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BOL: क्विंट हिंदी-Google ने मनाया भारतीय भाषाओं की ताकत का जश्न
आज हिंदी क्विंट से जुड़े रहना बहुत अहम है क्योंकि हिंदी क्विंट और गूगल मना रहे हैं भारतीय भाषाओं का जश्न
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भारत
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क्विंट हिंदी और गूगल मना रहे हैं भारतीय भाषाओं की बढ़ती ताकत का जश्न. टेक, मीडिया, पॉलिसी और कॉरपोरेट जगत से जुड़े देश के सबसे शानदार लोग, भारतीय भाषाओं के इंटरनेट रिवॉल्यूशन की तैयारी के लिए एक मंच पर साथ हैं. चर्चा हो रही है इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं के भविष्य की.
इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कई मुद्दों पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि सरकार को नीतियों बनाने पर फोकस करना चाहिए. सरकार का काम धंधा करने और लोगों को सर्विस देने का नहीं है.
भारतीय भाषाओं और संगीत के बीच है खूबसूरत रिश्ता- सोनम कालरा
सिंगर और कंपोजर सोनम कालरा 'सूफी गॉस्पल प्रोजेक्ट' से जुड़ी हैं. वह Bol: Love Your भाषा के जरिए संगीत और भारतीय भाषाओं के संगम की बात कर रही हैं.
विज्ञापन देने वाले भेदभाव क्यों कर रहे हैं?
IPG मीडिया ब्रांड्स की चीफ स्ट्रेटजी ऑफिसर अदिति मिश्रा ने कहा-
ज्यादातर विज्ञापन अभी भी गूगल और फेसबुक के पास जाते हैं क्योंकि उनका सिस्टम है
हर ब्रांड के साथ जुड़ने के कई तरीके होते हैं, इसलिए डिजिटल का दायरा बहुत बड़ा है
टेक्नोलॉजी जब आसान हो जाएगी, अंग्रेजी से अपनी भाषा तक पहुंचने में, तब पैसा आएगा
टेलीविजन में हर विज्ञापन कई भाषाओं में तैयार हो रहे हैं, जहां जो भाषा, वहां वो विज्ञापन
हिंदी विज्ञापन को दूसरी भाषा में बदलने के लिए ट्रांसलेशन नहीं चलता
डिजिटल दुनिया में ट्रांसलेशन करने का आसान तरीका अभी भी काफी मुश्किल है
गूगल ऑनलाइन पार्टनरशिप के डायरेक्टर जयवीर नागी ने कहा-
लोकल भाषाओं का दायरा बहुत बड़ा है, लेकिन इसमें कमाई होने में वक्त लगेगा
अंग्रेजी के मुकाबले भारतीय भाषाओं का डिजिटल प्लेटफॉर्म तेजी से बढ़ रहा है
वीडियो में लोग ज्यादा वक्त दे रहे हैं
विज्ञापन देने वाले डिजिटल क्षेत्र में पैसा लगा रहे हैं
बेहतर कंटेंट जो देगा विज्ञापन उसके पास आएंगे और उन्हें आना पड़ेगा
भारतीय भाषाओं में लोग कितना वक्त दे रहे हैं उनके बारे में रिसर्च सामने आने के बाद विज्ञापन डिजिटल दुनिया में आने लगेंगे
डेलीहंट के फाउंडर वीरेंद्र गुप्ता ने कहा-
भारतीय भाषाओं का नेटवर्क डिस्ट्रिब्यूशन काफी ज्यादा है
भारतीय भाषाओं के प्लेटफॉर्म 3 से 5 साल में कमाई कराएंगे, ये भविष्य के प्लेटफॉर्म हैं. भारत अभी ढाई लाख करोड़ डॉलर की इकनॉमी है
वैकल्पिक बिजनेस मॉडल तैयार करना बहुत अच्छा तरीका है. सब्सक्रिप्शन आय का तरीका हो सकता है
विज्ञापनदाताओं से पैसे लेने के लिए स्टैंडर्ड भी बढ़ाना होगा
इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनंत गोयनका ने कहा-
विज्ञापन देने वालों को डिजिटल मीडिया से बात करके अपनी जरूरतों की चर्चा करनी होगी
विज्ञापन देने वाले हिंदी और भारतीय भाषाओं को विज्ञापन ना देने के बहाने बनाते हैं
सब्सक्रिप्शन का विकल्प आसान नहीं होगा
द क्विंट की को-फाउंडर रितु कपूर ने कहा-
डिजिटल कंपनियों को क्वालिटी दुरुस्त करनी होगी
डिजिटल में निवेश अभी फ्यूचर के लिए किया जा रहा है
एंगेजमेंट बढ़ाने के लिए वीडियो की तादाद बढ़ानी होगी
क्वालिटी के जरिए लोगों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना होगा
यूजर्स से सब्सक्रिप्शन लेने का विकल्प हो सकता है.
