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माइक, जिनकी पहचान कुकी के तौर है, वो दो दिन पहले पूरे परिवार के साथ मणिपुर की राजधानी इम्फाल से निकलने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने कहा, "क्या आप जानते हैं, मेरे साथ सबसे ज्यादा मजेदार बात क्या है... मेरे पिता एक जनजाति से हैं और मेरी मां एक मैतेई हैं."
माइक ने आगे कहा, "मैंने कभी भी किसी भी विरोध प्रदर्शन के बारे में इंस्टाग्राम या ट्विटर पर कोई पोस्ट शेयर नहीं की है. मैं बस अपने काम से काम रख रहा था, घर पर टीवी देख रहा था, जहां अब धूल और राख के अलावा कुछ नहीं है, और अपनी एक साल की बच्ची का ध्यान रख रहा था. 3 मई को हिंसा भड़कने से पहले, उसी दिन मैं अपनी पत्नी के साथ डॉक्टर के यहां मंथली प्रेग्नेंसी चेक-अप के लिए हॉस्पिटल गया था. मेरी पत्नी हमारे दूसरे बच्चे के साथ 6 माह की प्रेग्नेंट है."
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हाल ही में हुई हिंसा के भड़कने की मुख्य वजह मैतेई समूह द्वारा एसटी दर्जे को लेकर समय के साथ चली आ रही मांग है, जिसका कुकी, नागा और अन्य जनजाति विरोध करते हैं.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मणिपुर हिंसा में अब तक 60 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. भले ही अशांति का केंद्र चुराचंदपुर है, लेकिन यह हिंसा राजधानी इम्फाल तक पहुंच गई है, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों मणिपुरी शहर छोड़कर भाग रहे हैं. बहुत से लोगों ने अपनी कारों या सैन्य वाहनों का उपयोग करके इम्फाल के बाहरी इलाके में शरण ली है, वहीं जो लोग सक्षम हैं, उन्होंने फ्लाइट पकड़ने की व्यवस्था की है, वो भी काफी महंगे टिकट लेकर. कई लोग मणिपुर राइफल्स (एमआर) कैंपों में या कांगपोकपी जिले में अपने रिश्तेदारों के पास शरण ले रहे हैं.
द क्विंट ने कुकी समुदाय के कई ऐसे लोगों से बात की जो राजधानी इम्फाल छोड़कर बाहर निकल आए हैं. हिंसा कब शुरु हुई? और आप लोग वहां से कैसे बचकर निकले? इन सवालों के जवाब उनमें से ज्यादातर लोगों ने लगभग एक जैसे ही दिए हैं. जॉन (बदला हुआ नाम) अन्य दिनों की तरहअपने ऑफिस में थे और शाम को लगभग 6.30 बजे उन्हें उनके दोस्तों और परिजनों के फोन आने लगे.
जॉन ने बताया, "वे मुझे सतर्क रहने के लिए कह रहे थे. साथ ही उन्होंने कहा कि मैं अपने सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों की सुरक्षा सुनिश्चित कर लूं. मुझे ये काफी अजीब लगा. इसलिए, मैंने अपने कामकाज से संबंधित सभी मैटेरियल इकट्ठे किए और फटाफट अपने परिवार के पास घर पहुंच गया. हमने अपने एजुकेशन सर्टिफिकेट, हेल्थ इंश्योरेंस डॉक्यूमेंट्स और इस तरह के दस्तावेज भी साथ रख लिए थे. मैंने यह भी सुना था कि उन्होंने चर्चों पर हमला करना शुरू कर दिया था, जोकि उससे काफी नजदीक है, जहां मैं रहता हूं."
इसी तरह, इम्फाल की एक छात्रा चेन (बदला हुआ नाम) ने कहा कि 3 मई की रात वह अपनी बहन और दोस्तों के साथ किराये के मकान में थी. "तभी रात को लगभग 8 बजे अचानक हमने फायरिंग की आवाज सुनी. लोग घरों को बंद करने और घर के अंदर रहने की चेतावनी देते हुए बाहर चिल्ला रहे थे."
इम्फाल में एक जला हुआ घर
इम्फाल में एक जला हुआ घर
इम्फाल में एक जला हुआ घर
इम्फाल में एक जली हुई एक दुकान
चश्मदीदों के मुताबिक, 3 मई की शाम को उपद्रवी भीड़ राजधानी के चारों ओर फैल गई और हिंसा-आगजनी का सिलसिला शुरू हो गया.
