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‘हम MLA के डर से कुछ न बोल सके’,पीड़िता के गांव से ग्राउंड रिपोर्ट

पीड़िता के परिवार से गांववालों को हमदर्दी है,लेकिन वो ये भी मानते हैं कि उन्होंने इस लड़ाई में परिवार की मदद नहीं की

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(गांव वालों की पहचान छिपाने के लिए इस आर्टिकल में सभी नाम बदल दिए गए हैं.)

वो एमएलए है, उनके पास अपने आदमी हैं. हम उनके बारे में कुछ बोले तो मारे जाएंगे.’ डरी हुई आवाज में सत्तर साल के किसान सोनाराम ने क्विंट हिंदी को ये बताया. सोनाराम उन्नाव रेप पीड़ितों के घर से कुछ ही दूर बैठे हुए थे.

इस मामले में बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर का नाम सामने आने के बाद से गांव में डर और तनाव का माहौल है. गांव वालों को पीड़िता के परिवार के बचे हुए लोगों से हमदर्दी है, लेकिन उन्होंने क्विंट हिंदी को ये भी बताया कि उन्होंने उन लोगों से बातचीत बंद कर दी है. उन्हें नैतिक समर्थन देना बंद कर दिया है, उन्हें उत्सवों में बुलाना बंद कर दिया है और उन्हें अपनी लड़ाई अकेले लड़ने के लिए छोड़ दिया है.

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उन्नाव रेप केस 28 जुलाई को फिर सुर्खियों में आया, जब रेप पीड़िता, उसकी चाची, मौसी और वकील को ले जा रही कार को सामने से आ रहे एक ट्रक ने जोरदार टक्कर मारी. ट्रक का नंबर प्लेट काले रंग से रंगा हुआ था.

उसकी चाची, जो इस मामले की चश्मदीद हैं, गुजर चुकी हैं. रेप पीड़िता और उसके वकील जीवन और मौत के बीच झूल रहे हैं. ट्रक एक ऐसे शख्स का है, जो बीजेपी विधायक के गांव का रहने वाला है.

परिवार में अब तक चार लोगों की मौत

पीड़ित लड़की का आरोप है कि जून 2017 में वो सेंगर से नौकरी के लिए मदद मांगने गई थी. तभी उसका रेप किया गया था. उस वक्त वो 17 साल की थी. उस समय से अब तक उसके परिवार में चार लोगों की मौत हो चुकी है. ‘गंगा किनारे इस परिवार के कुल चार लोगों का अंतिम संस्कार होगा’ सोनाराम ने कहा.

पहली मौत अप्रैल 2018 में संदिग्ध परिस्थितियों में उसके पिता की हुई थी. आरोप है कि पुलिस हिरासत में कथित पुलिस टॉर्चर से उनकी मौत हुई. इसके बाद नवंबर 2018 में पुलिस उसके भाई को उठाकर ले गई. उसपर विधायक के भाई को पीटने का आरोप था.

अपने बेटों को जेल में पाकर और उनमें से एक की निर्मम हत्या से उनकी 70 साल की मां भारी सदमे में हैं.

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‘हम इसके बारे में बात नहीं करेंगे, लेकिन आपको सुनने में आएगा कि वो भारी सदमे में हैं. वो लगातार बीमार रहती हैं. वो कुछ खा-पी नहीं रहीं. ईश्वर ने उन्हें दो बेटे दिए, लेकिन उनमें से एक भी उनके पास नहीं है, फिर वो क्या करें?’
रवि, किसान, उम्र-23 साल

समय के साथ रेप पीड़ित का परिवार अपने चाचा पर निर्भर होता चला गया. जुलाई 2019 में उन्हें हत्या के एक मामले में दोषी करार देकर जेल में बंद कर दिया गया. उनसे मिलने अक्सर उनका परिवार जेल में जाता था.