बिजनेस के लिहाज से इंटरनेट पर कैसा है अपनी भाषाओं का भविष्य?
सरकार पॉलिसी बनाए पर बिजनेस में दखल ना करे-गडकरी
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा-
मैं इंजीनियर नहीं हूं पर लोग मुझे इंजीनियर कहते हैं. लोग जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते
हमने आईआईटी को आर्थिक मदद देकर कहा कि वो नई टेक्नोलॉजी के लिए काम करे.
चेन्नई आईआईटी की मदद से नई रिसर्च की जा रही है.
लोग टैलेंटेड हैं, पर सरकार में बैठे लोग फाइल से बहुत प्यार करते हैं.
मैंने अपने एक अधिकारी से कहा फाइल पर इतने दिनों तक क्यों बैठे रहते हैं?
जिसे एक तारीख को तनख्वाह मिलती है वो पैसे की अहमियत नहीं समझता
सरकार पॉलिसी बनाए पर बिजनेस में दखल ना करे
आपके बारे में लोग इतनी तहकीकात क्यों कर रहे हैं?
मैं कैलकुलेटेड लीडर नहीं हूं. मीडिया फ्रेंडली नहीं कहा जाता है. जैसा मुझे रहना है वैसा रहता हूं जो खाना है खाता हूं. अपना काम करता रहता हूं. मुझे नहीं मालूम लोग आपसे मेरे बारे में क्यों पूछ रहे हैं.
“जिसका राजा व्यापारी, उसकी जनता भिखारी”
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा-
जितना कंपिटीशन होगा, कंज्यूमर को उतना फायदा होगा.
सरकार का काम धंघा करने और लोगों को सर्विस देने का नहीं है, सिर्फ पॉलिसी बनाना चाहिए.
15 लाख करोड़ रुपए के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए रकम जुटाई गई है प्राइवेट सेक्टर से.
सरकार को हर सेक्टर में प्राइवेट सेक्टर को ओपन करना चाहिए.
राजनीति में कई तरह की लिमिटेशन होती हैं, ये मानना होगा.
सिस्टम को ठेल ठेल कर चलाना पड़ता है, आसानी से नहीं चलता.
सरकार के सिस्टम में इतनी तरह की रुकावटें लगा दी गई हैं कि उसमें काम करना बहुत दिक्कत है.
देश में छपने वाले अखबार का ज्यादातर हिस्सा इंपोर्ट होता है. जबकि देश की पेपर मिलों की हालत खराब हो गई.
बांस को घास होने के बावजूद देश में बांस काटना मना था जिससे देसी पेपर मिलें खस्ता हाल हो गईं.
मोदी जी ने आने के बाद 1200 प्रशासनिक सुधार किए गए हैं.
मंत्रियों को घर और दफ्तरों से ट्रकों से कचरा निकलता है. स्वच्छ भारत में खूब कचरा निकला है.
सभी सेक्टर में रिफॉर्म की जरूरत हैं, मुश्किल आ रही हैं. लेकिन सुधार तेजी से हो रहा है.
नितिन गडकरी ने चुटकी लेते हुए कहा- “मैंने अपने बेटों को कहा है “सरकार किसी भी पार्टी की हो उसके साथ कभी धंधा मत करना”
रुपया क्यों गिर रहा है?- संजय पुगलिया
इंपोर्ट सब्सिटीट्यूट इकोनॉमी बनाने की सलाह दी है पीएम को. जो चीज इस साल इंपोर्ट हो रही है वो अगले साल ना हो और देश उसका विकल्प तैयार करे ऐसा होना चाहिए. गैर जरूरी चीज इंपोर्ट कम से कम होना चाहिए. सरकार ऐसे लोगों को बढ़ावा दे जिससे देश में ही प्रोडक्शन बढ़े.- नितिन गडकरी
देश के योग और आयुर्वेद को दुनियाभर में फैलाया जा सकता है क्योंकि उसकी डिमांड बहुत है.