चेन ने अपने आंसुओं को रोकते हुए कहा, "मैं आपको यह बता दूं कि उन्होंने हमारे घरों, जिसमें मेरा घर भी शामिल है, में आग लगाने से पहले हमारी सारी संपत्ति लूट ली. यह कितना सिस्टमैटिक था. सरकार की तरफ से कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया. हमारे पास मुश्किल से अपने दस्तावेज और पानी की बोतल इकट्ठा करने का समय था. मुझे नहीं पता कि हमारे घर को क्या हुआ है."
एक और कुकी शख्स, थंग (बदला हुआ नाम), जोकि अपने परिवार के साथ इम्फाल के बाहरी इलाके में चले गए हैं, वे दावे के साथ कहते हैं, "इम्फाल में, पहले वे हट्टा गोलापति क्षेत्र से आए, जो एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. शाम करीब 7 या 8 बजे, उन्होंने सभी वाहनों को आग के हवाले करना शुरू कर दिया. 'वे' से मेरा मतलब मैतेई भीड़ से है."
द क्विंट से बात करने वाले ज्यादातर कुकियों ने कहा कि उन्होंने 3 मई की रात भीड़ (उपद्रवियों) से छिपते-छिपाते और उनसे भागते हुए काटी थी. उदाहरण के लिए, जॉन बताते हैं कि स्थानीय मैतेई निवासियों ने उन्हें और उनके परिवार को बार के छोटे से कोने में और बाद में एक स्टोर में छिपने में मदद की थी.
"हमारे मैतेई पड़ोसी, जिन्होंने हमें लगभग 10 मिनट के लिए शरण दी थी, उनके गेट के बाहर उपद्रवी भीड़ आक्रामक रूप से चिल्ला रही थी. भीड़ के जाने के बाद, मैतेई पड़ोसी ने हमसे एमआर (MR) कैंप के लिए जाने के लिए कहा. हमारे पड़ोसियों की कारें और अन्य वाहनों में तोड़फोड़ या आगजनी शायद इसलिए नहीं की गई क्योंकि वे मैतेई हैं."
स्थानीय मैतेई लोगों (जिन्होंने उनकी रक्षा की और उन्हें अस्थायी रूप से आश्रय दिया) के प्रति आभार व्यक्त करते हुए जॉन ने कहा कि कहानी के इस हिस्से को न बताना उनके लिए गलत होगा. वे कहते हैं, "हमें आश्रय न देने के लिए उनके पास हर वजह थी. लोग डरे हुए हैं, यहां तक कि मैतेई भी. लेकिन फिर भी वे हमें अंदर ले गए और हमें छिपने में मदद की. जब उन्हें हमें सैन्य शिविर के लिए जाने के लिए कहना पड़ा, तो वे अपनी सुरक्षा के लिए ऐसा कर रहे थे. मैं अभी भी उनका आभारी हूं."
मणिपुर में केवल कुकी ही हमले का शिकार नहीं हुए हैं.
इम्फाल की ग्राउंड रिपोर्ट्स से पता चलता है कि राजधानी में किस हद तक गैर-मैतेई संपत्तियों को निशाना बनाया गया है. एक विशेष उदाहरण देखें तो, जहां एक लाइन से कई दुकानों को तहस-नहस कर दिया गया, वहीं उनके बीच एक ऐसी दुकान भी थी, जो हिंसा से अछूती रही. वह एक मैतेई की दुकान थी, उस दुकान में मैतेई की पहचान का स्टीकर लगा हुआ था.
(फोटो : अक्षय डोंगरे/इंस्टाग्राम)
इंफाल में एक सैन्य बस में शहर छोड़कर बाहर निकलने वाले कुकी समुदाय के लोग
चेन ने द क्विंट को बताया कि उसे, उसकी बहन, उसके चचेरे भाई और उसकी चाची को रात 2 बजे तक बेसमेंट में छिपे रहना पड़ा था, जिसके बाद वे कुछ फोन करने के लिए बाहर निकले थे.
वर्ल्ड मेइती काउंसिल के चेयरमैन हेइगुरुजम नाबाश्याम ने मैतेई के नजरिये से स्थिति पर टिप्पणी करते हुए द क्विंट से कहा कि मुझे उम्मीद है कि मीडिया इम्फाल से परे जाकर उनके समुदाय पर हुए अत्याचार को भी कवर करेगा.
