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उन्नाव रेप केस के आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर की हैसियत क्या है ? उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में उसका कितना रसूख है? इस बात को आप इस तरह समझ सकते हैं कि, बात-बात में नैतिकता और अनुशासन का दम भरने वाली बीजेपी को इसी कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ कार्रवाई करने में, एक दो नहीं बल्कि पूरे 14 महीने लग गए.
उन्नाव की सरहद में दाखिल होते ही बच्चे-बच्चे की जुबान पर कुलदीप सिंह सेंगर का नाम यूं ही नहीं छाया रहता है. सरकारी ठेके से लेकर शहर के साइकिल स्टैंडों के ठेके तक पर विधायक और उनके गुर्गों का कब्जा आश्चर्य की बात नही. यही नहीं, सेंगर अवैध खनन के खेल का भी बादशाह माना जाता है. अगर किसी ने खिलाफत करने की हिम्मत दिखाई तो दबंगई से या फिर उस पर इतने मुकदमे लादवा दिए जाते कि वो कोर्ट-कचहरी के चक्कर ही काटता रहे. कुल मिलाकर यूपी में सरकार किसी भी पार्टी की हो लेकिन उन्नाव में तो कुलदीप सिंह सेंगर की ही ‘सल्तनत’ चलती है.
रेप केस में सलाखों के पीछे कैद कुलदीप सिंह सेंगर की राजनैतिक हैसियत उन्नाव में काफी गहरी है. आजादी के बाद से ही गांव की राजनीति पर सेंगर परिवार का कब्जा रहा है. कुलदीप को राजनीति अपने नाना बाबू सिंह से विरासत में मिली थी. 21 साल की उम्र में पहली बार 1987 में वो ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ा और निर्विरोध चुने गए. हालांकि विरोधियों ने उनकी उम्र का हवाला देकर उन्हें हटाने की मांग की लेकिन कामयाब नहीं हुए. लगभग 60 सालों तक गांव की राजनीति में सेंगर परिवार का ही कब्जा है. ग्राम प्रधान कौन होगा, ये तय सेंगर परिवार ही करता है. ग्रामीणों में प्रभाव इस कदर है कि कुलदीप सिंह की मर्जी के बगैर दूसरा कोई शख्स पर्चा भरने में सौ बार सोचता है.
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गांव की राजनीति को संभालने के बाद कुलदीप सिंह ने जल्द ही जिले की सियासत में दखल देना शुरु किया. उन्होंने यूथ कांग्रेस से राजनीति में कदम रखा और कुछ सालों में ही दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया. 2002 में उसने बीएसपी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2007 में बीएसपी ने निकाला तो उन्होंने एसपी का दामन थाम लिया. एसपी ने बांगरमऊ से टिकट दिया और वो विधायक बना. बाद में, एसपी ने 2012 में भगवंत नगर सीट से टिकट दिया और वे यहां से भी जीते. उन्नाव की राजनीति में कोई दूसरा दखल दे, ये कुलदीप सिंह सेंगर को मंजूर नहीं था. कहा जाता है कि 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष के टिकट को लेकर तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने पेंच फंसाया तो कुलदीप सेंगर ने उनकी भी नहीं सुनी. उसने तुरंत एसपी से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी ज्वाइन कर ली.
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कुलदीप सेंगर की गिनती यूपी के मजबूत ठाकुर लॉबी के नेताओं में होती है. उसे राजा भैया गुट का अहम सदस्य माना जाता है. कहा तो ये भी जाता है कि समाजवादी पार्टी और बीजेपी में रहने के दौरान राजा भैया ने ही कुलदीप सेंगर की सेटिंग-गेटिंग पार्टी के आला नेताओं से कराई थी. कुलदीप सिंह सेंगर पर अवैध खनन और अवैध तरीके से टोल लगाकर वसूली करने के भी आरोप लग चुके हैं. जानकार बताते हैं कि समाजवादी पार्टी के शासनकाल में इसने अवैध खनन के जरिए अकूल दौलत कमाई. सिर्फ उन्नाव ही नहीं फतेहपुर,बांदा, हमीरपुर में भी अवैध खनन के काम में विधायक का परिवार शामिल रहा.
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कुलदीप सेंगर को ये मंजूर नहीं था कि कोई उसके खिलाफ आवाज उठाए. अपनी तरफ उठने वाली हर उंगली को वो तोड़ देने में विश्वास करता था. उन्नाव में बंदूक के बल पर वो न सिर्फ राजनीति करता था बल्कि पत्रकारों की भी आवाज को दबा देता था. पांच साल पहले उन्नाव में एक चैनल के रिपोर्टर ने जब विधायक के खिलाफ अवैध खनन की खबर चलाई तो उसके गुर्गे रिपोर्टर के पीछे पड़ गए. रिपोर्टर की पिटाई करने के साथ ही उसके खिलाफ मुकदमे लाद दिए. दबंगई की ये फेहरिस्त काफी लंबी है. 2003 अवैध खनन की जांच करने पहुंची पुलिस पर विधायक के भाई अतुल सेंगर ने पुलिस पर फायरिंग कर दी थी, जिसमें डिप्टी एसपी रामलाल वर्मा को पेट में गोली लगी थी.
कुलदीप सिंह सेंगर ने कम समय में ही बीजेपी में भी अपनी जड़ें मजबूत कर ली थीं. विधायक चुने जाने के बाद पार्टी संगठन के अलावा सरकार में भी उसकी खूब चलती थी. योगी सरकार ने उसे मंत्री तो नहीं बनाया लेकिन उन्नाव में उसका रुतबा किसी मंत्री से कम नहीं था. यही कारण है कि रेप के आरोप लगने के बाद पुलिस उसे बचाती रही. विधायक के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पुलिस ने पीड़िता के ही पिता को हवालात में डाल दिया और इस कदर पिटाई की, कि उनकी जान चली गई. यही नहीं, जब पीड़िता इंसाफ के लिए योगी के दरवाजे पर गई तो सरकार ने भी उसकी बात को अनसुना कर दिया, क्योंकि मामला जुड़ा था कुलदीप सिंह सेंगर से. रेप कांड में घिरने के बाद भी बीजेपी की किरकिरी हो रही थी लेकिन पार्टी ने उसके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटाई. उल्टे आखिरी वक्त तक उसे बचाने की कोशिश की गई.
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Published: 31 Jul 2019,02:31 AM IST