हम टेक्नोलॉजी कॉपी कर लेते हैं, नई टेक्नोलॉजी और देसी इनोवेशन में बड़ा काम नहीं किया है. भारतीय एंटरप्रेन्योर के लिए दरवाजे पूरे तरह क्यों नहीं खोले हैं?- संजय पुगलिया
कोई भी परफेक्ट नहीं है, कोई दावा भी नहीं कर सकता कि वो परफेक्ट है. अच्छाई का पेटेंट किसी ने लिया नहीं है. अच्छाई दूसरे के पास है तो उसे अपनाना चाहिए. अमेरिका में कोई बात अच्छी है या पाकिस्तान में कोई अच्छी बात है तो उसे स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए. दुनिया में जो चीज अच्छी है उसे अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए. पॉजिटिविटी इसी से आती है.- नितिन गडकरी
हालात बदल रहे हैं, इंटरनेट उसका मिरर बनकर उभरा है-गडकरी
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा-
हालात बदल रहे हैं, और इंटरनेट उसका मिरर बनकर उभरा है
इनोवेशन, एंटप्रेन्योर, टेक्नोलॉजी के दौर से गुजर रहा है देश
परिवर्तन जब आता है तो सबको स्वीकार करना ही पड़ता है
पूरे देश में एक कॉमन भाषा नहीं है, इसलिए सभी भारतीय भाषाएं जरूरी हैं
मोबाइल और इंटरनेट आर्थिक तौर पर सबसे ऊपर और सबसे नीचे के लोगों को जोड़ता है
डिसएडवांटेज रोकने के तरीके भी निकालने होंगे
इंटरनेट में फेक खबरें डालने वालों को रोकना होगा ताकि विश्वसनीयता बढ़े
क्षेत्रीय भाषाओं में इंटरनेट और डिजिटल दुनिया पहुंचने से बहुत फायदा होगा
राघव बहल और गूगल के वाइस प्रेसिडेंट राजन आनंद के बीच चर्चा
'गूगल में बोल कर सर्च करने वाला फीचर जल्द'
गूगल के वाइस प्रेसिडेंट, राजन आनंद ने कहा-
यू ट्यूब में अच्छा कंटेंट बन रहा है. हिंदी और भारतीय भाषाओं में ग्रोथ की सबसे ज्यादा गुंजाइश है वीडियो में.
भारतीय भाषाओं में ग्रोथ आसान नहीं है, पर बहुत बड़े मौके हैं.
NCR अगले दस साल में 1 लाख करोड़ का मार्केट बन जाएगा.
एक एक भाषा को लेकर मार्केट तैयार करना होगा, धीरे धीरे बड़ा मार्केट बन जाएगा.
हमारा मानना है भारत दुनिया का सबसे बड़ा वॉयस टैप इंटरनेट बनेगा.
पढ़ने के बजाए लोग सुनना पसंद करेंगे.
गूगल जल्द ही ऐसा फीचर लाने जा रहा है जिसमें लोग बोलकर सर्च करेंगे और उन्हें जवाब भी ऑडियो यानी बोलकर ही मिलेगा, लिखने और पढ़ने का झंझट खत्म हो जाएगा.
2020 में भारतीय भाषाओं में ऑनलाइन एडवरटिजमेंट मार्केट 6000 करोड़ रुपए का हो जाएगा.
जिन पब्लिशर के पास अच्छा और क्वालिटी कंटेंट हैं उनको अच्छी आय होगी ये तय है.
ऐसी कोई वजह नहीं है जब भारतीय भाषाओं की दर्जनों ऐसी कंपनियां होंगी जिनकी अच्छी खासी कमाई होगी.
यू ट्यूब में 95 परसेंट जो वीडियो देखे जा रहे हैं वो अंग्रेजी के नहीं हैं. भारतीय भाषाओं के हैं.
