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सावरकर के साथ ये क्रांतिकारी भी काट रहे थे काला पानी की सजा, झेल रहे थे अत्याचार

वीडी सावरकर के अलावा बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों ने भी काला पानी की सजा काटी.

वकार आलम
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p>वीडी सावरकर</p></div>
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वीडी सावरकर

(फाइल फोटो : सावरकर)

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देश की आजादी के 75 साल बाद जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तब पिछले दिनों सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों तक पर एक बड़ी बहस छिड़ी, जिसके सेंटर में थे विनायक दामोदर सावरकर (VD Savarkar). दरअसल राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने कहा कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के कहने पर सावरकर ने अंग्रेजों को दया याचिका दी थी.

एक दलील ये है कि चूंकि वो अंडमान की जिस सेल्युलर जेल (Cellular Jail) में बंद थे वहां बेपनाह यातना दी जाती थी, इसलिए दया याचिका दी थी. ऐसे में ये जानना जरूरी हो सकता है कि उस दौर में सेल्युलर जेल में और कौन से आजादी के परवाने बंद थे और यातनाएं झेल रहे थे.

वीडी सवारकर के भाई के आग्रह पर गांधी जी ने दया याचिका भेजने की सलाह दी थी. ये हुआ था 1920 में. लेकिन सच ये है कि उससे पहले भी सावरकर दो बार दया याचिकाएं डाल चुके थे.

सवारकर ने अपनी चिट्ठी में क्या लिखा था और गांधी ने उन्हें क्या सलाह दी थी, ये आप यहां पढ़ सकते हैं.

जुलाई 2019 में सरकार ने एक लिखित सवाल के जवाब में बताया था कि, 1909 से 1938 के बीच में 585 क्रांतिकारियों को अंडमान की सेल्युलर जेल में डाला गया था. उन्हीं में से कुछ क्रांतिकारियों के साहस और बलिदान की कहानी हम आपके सामने रख रहे हैं.

बटुकेशवर दत्त

बटुकेश्वर दत्त को आप सभी जानते होंगे, वो शहीद भगत सिंह के साथी थे. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य थे. उन्हें सेंट्रल एसेंबली में बम फेंकने के लिए भगत सिंह के साथ गिफ्तार किया गया था और 12 जून 1929 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. इसी दौरान भगत सिंह को एक और केस में सुखदेव और राजगरू के साथ फांसी की सजा सुना दी गई और बटुकेश्वर दत्त को काला पानी की सजा काटने के लिए सेल्युलर जेल भेज दिया गया.

सेल्युलर जेल में कैदियों के साथ होने वाले व्यवहार को लेकर बटुकेश्वर दत्त ने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की. 1933 की भूख हड़ताल के वक्त बटुकेशवर दत्त की उम्र महज 23 साल थी.

सेल्युलर जेल में अंग्रेजों के अत्याचार दर्शाता फोटो

फोटो- किताब (the heroes of cellular jail)

इंदुभूषण रॉय

काला पानी पर अपनी लिखी किताब द हीरोज ऑफ सेल्युलर जेल (The Heroes Of Cellular Jail) में एसएन अग्रवाल ने लिखा है, इंदु एक संवेदनशील युवक था, उसने बस 18 की उम्र को छुआ होगा. वो कड़ी मेहनत करने का आदी नहीं था और सेल्युलर जेल एक नर्क था. वीडी सावरकर ने अपनी किताब में इंदु के बारे में विस्तार से लिखा है, वीडी सावरकर लिखते हैं कि एक दिन मैंने देखा कि, वो कोल्हू से लौट रहा है और उसके पर पसीना था, सर पैर तक नारियल की भूसी चिपकी हुई थी. उसके पैरों को जंजीरों ने जकड़ा हुआ था.

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इंदुभूषण के सिर पर एक भूसे की बोरी थी, इस वजन से वो नीचे की ओर झुका हुआ था और डगमगाते हुए आगे बढ़ रहा था. जेल वार्डन ने उसे अपनी बात ना मानने की वजह से और कड़ी सजा दे रखी थी. इससे इंदु इतना तंग आ गए कि उन्होंने अंग्रेजों के आगे झुकने और अपमान से बचने के लिए 28 अप्रैल 1912 की रात को अपनी कमीज फाड़कर उसकी रस्सी बनाई और आत्महत्या कर ली.

