करेंगे उससे पहले ये समझिये कि किसान ने अपनी ताकत को दोबारा कैसे खोजा है.

किसान ने अपना जोर आजमा लिया है?

याद कीजिए आजादी के बाद 70 के दशक का वो दौर जब भारत भयंकर भुखमरी से दोचार था. तब एमएस स्वामीनाथन और बाबू जगजीवन राम की जोड़ी ने इस देश के किसानों को हरित क्रांति से जोड़ना शुरू किया और देखते ही देखते किसानों ने खाद्यान्न की कमी वाले देश को ऐसे देशों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया जो अनाज बेचने में सबसे अग्रणी थे.

उतना दूर नहीं जाना चाहते तो करीब ही देख लीजिए जब कोरोना के बाद देश में लॉकडाउन लगा और तमाम धंधे बंद हो गये. देश की अर्थव्यावस्था चौपट हो गई और जीडीपी पाताल में पहुंच गई तब भी कृषि इकलौता ऐसा क्षेत्र था जिसमें ग्रोथ के आंकड़े पॉजिटिव थे. ये एक और मौका था जब किसानों ने देश को बताया कि यहां उनकी अहमियत क्या है.

लेकिन सरकारों के लिए किसान कभी उतना अहम रहा ही नहीं. कोरोना के दौर में जब देश के किसान के काम की वाहवाही हो रही थी तभी केंद्र सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई. आनन-फानन में नोटिफिकेशन जारी करके एक तरीके से किसानों पर ये कानून थोप दिए गए. इससे किसान को धक्क लगा, और पंजाब में आंदोलन की चिंगारी सुलगने लगी.

ये चिंगारी नवंबर 2019 आते-आते शोला बन चुकी थी और किसान देश के कोने-कोने से दिल्ली की ओर कूच करने लगा था. बैरिकेड, लाठी और पानी की बौछार को चीरते हुए किसान दिल्ली के दर पर जा पहुंचे. किसान दिल्ली जाना चाहते थे लेकिन पुलिस ने उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया तो वो बॉर्डर पर ही बैठ गए और इस तरह एक ऐतिहासिक आंदोलन शुरू हो गया.

किसान शुरू से ही मांग कर रहे थे कि ये तीनों कानून वापस लिए जायें, लेकिन उस वक्त किसानों की ये मांग नामुमकिन सी लगती थी. मीडिया से लेकर आम आदमी तक कहता था कि कानून वापस तो नहीं होंगे, संशोधन भले ही हो जायें. क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार को उनके समर्थक सख्त सरकार कहते थे और कहा जाता था कि नरेंद्र मोदी जो फैसला कर लेते हैं उससे पीछे नहीं हटते और इस पर पूर्ण बहुमत उन्हें बल देता है.

लेकिन फिर जो हुआ वो आपके सामने है, ना सिर्फ तीन कानून वापस हुए बल्कि एमएसपी पर कमेटी बनाने के अलावा भी किसानों की लगभग सभी मांगो को सरकार ने मान लिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद टीवी पर आकर माफी मांगते हुए कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया.

किसानों की इस जीत के बाद इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले योगेंद्र यादव ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा था कि

नेता अब जान गए हैं कि किसानों से भूलकर भी पंगा मत लेना.
योगेंद्र यादव

14 दिसंबर को हरियाणा के जींद में किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि, किसानों और मजदूरों में बड़ी से बड़ी ताकत को घुटने के बल झुकाने की शक्ति होती है. उनका कहना था कि,

किसानों ने आंदोलन के माध्यम से अपनी ताकत को दिखा दिया है, आने वाले समय में भी कोई सरकार अब किसानों के खिलाफ इस प्रकार का षड्यंत्र नहीं कर पाएगी.
राकेश टिकैत, किसान नेता

अभी कहां खड़े हैं किसान?

हाल ही में किसानों ने एक बड़ी जीत हासिल की है, लेकिन इससे किसानों ने क्या जीता है...कुछ भी नहीं. क्योंकि जो तीन कृषि कानून वापस हुए हैं उन्हें ना तो किसानों ने मांगा था और ना ही इसका नफा नुकसान अभी जमीन पर उतरा था. इन कानूनों से पहले भी किसानों की हालत कोई अच्छी नहीं थी जो आज भी वैसी की वैसी ही है. इन कानूनों से पहले जिन समस्याओं से किसान जूझ रहा था वो आज भी मौजूद हैं.

इन कानूनों से पहले जिस किसान पर कर्ज था वो आज भी मौजूद है. इन कानूनों से पहले जो किसान अच्छा बीज मांग रहा था वो अब भी मांग रहा है. इस जीत से किसान केवल आधा कदम चला है और वो है एमएसपी पर कमेटी, लेकिन उसका भविष्य भी अभी गर्भ में ही है.

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स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट

किसानों की वर्षों से मांग रही है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू किया जाये, लेकिन कोई भी सरकार पूरे तरीके से स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई है. सत्ता संभालने से पहले नरेंद्र मोदी भी किसानों से स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का वादा किया था.