'भारतीय भाषाओं के ग्रोथ की सबसे ज्यादा संभावनाएं वीडियो में ही हैं'
क्विंटिलियन मीडिया के फाउंडर राघव बहल ने कहा-
पैसा कैसे बनेगा ये ज्यादा जरूरी है, ग्रोथ कैसे बढ़ेगी
वीडियो सबसे ज्यादा ग्रोथ आएगी, तस्वीरों की भाषा नहीं होती
लोग सुनने में समझ जाते हैं, लिखने को समझना कुछ कठिन होता है
भारतीय भाषाओं के ग्रोथ की सबसे ज्यादा संभावनाएं वीडियो में ही हैं
जैसे ही पैसा बनने की गुंजाइश बनेगी, तो इसमें पैसा आने लगेगा और लोग भी आएंगे
तमिल, तेलुगू, कन्नड़, बंगाली जैसी भाषाओं में टेलिविजन मार्केट अपने दम पर चल रहे हैं
सरकार जितनी ज्यादा दूर रहेगी उतना बेहतर रहेगा. सरकार की मदद कम से कम हो
95 परसेंट विज्ञापन की आय गूगल और फेसबुक के हिस्से में जा रही है
पब्लिशर के हाथ में ज्यादा ताकत कैसे आएगी ये ज्यादा अहम है, कमाई का सही बंटवारा जरूरी है कैसे होगा
अच्छे कंटेंट के लिए अमेरिका में भी अच्छे पैसे मिलने लगेंगे
डिजिटल प्लेटफॉर्म में अच्छी कमाई होगी इसकी गारंटी है, इसमें ज्यादा वक्त नहीं लगेगा
डिजिटल प्लेटफॉर्म की लागत, टेलिविजन के मुकाबले बहुत कम है.
टेलिविजन में डिस्ट्रिब्यूशन लागत बहुत ज्यादा है, डिजिटल में गूगल और फेसबुक के इस्तेमाल से पूरी दुनिया तक पहुंचना आसान है
जैसे जैसे दर्शकों की तादाद बढ़ेगी वैसे वैसे कमाई बढ़ती जाएगी
आगे चलकर डिजिटल में सब्सक्रिप्शन आय बढ़ेगी मुझे भरोसा है
'हिंदी ऐप और दूसरी भाषाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा'
शेयरचैट के को-फाउंडर अंकुश सचदेवा ने कहा-
सरकार की तरफ से प्रोएक्टिव होने की जरूरत है, वो तय करे किस तरह की सूचना किस प्लेटफॉर्म पर जानी है.
सरकार पॉलिसी बनाए जिससे भारतीय भाषाओं में डेटा और इंटरनेट कंपनियों को बढ़ावा मिले.
हिंदी में ऐप बनाने के आइडिया पर कोई निवेश करने को तैयार नहीं था.
हिंदी ऐप का आइडिया लेकर निवेशकों को पास गया तो उन्होंने इस पर निवेश करने से इनकार किया.
शुरुआत में हिंदी चैट के ऐप को गंभीरता से लेने वाले बहुत कम थे.
जियो की वजह से हिंदी ऐप और दूसरी भाषाओं के इस्तेमाल को बढ़ाया.
भारतीय भाषाओं के लिए विज्ञापन लाना बहुत मुश्किल काम है.
डिजिटल प्लेटफॉर्म को विज्ञापन देने वालों को लाने में करीब 4 साल लगेंगे.
भारत में टैलेंट की अभी भी बहुत दिक्कत है.
'भारतीय भाषाओं का मार्केट काफी बड़ा'
मीडियोलॉजी के को-फाउंडर मनीष ढींगरा ने कहा-
भारतीय भाषाओं का मार्केट बहुत बड़ा है, भारतीय भाषाओं में जल्द ही 50 करोड़ यूजर्स हो जाएंगे.
हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार की मदद की ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं.
हम लोग अपना रास्ता खुद बनाते हैं, सरकार मदद करेगी तो स्पीड बढ़ेगी पर उसके इंतजार में हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठ सकते.
भारतीय भाषाओं में कंटेट तैयार हो जाता है, लेकिन उसमें पैसा कमाना बहुत मुश्किल होता है.