नाबाश्याम ने आरोप लगाते हुए कहा, "कुकी और मैं कुकी उग्रवादियों को लेकर कह रहा हूं कि उन्होंने चुराचंदपुर में मैतेई गांवों में आग लगा दी है. वे जानबूझकर सशस्त्र समूहों में बिष्णुपुर जिले में गए, जहां मैतेई बड़ी संख्या में रहते हैं."
पिछले हफ्ते बुधवार को बिष्णुपुर से हिंसा की खबर आई थी. यह राज्य के उन कई जिलों में से एक है जहां कर्फ्यू और धारा 144 लागू है.
इसी तरह, वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप फंजौबम ने द क्विंट से कहा कि भले ही इम्फाल में मैतेई विरोधी हिंसा नहीं हुई, लेकिन मैतेई को कहीं और निशाना बनाया जा रहा है. "मैं बस मीडिया से यही अनुरोध करना चाहता हूं कि वे निष्पक्ष रहे."
उन्होंने आगे कहा कि इम्फाल में चीजें बेहतर हो रही हैं. "इस समस्या को सुलझाने के लिए दोनों समुदायों के नेताओं और प्रतिनिधियों ने हाल ही मुलाकात की है. ऐसे में, यह एक अच्छा संकेत है."
राजधानी में हिंसा के बीच इम्फाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट कुकियों के बाहर निकलने के लिए एक सुरक्षित ठिकाना साबित हुआ है. एयरपोर्ट के एक अधिकारी ने पीटीआई से बात करते हुए कहा कि फ्लाइट्स की महंगी टिकटों के बावजूद 6 मई तक यहां से कुल 108 उड़ानों और 10,531 यात्रियों की आवाजाही हुई है.
जॉन ने अफसोस जताते हुए कहा, "4 मई की सुबह 7 बजे हमें एयरपोर्ट ले जाया गया. मैं पहले प्रार्थना करना चाहता था, लेकिन चर्चों को आग के हवाले कर दिया गया था. चाहे जो भी हो, हमने एयरपोर्ट पर रहने का फैसला किया, क्योंकि यहां हम सुरक्षित महसूस कर रहे थे. यहां कई परिवार, बच्चे, महिलाएं एक साथ कम जगह में फर्श पर सो रहे थे. ये सभी कुकी समुदाय के लोग थे. यह दृश्य देखकर काफी दुख हुआ. यह सब कुछ ही घंटों में हुआ था."
(फोटो: Accessed by Quint Hindi)
(फोटो: Accessed by Quint Hindi)
(फोटो: Accessed by Quint Hindi)
(फोटो: Accessed by Quint Hindi)
अपनी एक साल की बच्ची और गर्भवती पत्नी के साथ शनिवार की रात दिल्ली पहुंचने में कामयाब रहे माइक ने कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वहां से बाहर निकला कितना महंगा था, एयरपोर्ट पर मौजूद लोग अपने लिए और दूसरों के लिए मिलने वाली उड़ान का जश्न मना रहे हैं." माइक आगे कहते हैं, "जब मैंने दिल्ली में लैंड किया और एयरपोर्ट से बाहर निकला तो ऐसा लगा कि मेरे पास जीवन में वह सब कुछ है, जिसकी मुझे जरूरत है. हालांकि, मैंने इम्फाल में काफी कुछ खोया है, लेकिन कम से कम मेरे पास अब भी मेरी बेटी और पत्नी हैं. हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होगा."
वाकई में, हर कोई इम्फाल नहीं छोड़ पाया है; क्योंकि कुछ कुकी अपने रिश्तेदारों या अपने मैतेई दोस्तों के यहां शरण लिए हुए हैं. वहीं, कुछ लोग एमआर कैंपों में रुके हुए हैं.
जैसे ही थुंग के फोन में बैटरी खत्म होने की चेतावनी आती है, वे एक आखिरी बात कहते हैं, "यह 2023 है. तुम मेरी जिंदगी क्यों बर्बाद करना चाहते हो? मैं यह समझता हूं कि हमारे बीच असहमति है, लेकिन क्या हम बैठकर बात नहीं कर सकते? क्या यह जरूरी कि आप पहले मेरा घर जला दें? आप मेरी जान ले लें? अब यह बात मेरी समझ से परे है."
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