जिस पर बीजेपी सरकार दावा करती है कि उन्होंने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया है, लेकिन किसान नेता इससे इत्तेफाक नहीं रखते वो कहते हैं कि सरकार आंकड़ों के मकड़जाल में किसानों को उलझाये रखना चाहती है.

दरअसल स्वामीनाथन आयोग ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए तीन फॉर्मूले दिये थे, जिन्हें अलग-अलग वक्त में सरकारों को अपनाने की सिफारिश की गई थी. ये तीन फॉर्मूले थे, पहला ए2, दूसरा ए2+एफएल और तीसरा सी2.

ए2' में फसल उत्पादन के लिए किसानों द्वारा किए गए सभी तरह के नकद खर्च शामिल होते हैं. किसान जो खाद, बीज, जुताई, बुवाई पर खर्च करता है.

'ए2+एफएल' में नकद खर्च के साथ-साथ फैमिली लेबर यानी फसल उत्पादन लागत में किसान और उसके परिवार का अनुमानित मेहनताना भी जोड़ा जाता है.

'सी2' में खेती के व्यावसायिक मॉडल को अपनाया गया है. इसमें कुल नकद लागत और किसान के पारिवारिक पारिश्रामिक के अलावा खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है.

सरकार फिलहाल ए2+एफएल फॉर्मूले पर किसानों को एमएसपी दे रही है, जबकि किसान सी-2 फॉर्मूले के तहत एमएसपी तय कराना चाहते हैं, हालांकि सरकार ए-2+एफएल फॉर्मूले में भी जिस तरीके से किसान के खर्च की गणना करती है उससे भी किसान इत्तेफाक नहीं रखते.

द इकॉनोमिक टाइम्स के मुताबिक, सरकार खेत में काम करने वाले किसान को अकुशल श्रमिक मानती है और जितने वक्त वो खेत में मौजूद रहता है, केवल उसी की गणना इस फॉर्मूले के तहत की जाती है. जबकि किसान खेत के बाहर भी अपनी खेती से जुड़े काम करता है. इसका नतीजा ये होता है कि सरकारी कैलकुलेशन के हिसाब से किसान का मेहनताना मात्र 15 से 20 रूपये रोजाना ही जोड़ा जाता है.

कर्जदार होता किसान

मानसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने संसद में आंकड़े पेश करते हुए बताया था कि देश के किसान पर करीब 16.8 लाख करोड़ का कर्ज है और फिलहाल कर्जमाफी की कोई योजना सरकार के पास नहीं है.

फोटो- क्विंट हिंदी

किसान आत्महत्या

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक बीते 24 साल में (1995-2019) तक देश भर में 3,47,911 लाख किसान आत्महत्या (Farmer suicide) कर चुके हैं. एनसीआरबी के आंकड़े कहते हैं कि 2016 के बाद जहां किसानों की आत्महत्या के आंकड़ो में कमी आ रही थी वहीं 2020 में किसानों की आत्महत्या के आंकड़ो में बढ़ोत्तरी देखी गई.

फोटो- क्विंट हिंदी

किसानों की समस्याएं सिर्फ यही नहीं हैं जो सरकारी कागजों पर दिखती हैं. जो आंकड़े ऊपर दिख रहे हैं उनके पीछे की कहानी हर खेत की मिट्टी की तरह अलग है. हर राज्य के किसानों की समस्याएं अलग हैं और हर राज्य में हर इलाके के किसानों की समस्याएं अलग हैं. लेकिन कुछ ऐसी मुसीबतें हैं जिनसे हर लगभग हर किसान दोचार हो रहा है, जैसे-

  • गरीबी

  • अशिक्षा

  • जमीनी विवाद

  • अच्छे बीज की कमी

  • सिंचाई के संसाधनों का अभाव

  • फसलों के भंडारण की कमी

सरकारें क्या कर रही हैं?

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था और 2022 अब दूर नहीं है. दरअसल जब से देश आजाद हुआ है हर नेता के लिए किसान भाषणों में तो रहा लेकिन जमीन तक उसको फायदा पहुंच नहीं पाया. तभी तो जब हम आजादी के 75 साल की खुशी में अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो दूर कहीं गांव में कोई किसान केवल इसलिए आत्महत्या कर लेता है कि उसे उसकी फसल का दाम सही नहीं मिला, जबकि सरकारें दावा करती हैं कि वो तो एमएसपी दे रही हैं.

आज किसान दिवस है

भारत के पांचवे प्रधानमंत्री बने चौधरी चरण सिंह बहुत कम वक्त के लिए पीएम की कुर्सी पर बैठे लेकिन उस वक्त में जो फैसले किसानों के लिए उन्होंने लिए वो किसानों के हितकारी माने गए. यही वजह है कि 2001 से भारत सरकार ने उनकी जयंती 23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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