जब तक भारतीय भाषाओं में पैसा नहीं आएगा तब तक उसमें ग्रोथ की गुंजाइश बहुत कम है.
बहुत कम पब्लिशर के पास क्षमता है कि भारतीय भाषाओं में पैसा बनेगा.
हिंदी, बंगाली, तमिल और तेलगू चार भारतीय भाषाओं में पैसा कमाने के मौके मिल रहे हैं गूगल की तरफ से.
अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं के बीच विज्ञापन की दर में करीब दस गुना का फर्क है.
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'हिंदी में आसानी से इंटरनेट का इस्तेमाल जरूरी'
रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजी के को-फाउंडर और CEO अरविंद पाणि ने कहा-
अंग्रेजी भाषा में जितनी आसानी से इंटरनेट का इस्तेमाल हो रहा है ठीक उसी तरह हिंदी में भी आसानी जरूरी.
अंग्रेजी भाषा के अक्षर को लेकर सभी जगह स्टैंडर्ड है, पर भारतीय भाषाओं के लिए तरह तरह के स्टैंडर्ड है.
भारतीय भाषाओं में एकसमान स्टैंडर्ड नहीं होना भाषाओं के इस्तेमाल में रुकावटें खड़ी कर रहा है.
सरकार से इनोवेशन के मोर्चे पर कोई बड़ी मदद की उम्मीद हम नहीं कर रहे हैं.
यूनिकोड और की बोर्ड में स्टैंडर्ड होना जरूरी है, इससे भाषा लिखना और टाइप करना आसान होगा.
'सबसे बड़ी चुनौती है डेटा हासिल करना'
सौरभ गुप्ता, को-फाउंडर, वर्नाकुलर.एआई
वर्नाकुलर.एआई के को-फाउंडर सौरभ गुप्ता ने कहा-
टेक्नोलॉजी को हिंदी के हिसाब से यूजर फ्रेंडली बनाना सबसे बड़ा चैलेंज है.
डेटा की आसानी से उपलब्धता जरूरी है, सरकारी डेटा हासिल करने में बहुत दिक्कत होती है.
सरकार के सारे आंकड़े और डेटा एक ही जगह उपलब्ध होने चाहिए ताकि रिसर्च करना आसान हो.
डेटा पर जरूरत से ज्यादा सीक्रेसी मुश्किल खड़ी करती है.
सरकार मदद का वादा तो करती है लेकिन मुश्किल होती है.
हमारी सबसे बड़ी चुनौती है डेटा हासिल करना.
अमेरिका में सरकारी डेटा या बिजनेस से जुड़े कोई भी डेटा हासिल करना बहुत आसान है, पर भारत में सबसे बड़ा चैलेंज यही है.
BOL Live: डिजिटल डेमोक्रेसी पर चर्चा
'अंग्रेजी की कीमत पर हिंदी और भारतीय भाषाओं की कुर्बानी नहीं होनी चाहिए'
अरविंद पाणि, को-फाउंडर और CEO, रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजी
रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजी के को-फाउंडर और CEO अरविंद पाणि ने कहा-
भारत में दो क्रांति चल रही हैं, मीडिया और टेलीकॉम
मीडिया जीडीपी में 1 परसेंट योगदान, 77 परसेंट कवरेज
टेलीकॉम जीडीपी में 1.7 परसेंट योगदान और 82 परसेंट कवरेज
हम चीन से सीख सकते हैं, हम जहां 2021 में पहुंचेंगे चीन वहां पहुंच चुका है
चीन ने अपनी जरूरतों और भाषा के हिसाब से इंटरनेट का इस्तेमाल किया
डिजिटल इंडिया के 3 पिलर हैं. मीडिया और टेक्नलॉजी में तो काम हो रहा है पर भाषा में नहीं
भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करने वालों को समानता मिलनी चाहिए
अंग्रेजी की कीमत पर हिंदी और भारतीय भाषाओं की कुर्बानी नहीं होनी चाहिए
हमने अपने इंटरनेट का डिजाइन अंग्रेजी के हिसाब से बनाया है
4 परसेंट से ज्यादा लोग अंग्रेजी में पूरी तरह पारंगत नहीं है
95 परसेंट खरीदारों ने कभी कार्ड का इस्तेमाल नहीं किया
भाषाओं की टेक्नोलॉजी में ज्यादा काम नहीं हुआ है
लिखने में स्टैंडर्ड नहीं होने की वजह से सर्च इंजन का इस्तेमाल कर हुआ है
हम अपनी भाषाओं को किस तरह बरबाद कर रहे हैं ये साफ नजर आता है
हिंदी मीडियम में पढ़ने वालों को दो मोर्चों में जूझना पड़ता है, एक तो अंग्रेजी और दूसरा सब्जेक्ट
क्या भारत में जो अंग्रेजी जानता है सिर्फ उसी को मौके मिलने चाहिए
रोमन में लिखने की परंपरा चल पड़ी है, देवनागरी नहीं
अंग्रेजी भाषा और हिंदी भाषा के लिखने और बोलने का तरीका एक जैसा होना चाहिए
अंग्रेजी और हिंदी के बीच भेदभाव के बजाए हिंदी को बड़े दिल से अंग्रेजी के शब्दों को भी अपनाना होगा.
