23 अगस्त को मध्यप्रदेश के इंदौर में चूड़ी बेचने वाले मुस्लिम युवक की पिटाई का वीडियो वायरल हुआ. पीटने वाला शख्स उसे कह रहा है कि आगे से हिंदू इलाके में चूड़ी बेचने नहीं आना.इंदौर पूर्व के एसपी आशुतोष बागरी ने लोगों से आग्रह किया कि मामले को सांप्रदायिक रंग ना दें. कलेक्टर का कहना है ये छिटपुट घटनाएं हैं, तूल न दें. लेकिन इंदौर के मुस्लिम युवक की पिटाई का वीडियो हो या उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में मेहंदी लगाने वालों में मुस्लिम चेहरा खोजती क्रांति सेना की खबर, क्या ये घटनाएं आपस में जुड़ी हुई हैं? क्या कोई पैटर्न नजर आता है? कहीं ये सब एक बड़े ‘टूलकिट’ का हिस्सा तो नहीं? भारत को तोड़ने की कोशिश कर रहे ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग‘ की टूलकिट?
'टूलकिट' को समझने के लिए सबसे पहले आप हाल की इन खबरों पर एक नजर डालिए:
22 अगस्त रक्षाबंधन के दिन तस्लीम नाम का शख्स चूड़ी बेचने इंदौर के गोविंद नगर थाने के बाणगंगा क्षेत्र गया लेकिन वहां कुछ लोगों ने उसे बेरहमी से पीटा और धार्मिक गालियां दी.
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हरियाली तीज को क्रांति सेना ने धार्मिक रंग दे दिया.उन्होंने मुस्लिम युवकों से महिलाओं को मेहंदी लगाने से रोकने के लिए शहर में चेकिंग अभियान चलाया.
उत्तर प्रदेश के कानपुर में कुछ लोगों ने मुस्लिम रिक्शा चालक को जय श्रीराम के नारे लगाते हुए बुरी तरह पीटा. जब भीड़ उसे पीट रही थी तब उसकी छोटा बच्ची चिपक कर रो रही थी.
एमपी के ही उज्जैन में एक कबाड़ीवाला से जबरन जय श्री राम बुलवाया गया. वीडियो बनाया गया
फिर मध्य प्रदेश के ही देवास में एक जीरा बेचने वाले को पीटा गया
इन मामलों में तमाम आरोपी अपराध करते वीडियो में नजर आते हैं और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होता है. वीडियो अपराधी खुद बनाता है या फिर अपनी सहमति से बनवाता है. अब जरा इन सवालों के जवाब देने की कोशिश कीजिए
-किसी को पीट रहा व्यक्ति खुद अपने खिलाफ सबूत क्यों रिकॉर्ड करता है?
- अगर किसी लोकल घटना से वो खफा है तो वो क्यों ऐसे वीडियो को वायरल करता है? वो किसको क्या बताना चाहता है?
- ऐसे वीडियो वायरल होने से किसको सियासी फायदा होता है?
इन सवालों के जवाब सोचिए तो समझ में आएगा कि ये क्यों हो रहा है और बिन नकाब ऐसे अपराध करने की हिम्मत कहां से मिल रही है?
ध्रुवीकरण के लिए पहले जहां धमाकों और बड़े कांड की जरूरत पड़ती थी, अब एक चांटे, एक नारे में काम चल जाता है. बस किसी को पकड़ो, पीटो और वीडियो वायरल कर दो.
क्या है इस टूलकिट में ?
1- 'लव जिहाद' के नाम पर भड़काना
इसे 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' की टूलकिट का टूल नंबर 1 कह सकते हैं. नैरेटिव तैयार किया गया कि हिन्दू बहू-बेटियां खतरे में हैं और साथ ही उनके 'जबरन धर्मपरिवर्तन' से धर्म भी खतरे में है. इसपर कई राज्यों ने कठोर कानून भी बना दिए. अब 'धर्म के रक्षक' सरेआम घूम रहे हैं. सड़क पर अदालत लगा रहे हैं. अक्सर पुलिस के सामने प्रताड़ित करते हैं. पुलिस को धमकाते हैं कि एक्शन लो. और पुलिस चुप रहती है या फिर बहुत दबाव पड़ने पर कार्रवाई का खानापूर्ति करती है. हौसला और बढ़ जाता है.
टूलकिट का टूल नंबर 2 -''आर्थिक जिहाद''
फिर समाज को बांटने के इस टूलकिट में है 'आर्थिक जिहाद ' का हथकंडा,जहां डराया जाता है कि मुस्लिम समुदाय आपके रोजगार के साधनों पर कब्जा कर रहा है और इसके कारण आपकी वित्तीय स्थिति और संस्कृति खतरे में है. इसमें घरेलू कामगारों और छोटे कारोबारियों को निशाना बनाया जाता है,जैसे दूध वाले,सब्जी वाले या मीट बेचने वाले आदि. इन्हें निशाना बनाने के लिए फेक न्यूज गढ़े जाते हैं. हिंदू संगठन इनकी दुकानों पर हमला करते हैं. वीडियो बनाकर वायरल करते हैं.
चूड़ीवाले, कबाड़ी वाला और जीरा वाले के साथ पिटाई के पीछे यही एंगल हो सकता है.