मदन लाल ढींगरा

रि.जज एसएन अग्रवाल ने अपनी किताब द हीरोज ऑफ सेल्युलर जेल में लिखा है, मदन लाल ढींगरा को फांसी की सजा सुनाई गई थी और काला पानी भेज दिया गया था. मदन लाल ढींगरा ने कहा था कि...

सेल्युलर जेल में मदन लाल ढींगरा के शब्द

फोटो- ग्राफिक क्विंट हिंदी

नंद गोपाल

पंजाबी क्रांतिकारी नंद गोपाल को एक समाचार पत्र में लेख लिखने के लिए काला पानी की सजा दी गई थी. उन्हें तेल मिल के कोल्हू में बैल की जगह जोता जाता था, जिसका कुछ दिन बाद नंद गोपाल ने विरोध शुरू कर दिया. नंद गोपाल ने काम को जानबूझकर धीमे करना शुरू किया. एसएन अग्रवाल ने अपनी किताब द हीरोज ऑफ सेल्युलर जेल में लिखा है कि, एक दिन नंद गोपाल खाना खा रहे थे, लेकिन काम धीरे करने की वजह से उन्हें दिया गया काम पूरा नहीं हुआ था.

एक जेल अधिकारी ने खाना शुरू करते ही नंद गोपाल को गालियां देना शुरू कर दिया, उसने चिल्लाकर कहा कि, ‘बाकी काम क्या तुम्हारा बाप करेगा’ लेकिन नंद गोपाल ने सब अनसुना कर दिया और खाना चालू रखा.

बारिन घोष ने अपनी किताब में इसका वर्णन किया है. उन्होंने लिखा है कि इस विरोध की नंद किशोर को सजा दी गई. उन्हें कम खाना दिया गया, लेकिन इसने नंद गोपाल का हौसला नहीं तोड़ा और वो विरोध करते रहे. नंद गोपाल को जंजीरों में जकड़ दिया गया था और कोल्हू में बैल की तरह जोता जाता था. धीरे-धीरे जेल अधिकारियों ने नंद गोपाल को खाना देना और कम कर दिया.

कोल्हू में काम करते दर्शाता फोटो

फोटो- किताब (the heroes of cellular jail)

अधिकारियों के इस रवैये ने सभी राजनीतिक कैदियों को एक बल दिया और जेल में हड़ताल शुरू हो गई. इसे तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने सभी को सजाएं देना शुरू की. सभी का काम तीन गुना कर दिया गया, उन्हें ऐसा खाना दिया गया जो चार दिन से ज्यादा नहीं परोसा जाना चाहिए था. लेकिन क्रांतिकारियों को वो खाना लगातार दो हफ्ते तक खिलाया गया. ये वो वक्त था जब वीडी सावरकर अंडमान की जेल में बस पहुंचे ही थे.

करतार सिंह सराभा के साथी

13 सितंबर 1915 लाहौर षड्यंत्र में करतार सिंह सराभा के साथ 23 और क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. इसी केस में 27 क्रातिकारियों को आजीवन कारावास और 6 को अवधि कारावास की सजा सुनाई गई थी. फैसला सुनाते वक्त जज ने करतार सिंह सराभा को अपना बयान बदलने के लिए कहा, जो उन्होंने अदालत में दिया था. इससे उनकी सजा कम हो सकती थी. इस पर करतार सिंह सराभा ने कहा था कि मैं इस अत्याचारी अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अपनी चमड़ी को बचाना नहीं चाहता, उन्होंने कहा था कि...

फांसी पर करतार सिंह सराभा के शब्द

फोटो- ग्राफिक क्विंट हिंदी

एसएन अग्रवाल ने अपनी किताब में लिखा है कि, करतार सिंह सराभा को फांसी देने के बाद अंग्रेज उनके 40 साथियों को सेल्युलर जेल ले गए थे. जहां उनके साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता था, लेकिन उन्हें करतार सिंह की लाइनें हमेशा याद रहीं.

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Published: 28 Oct 2021,10:13 PM IST

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