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रोज नए ऐलान,फिर क्यों है मजदूर परेशान: पथराव-प्रदर्शन, इंतजार-कतार

अभी भी मजबूर हैं मजदूर...

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बेंगलुरू में घर जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की खोज में प्रवासी
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बेंगलुरू में घर जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की खोज में प्रवासी
(फोटो: PTI)

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केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक कसमें खाती हैं कि वो मजदूरों और गरीबों की खैरख्वाह हैं. लॉकडाउन में फंसे मजदूरों के लिए रोज नए ऐलान होते हैं. कभी खाते में पैसे, कभी खाना देंगे, फिर ट्रेन चलाने का ऐलान, फिर मुफ्त यात्रा की बात लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि मजदूर आज भी परेशान हैं. ट्रेनों में एक अदद सीट के लिएं जंग लड़नी पड़ रही है. रजिस्ट्रेशन, मेडिकल, टिकट. बसों से सफर करने वालों की भी मुसीबतें हैं. नतीजा ये है कि कहीं-कहीं मजदूरों के बेबसी गुस्सा बनकर फूट रही है.

सूरत में फूटा मजदूरों का गुस्सा

गुजरात के सूरत में पिछले कई हफ्तों से प्रवासी मजदूर प्रदर्शन कर रहे हैं. लगभग एक महीने से घर जाने का इंतजार कर रहे इन मजदूरों की ये बेबसी अब गुस्से में बदल रही है. सोमवार को एक बार फिर मजदूर सड़कों पर उतरे और पुलिस के साथ झड़प हुई, जिसके बाद पुलिस को आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा. शहर में मजदूर पिछले कई हफ्तों से घर जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. मजदूरों का कहना है कि उनके पास सैलरी नहीं है और सरकार भी कोई सुविधा नहीं दे रही है.

“बिहार का रहने वाला हूं. यहां मील में काम करता हूं. अभी तक हमें मार्च की पगार भी नहीं मिली है. खाने का ठिकाना नहीं है, सरकार ने कोई सुविधा नहीं दी है. पुलिस वाला आता है, मारता है, डराता है और जाता है”
प्रवासी मजदूर

गुजरात के अरावली जिले में भी प्रवासियों और पुलिस के बीच झड़प हो गई. प्रवासियों को वापस भेजने के लिए गुजरात ने अपना बॉर्डर खोलने का फैसला लिया है. गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरावली में मजदूरों के लिए व्यवस्था की गई है. यहां घर जाने की मांग कर रहे कुछ प्रवासी मजदूरों और पुलिस के बीच झड़प हो गई.

तमिलनाडु में भी प्रदर्शन

तमिलनाडु से भी कुछ ऐसी ही खबरें सामने आ रही हैं. तिरुपुर रेलवे स्टेशन पर आज प्रवासी मजदूरों ने घर जाने के लिए ट्रेन की मांग को लेकर प्रदर्शन किया. तिरुपुर में दूसरे राज्यों के करीब 2 लाख मजदूर फंसे हुए हैं. इनके पास न ही नौकरी है और न ही खाना खरीदने के लिए पैसे.

घंटों लाइनों में लगने को मजबूर

समस्या केवल यही नहीं है. ट्रेन से मजदूर घर तो तब पहुंचेगा जब वो ट्रेन तक पहुंच पाएगा. देशभर से जो वीडियो सामने आ रहे हैं, उसमें देखा जा सकता है कि कैसे मजदूरों को रजिस्ट्रेशन के लिए लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है. गुजरात के अहमदाबाद के चंदोनगर इंडस्ट्रियल एरिया में रजिस्ट्रेशन के लिए प्रवासी घंटों लंबी लाइनों में लगने को मजबूर हैं. मई की गर्म दोपहर में इन मजदूरों के लिए किसी तरह का इंतजाम नहीं किया गया है.

मजदूरों के लिए क्यों नहीं हो रहा PM-CARES फंड का इस्तेमाल

देशभर के अलग-अलग हिस्सों में फंसे मजदूरों के लिए स्पेशल श्रमिक ट्रेन चलाई जा रही है. सरकार का कहना है कि घर वापसी का मुद्दे का हल निकल गया है, लेकिन क्या ये काफी है? खबर आई कि रेलवे मजदूरों से ट्रेन का किराया ले रही है. जब जमकर आलोचना हुई तो बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने साफ किया है कि, प्रवासी मजदूरों से कोई पैसा नहीं लिया जाएगा. इसके बाद रेलवे की सफाई आई कि वो प्रवासियों से कोई किराया नहीं वसूल रहा है, बल्कि राज्य सरकारों से केवल मानक किराया वसूल रहा है, जो कुल लागत का महज 15% है.

नीतीश कुमार ने ऐलान किया है कि प्रवासियों की घर वापसी का पूरा खर्चा बिहार सरकार उठाएगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि क्वॉरन्टीन पूरा होने पर सभी प्रवासियों को किराए के पैसे वापस किए जाएंगे.

सोशल मीडिया पर लोगों ने सवाल उठाया है कि मजदूरों के आने-जाने के लिए PM-CARES फंड का इस्तेमाल क्यों नहीं हो रहा है. बता दें कि PM-CARES फंड को कोरोना वायरस जैसी इमरजेंसी के लिए बनाया गया है, जिसका उद्देश्य इससे प्रभावित हुए लोगों को मदद देना है.

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फिटनेस सर्टिफिकेट के लिए देने पड़ रहे पैसे

नौकरी जाने से आर्थिक तंगी झेल रहे इन मजदूरों की मजदूरी का फायदा उठाया जा रहा है. मुंबई के कांदीवली इलाके में डॉक्टरों से सर्टिफिकेट लेने के लिए मजदूरों से 100 रुपये वसूले जा रहे हैं. चौंकने वाली बात ये है कि डॉक्टर सभी मजदूरों का टेस्ट भी नहीं कर रहे हैं. ग्रुप का लीडर को बाकी सभी लोगों का सर्टिफिकेट डॉक्टर बिना चेक करे ही दे रहे हैं.

इसमें सवाल ये भी उठता है कि सर्टिफिकेट देने के बाद अगर व्यक्ति संक्रमित निकल आया तो? अभी ये साफ नहीं है कि मजदूरों के लिए ट्रेन कब चलेगी. ऐसे में नांदेड़ जैसा वाकया अगर हुआ, तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?

शौचालय में किया गया क्वॉरन्टीन

मध्य प्रदेश के गुना जिले से मानवता को शर्मसार करने वाली तस्वीरें आई हैं. राजगढ़ से लौटे मजदूर के परिवार को शौचालय में रुकना पड़ा. बताया जा रहा है कि टोडर ग्राम पंचायत के स्कूल में जगह नहीं मिल सकी इसलिए परिवार को शौचालय में ही क्वॉरन्टीन रहना पड़ा. गांव के सरपंच और सचिव ने स्कूल खोलने की जहमत नहीं उठाई.

राज्य सरकारों की राजनीति

एक तरफ जहां राज्य सरकारों ने मजदूरों की वापसी का रास्ता साफ किया है, तो राज्य सरकारें इसपर राजनीति कर इसमें और परेशानी खड़ी कर रही हैं. महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक ने योगी सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश प्रवासी मजदूरों को लेने के लिए कई तरह के अड़ंगे लगा रही है. मलिक का कहना है कि महाराष्ट्र में यूपी के 30 लाख से भी ज्यादा लोग रहते हैं, ऐसे में सभी का टेस्ट कर उन्हें भेजने में सालभर लग जाएगा.

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Published: 04 May 2020,07:37 PM IST

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