टूलकिट का टूल नंबर 3- ''जनसंख्या जिहाद''
फिर इस टूलकिट में है अल्पसंख्यक बना देने का डर.लोगों में यह नैरेटिव फैलाया जाता है कि आने वाले वक्त में मुस्लिमों कि जनसंख्या हिन्दुओं से ज्यादा हो जाएगी और उन्हें "अपने ही देश में अल्पसंख्यक" बनकर रहना पड़ेगा. इस फेक न्यूज का असर कई राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण कानून के पीछे के तर्क में सुनने को भी मिलता है.
टूलकिट का टूल नंबर 4-अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई न होना
वायरल होने वाले वीडियो में प्रत्यक्ष तौर पर भी जो लोग भड़काऊ बयान देते नजर आते हैं उनपर कार्रवाई न होना या भारी हंगामे के बाद सिर्फ कार्रवाई का दिखावा करना भी इस टूलकिट का हिस्सा नजर आता है.जंतर-मंतर पर मुस्लिम विरोधी नारेबाजी के केस में भी यही हुआ.वीडियो में नारे लगाते साफ-साफ दिख रहे लोगों के बावजूद पहले अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज और बाद में हल्ला मचने पर आरोपियों को नामजद किया गया.
इसे अपवाद समझने की भूल न करें. ऐसे उदाहरणों की लंबी लिस्ट है जहां प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई न करके इनको प्रोत्साहित ही किया है.कानपूर में मुस्लिम रिक्शा चालक की पिटाई के केस में आरोपियों को तुरंत जमानत मिल गई क्योंकि उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 147 (दंगा; सजा दो साल), 323 (सामान्य चोट; सजा एक साल), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना; सजा दो साल) और 506 (आपराधिक धमकी; सजा दो साल) के तहत मामला दर्ज किया गया था. ये जमानती धाराएं हैं.
यह भी एक कारण है कि समाज को बांटते इन 'संस्कृति रक्षकों' को अपने जुर्म का खुद वीडियो वायरल करते समय डर नहीं लगता.
टूलकिट का टूल नंबर 5- जुल्म होने पर आवाज उठाने वालों पर ही केस
इस टूलकिट का एक महत्वपूर्ण भाग है जिसपर जुल्म हुआ,जिसने आवाज उठाई, उसपर ही केस दर्ज करना. कानपुर में जिस मुस्लिम रिक्शा वाले पीटा गया उसके बारे में कहा गया कि उसने हिन्दू लड़की से छेड़खानी की थी और धर्म परिवर्तन करने की धमकी दी थी जबकि लड़की की मां ने ऑन कैमरा कहा है कि जो पीटा गया है उसने कोई बदसलूकी नहीं की, उससे कोई झगड़ा नहीं था. इंंदौर का चूड़ीवाला जेल में है. चूड़ीवाले को इंसाफ दिलाने के लिए जिन लोगों ने थाने के बाहर प्रदर्शन किया, उनके बारे में कहा गया कि ये PFI का खेल है. बाद में डीजीपी इससे मुकर गए.
समाज को बांटने के लिए इस 'टूलकिट' को गढ़ कौन रहा है ?
समाज के एक वर्ग को दूसरे के खिलाफ भड़काने और डराने के नए टूलकिट के रूप में नए-नए जिहाद गढ़े जा रहे हैं और यह आसानी से पहले "व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी" और फिर समाज के एक हिंसक भीड़ की जुबान पर दिख रहा है.यह जानने के लिये कि इनको बना कौन रहा है, आपको यह अंदाजा लगाना होगा कि इस टूलकिट से हो रहे समाज के ध्रुवीकरण से किस राजनैतिक सोच/पार्टी को सीधा फायदा मिल रहा है.
मामला लव जिहाद से होते हुए फल जिहाद और यूपीएससी जिहाद तक पहुंच गया है . खुद को तथाकथित राष्ट्रवादी बताने वाले एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम का कंटेंट देखिये.
जिहाद की पूरी चार्ट लिस्ट समझाई गई है. कट्टर जिहाद के रूप में जनसंख्या जिहाद ,लव जिहाद, जमीन जिहाद, शिक्षा जिहाद, पीड़ित जिहाद, सीधा जिहाद और वैचारिक जिहाद के रूप में आर्थिक जिहाद, ऐतिहासिक जिहाद, मीडिया जिहाद, फिल्म और संगीत जिहाद तथा धर्मनिरपेक्ष जिहाद तक शामिल है.
धीरे-धीरे यही लिस्ट फिर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में नजर आती है. गोदी मीडिया की तरफ से यह अकेला उदाहरण नहीं है.
हर दूसरे दिन वायरल होते सांप्रदायिक वीडियो,पोस्टों में एक पैटर्न साफ है कि इन्होंने नकाब के पीछे छुपना छोड़ दिया है.समाज को बांटने वाले असली "टुकड़े-टुकड़े गैंग" को इस टूलकिट में अपने राजनैतिक आकाओं और प्रशासन का संरक्षण नजर आता है.एक खास समुदाय को निशाना बना संस्थागत रूप से फेक न्यूज गढ़ा जा रहा है. इस फेक न्यूज से समुदाय के खिलाफ नफरत बढ़ती है. फेक न्यूज के कारण अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं.. हमलों का वीडियो बनाया जा रहा है, उसे वायरल कराया जा रहा है. जिससे दूर दूर तक समाज बंट रहा है. हद तो ये है कि कई बार उन्हीं गलत तथ्यों के आधार पर लोकतांत्रिक संस्थाओं द्वारा कानून भी बनाये जा रहे हैं.
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