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मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में ओबीसी (OBC ) आरक्षण को लेकर गफलत की स्थिति बनी हुई है. हाईकोर्ट के स्टे के बीच राज्य सरकार ने ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में सरकारी कॉलेज में एडमिशन लेने वाले, सरकारी परीक्षा दे चुके, या फिर देने जा रहे कैंडिडेट्स के बीच ये कन्फ्यूजन है कि हाईकोर्ट का आदेश सच है या सरकारी ऐलान. सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं एमपी में आरक्षण का ये विवाद शुरू कहां से हुआ और वर्तमान परिस्थितियों में आरक्षण किस तरह से दिया जाएगा.
मध्यप्रदेश में 15 महीने चली कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था. मार्च 2019 में सरकार ने अध्यादेश के जरिए ये आरक्षण लागू किया, लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. लेकिन, बाद में जुलाई 2019 में सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराने के बाद सभी शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण लागू कर दिया.
कमलनाथ सरकार में ओबीसी वर्ग का आरक्षण बढ़ाकर 27% करने के बाद हाईकोर्ट में सरकार के फैसले के विरोध में 6 याचिकाएं लगीं. इनपर सुनवाई के दौरान 19 मार्च 2019 को कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी कर कहा कि फैसला आने तक ओबीसी वर्ग को 14% ही आरक्षण दिया जाएगा.
मप्र लोकसेवा आयोग ने मेडिकल अधिकारी की भर्ती से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 31 जनवरी, 2020 को जारी एक आदेश में कहा कि भर्ती नोटिफिकेशन के हिसाब से हो सकती है.
जनवरी 2020 के लोकसेवा आयोग के आदेश को हाईकोर्ट ने 13 जुलाई, 2021 को मोडिफाई कर दिया. और कहा कि कोरोना महामारी को देखते हुए भर्ती की सूची 27% के हिसाब से तैयार कर लें, लेकिन भर्ती फिलहाल 14% के हिसाब से ही की जाए.
मप्र सरकार ने रोक हटाने को लेकर हाईकोर्ट में अंतरिम आवेदन लगाया. 1 सितंबर,2021 को मामले की सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक ने मांग खारिज करते हुए कहा कि अंतरिम आदेश नहीं, अब मामले में अंतिम आदेश ही दिया जाएगा. अगली सुनवाई 20 सितंबर को होनी है.
मप्र सरकार ने OBC वर्ग को 27% आरक्षण देने का ऐलान जरूर किया है. लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग के 2 सितम्बर, 2021 के इस आदेश में ये भी स्पष्ट किया गया है कि नीट 2019-20, मेडिकल अधिकारी, पीएससी और शिक्षकों की भर्ती पर हाईकोर्ट के स्टे के चलते रोक रहेगी. बाकी सभी परीक्षाओं और एडमिशन में ओबीसी को 27% आरक्षण दिया जाएगा.
ओबीसी आरक्षण 27% दिए जाने के विरोध में याचिका दायर करने वालों का कहना है कि इससे सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में सभी वर्गों को दिया जाने वाला कुल आरक्षण 50% से ज्यादा हो रहा है, जो कि संवैधानिक नहीं है.
1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में फैसला देते हुए कुल मिलाकर सभी वर्गों को मिलने वाले जाति आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय कर दी थी. बाद में ये कानून बन गया कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं दिया जाएगा. जब भी अलग-अलग राज्यों में कोई वर्ग आरक्षण बढ़ाने की मांग करता है, सुप्रीम कोर्ट का यही फैसला आड़े आता है.
एमपी सरकार ने हाईकोर्ट को बताया है कि प्रदेश में ओबीसी आबादी 50 % से ज्यादा है. इस वर्ग के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए 27% आरक्षण देना जरूरी है. मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग (OBC) को लेकर एक आयोग का गठन हुआ था. आयोग की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने का निर्णय लिया गया था. सरकार का कहना है कि 1994 में इंदिरा साहनी केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ विशेष परिस्थितियों में 50% से ज्यादा आरक्षण देने का प्रावधान रखा था.
शिवराज सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने आरोप लगाया है कि कमलनाथ सरकार ने हाईकोर्ट में ओबीसी की आबादी को लेकर गलत आंकड़े पेश किए थे, जिस वजह से स्टे लगा. भूपेंद्र सिंह का आरोप है कि कमलनाथ सरकार ने कोर्ट को मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग की आबादी 27% बताई थी. जबकि असल में एमपी में ओबीसी वर्ग की आबादी 51% से ज्यादा है.
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने 9 अगस्त, 2021 को लोकसभा में 127 वां संविधान संशोधन बिल,2021 पेश किया था. इसकी मदद से संविधान के आर्टिकल 342A, 338B और 366 में संशोधन किया जाएगा, जिसके बाद राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की अपनी सूची तैयार करने का अधिकार मिलेगा.
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