उन्हीं से मिलने के लिए जाते वक्त रेप पीड़िता की चाची और मौसी की ट्रक हादसे में मौत हुई. इनमें से एक घटना की चश्मदीद थीं.

‘वो दिल्ली में रहती थीं, लेकिन नवंबर 2018 में जब पुलिस ने उनके पति को गिरफ्तार कर लिया तो वो यहां चली आईं. हादसे की शिकार मौसी उनकी सगी बहन थीं, जो उनके साथ मिलने जाती थीं.’ रवि ने बताया.

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रेप पीड़िता का गांव लखनऊ से करीब 70 किलोमीटर दूर है, जहां क्विंट हिंदी ने उसके गांववालों से मुलाकात की. उन्होंने माना कि डर की वजह से वो इस परिवार के साथ संपर्क नहीं करते.

‘हम नहीं चाहते कि हमारे साथ भी ऐसा ही हो, जो उसके परिवार वालों के साथ हो रहा है, और हम सही हैं, क्यों?’
सोनाराम
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‘हमने उनसे संपर्क करना छोड़ दिया’

उन्नाव रेप पीड़िता 2017 में कथित रेप के पहले से अपनी तीन बहनों, एक छोटे भाई, अपनी मां और अपनी दादी के साथ गांव में रहती थी. सोनाराम ने बताया, ‘लड़की के पिता और उसके चाचा-चाची दिल्ली में रहते थे. वो दिल्ली की किसी फैक्ट्री में काम करते थे और कुछ महीने पर अपने परिवार से मिलने आते थे.’

मिट्टी और ईंट से बने उनके घर में मुश्किल से दो कमरे हैं. घर में कोई नहीं है. हर कोई अस्पताल में है और लड़की के जल्द ठीक होने की कामना कर रहा है. इस घटना के बाद से गांववालों ने परिवार से हर तरह के संबंध तोड़ लिए हैं. पुरुषों का कहना है, ‘पिता की मृत्यु हो गई और चाचा गिरफ्तार हो गए. घर में अब कोई पुरुष नहीं बचा है. किससे बात करें? हम महिलाओं से बात नहीं कर सकते. ये सही नहीं है.’ ये रवि का कहना था. उसने ये भी बताया कि गांव की महिलाएं पुरुषों के सामने नहीं आती हैं.

ये पूछने पर कि जब पिता की मृत्यु हुई और चाचा गिरफ्तार हुए तो क्या इनमें से किसी ने परिवार का हाल-समाचार पूछने की जहमत उठाई, तो किसी ने कुछ भी नहीं कहा. रवि ने कहा, ‘हम अपने काम से मतलब रखते हैं.’

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परिवार में कोई बुजुर्ग व्यक्ति नहीं था, लेकिन घर में चार लड़कियां और उनकी मां थीं. क्विंट हिंदी ने कुछ महिलाओं और लड़कियों से मुलाकात की और उनसे पूछा कि उन्हें मालूम है कि ये परिवार क्या कर रहा है. ‘नहीं, हमें उनके बारे में कुछ नहीं मालूम. लगता है कि वो ठीक-ठाक हैं.’ 66 साल की एक महिला ने अनमने भाव से जवाब दिया.

39 साल की शीला ने कहा, ‘गांव में महिलाओं के कई उत्सव होते हैं. जैसे हम संकटा मां की पूजा करते हैं, जिसमें हम मन्नत मांगते हैं. जब मन्नत पूरी होती है तो हम महिलाओं को आमंत्रित कर उन्हें प्रसाद देते हैं. 7, 9 या 11 साल की लड़कियों की कान छिदाई का भी समारोह होता है.’ जब उनसे पूछा गया कि क्या उस परिवार की महिलाओं को कभी आमंत्रित किया गया, तो उन्होंने कहा, ‘पहले उन्हें सभी की तरह आमंत्रित किया जाता था, लेकिन हादसे के बाद नहीं.’