'दुनिया के ज्यादातर शक्तिशाली देश अपनी ही भाषा का भरपूर इस्तेमाल करते हैं'
'हिंदी की ताकत ने अंग्रेजी को भी मजबूर किया'
संजय पुगलिया, प्रेसिडेंट, एडिटोरियल डायरेक्टर, द क्विंट ने कहा-
हिंदी की ताकत ने अंग्रेजी को भी मजबूर किया.
अंग्रेजी का इंटरनेट यूजर्स अपने शीर्ष पर पहुंच चुका है, हिंदी और भारतीय भाषाओं में ग्रोथ की बहुत गुंजाइश.
40 करोड़ मोबाइल इंटरनेट यूजर्स हैं, जिसमें 30 करोड़ स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने वाले हैं.
अंग्रेजी के सामने हिंदी और भारतीय भाषाओं की ताकत बहुत बढ़ी.
हिंदी को अपनाना बिजनेस की मजबूरी है.
ई बे मशीन लर्निंग का इस्तेमाल शुरू किया तो उनके कारोबार में 20 परसेंट की तेजी आई.
इजरायल, फ्रांस, जर्मनी वगैरह सभी ने अपनी भाषा में इंटरनेट विकसित किया.
आयोजन का मकसद यही बताना है कि देसी तरीके निकालने का वक्त आ गया है.
कंटेंट और बिजनेस दोनों लिहाज से मौकों पर बहुत बड़ा दरवाजा खुल रहा है.
ट्रांसलेशन से काम नहीं चलेगा, हिंदुस्तानी भाषा का सीधा ट्रांसलेशन काफी जटिल है ये मशीन से करना बहुत जटिल.
#Bol में हिंदी पत्रकारिता के दिग्गज हैं मौजूद..
#BOL: भारतीय भाषाओं का जश्न शुरू
#BOL: भारतीय भाषाओं का जश्न कुछ ही मिनटों में
बस थोड़ी ही देर में भारतीय भाषाओं का जश्न
भारतीय भाषाएं कैसे इंटरनेट के बाजार में जमा रही हैं अपनी धाक
इंटरनेट से जुड़े लोगों के लिए होंगी कई भविष्यवाणियां
आज यानी मंगलवार सुबह 11 बजे से जुड़ जाएं क्विंट हिंदी से. क्योंकि क्विंट हिंदी और गूगल एक साथ मना रहे हैं भारतीय भाषाओं की बढ़ती ताकत का जश्न. टेक, मीडिया, पॉलिसी और कॉरपोरेट जगत से जुड़े देश के सबसे शानदार लोग, भारतीय भाषाओं के इंटरनेट रिवॉल्यूशन की तैयारी के लिए एक मंच पर आपको दिखाई देंगे.
आज सुबह 11 बजे से हिंदी क्विंट से जुड़े रहना बहुत अहम है, क्योंकि क्विंट हिंदी और गूगल मना रहे हैं भारतीय भाषाओं की बढ़ती ताकत का जश्न. इस मौके पर जुबानों की इस ऑनलाइन दुनिया को बदलने वाले तमाम लोग एक छत के नीचे इकट्ठा होंगे. चर्चा होगी इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं के भविष्य की, सम्मान होगा उनका, जिन्होंने हमारी अपनी भाषाओं को बढ़ावा देने का काम किया है और सामना होगा चुनौतियों का.