शीला की उम्र की सीता भी इस बातचीत में शामिल हो गईं. उन्होंने कहा, ‘ये पवित्र आयोजन होते हैं. हम सिर्फ उन्हें आमंत्रित करते हैं, जिन्हें बुलाना चाहते हैं, जिनके साथ अच्छे रिश्ते होते हैं.’ उन्होंने बात खत्म करने के अंदाज में कहा.

गांव वालों ने क्विंट हिंदी को बताया कि परिवार के पास माखी रेलवे स्टेशन के पास चार-पांच बीघा खेत है.

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‘पहले लोग उनके खेत में काम करते थे और गेहूं-चावल उगाते थे, लेकिन हादसे के बाद वहां कोई काम करना नहीं चाहता. लोग पूछते हैं कि किसी को मजदूर की जरूरत तो नहीं, लेकिन वहां कोई नहीं जाता’, 31 साल के विशाल ने बताया, जो तीन बच्चों के पिता हैं.

जब उनसे पूछा गया कि पिता की आमदनी और खेती के अभाव में परिवार किस प्रकार अपना गुजर-बसर कर रहा है, तो उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं मालूम, लेकिन सबकुछ ठीक-ठाक लगता है.

सब कुछ साफ है. नौकरी और परिवार दोनों में खोट था.

‘धमकी? हां. हम अपने लिए डरे हुए हैं’

गांववालों ने कहा कि उन्होंने उस धमकी और घुड़की को देखा है, जिसके खिलाफ ये परिवार खड़ा हुआ था. रवि ने कहा:

‘ हां, हमने लोगों को आकर उन्हें धमकाते देखा. कभी-कभी हमने उनके घर के सामने बाइक रुकते और जाते हुए देखा, लेकिन हम ये बात किसी को क्यों बताएं? सीबीआई हमें लखनऊ बुलाती रहेगी. चार बार दौरा लगेगा और मुझे अपनी सारी कमाई से हाथ धोना पड़ेगा. मेरे परिवार में 6 लोग हैं. लिहाजा मेरा फैसला बिलकुल साफ है. मुझे कुछ भी नहीं करना.’
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इन मामलों के आरोपी बीजेपी विधायक के बारे में वो क्यो सोचते हैं? इस सवाल पर हर कोई चुप्पी साधे रहा.

बाद में गांववाले एक-दूसरे से बातचीत करने लगे. उन्होंने कहा कि वो किसी से कुछ भी कहने में डरते हैं. हो सका, तो शांति और सुरक्षा के लिए वो गांव छोड़ना पसंद करेंगे. ‘हमारे पास भी परिवार है, जिसकी देखभाल करनी है, लेकिन मुसीबत है कि हमारे पास कहीं और बसने के लिए संसाधन नहीं हैं’, विशाल ने कहा.

थोड़ी देर रुककर विशाल ने कहना जारी रखा, ‘अकेले पड़ गए हैं ये लोग. तारीख पर जाते हैं, ये सब होने के बावजूद. पता नहीं और क्या हो जाए उनके साथ.’ पहली बार उनके स्वर में चिंता झलकी. यही भाव दूसरे लोगों के चेहरों पर भी थे.

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अब तक चुप्पी साधे अजीत ने कहा, ‘हमारे मोहल्लेके हैं. हमारे परिवार जैसे हैं.' वहां मौजूद लोग उसकी बात से सहमत दिखे.

थोड़ी देर चुप्पी छाई रही. चलते-चलते हमने पूछा, ‘इसके बावजूद आप लोगों ने उस परिवार के साथ संपर्क क्यों तोड़ लिया?’ अजीत ने कहा, ‘हमें मन मसोसकर उनसे दूर होना पड़ा. हमारे पास कोई चारा नहीं था. हमें अपनी सुरक्षा के लिए उनसे दूरी बनानी पड़ी.’

इसपर विशाल ने कहा, मानो खुद को सांत्वना दे रहा हो, ‘वैसे भी हम उनकी मदद करने में असमर्थ थे.’

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