टेक, मीडिया, पॉलिसी और कॉरपोरेट जगत से जुड़े देश के सबसे शानदार लोग, भारतीय भाषाओं के इंटरनेट रिवॉल्यूशन की तैयारी के लिए एक मंच पर आपको दिखाई देंगे.
इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं की बढ़ती ताकत का मनेगा जश्न
क्विंट हिंदी और गूगल के इस खास कार्यक्रम में पूरे दिन इस बात पर चर्चा होगी कि कैसे इंटरनेट पर तेजी से बढ़ती भारतीय भाषाओं को बाजार से जोड़कर उन्हें फायदे का सौदा बनाया जा सकता है.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री हैं. सितंबर 2017 में उन्हें जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई.
राजन आनंदन, वाइस प्रेसिडेंट, गूगल
राजन आनंदन भारत और दक्षिण-पूर्वी एशिया में गूगल के वाइस प्रेसिडेंट हैं. ग्लोब के इस हिस्से में गूगल की सेल्स और ऑपरेशंस की जिम्मेदारी राजन आनंदन के कंधों पर है. दक्षिण-पूर्वी एशिया इंटरनेट के इस्तेमाल के लिहाज से दुनियाभर में सबसे तेजी से विकसित हो रहा इलाका है. गूगल के वाइस प्रेसिडेंट के तौर पर राजन इंटरनेट को उपभोक्ताओं और बिजनेस के लिए सरल बनाने और इनोवेशन को बढ़ावा देने के काम में लगे हुए हैं. ‘इंटरनेट इकोसिस्टम’ का दायरा बढ़ाना उनका लक्ष्य है.
राघव बहल, फाउंडर, क्विंटिलियन मीडिया
राघव बहल देश के जाने-माने एंटरप्रेन्योर और इंवेस्टर हैं, जिनके नाम कई बेमिसाल कामयाबियां दर्ज हैं. भारत के लीडिंग मीडिया ग्रुप Network 18 को खड़ा करने के अलावा उन्होंने moneycontrol.com, bookmyshow.com, firstpost.com और yatra.com जैसे कई वेंचर्स की नींव डाली. राघव फिलहाल नए दौर के डिजिटल मीडिया बिजनेस को खड़ा करने में जुटे हुए हैं.
अनंत गोयनका, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, द इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप
अनंत गोयनका के कार्यकाल में भारत के इस प्रतिष्ठित अखबार समूह ने इंटरनेट की दुनिया में बड़ी छलांग लगाई है. हिंदी न्यूज पोर्टल की जबरदस्त सफलता के बाद इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप मलयालम और तमिल जैसी दूसरी भारतीय भाषाओं की ओर रुख कर चुका है.
वीरेंद्र गुप्ता, फाउंडर & सीईओ, डेली हंट
2007 में वीरेंद्र गुप्ता ने एक मोबाइव वैल्यू एडेड सर्विस कंपनी ‘वर्स इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड’ के तौर पर अपने कारोबार की शुरुआत की. 2015 में उन्होंने अपनी कंपनी को क्लासिफाइड एड कंपनी से न्यूज एग्रीगेटर में तब्दील कर दिया. आज डेली हंट पर आप 14 भाषाओं में 650 से ज्यादा पब्लिशर्स को पढ़ सकते हैं.
अरविंद पाणि, को-फाउंडर & सीईओ, रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजीज प्रा. लि.
अरविंद पाणि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पर स्थानीय भाषाओं के बीच दूरी को कम करने और भाषाई बराबरी का मकसद हासिल करने में लगे हुए हैं. बेंगलुरु की उनकी सॉफ्टवेयर कंपनी सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर किसी भी भाषा में टेक्स्ट कम्युनिकेशन को संभव बनाती है.
इन सभी धुरंधरों के अलावा जयवीर नेगी, रितु कपूर, चेतन कृष्णस्वामी, अंकुश सचदेवा, सौरभ गुप्ता और सोनम कालरा जैसी शख्सियतें को सुनना भी बेहद उपयोगी और जानकारी भरा होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)