ADVERTISEMENTREMOVE AD

सावरकर ने अंग्रेजों को भेजी दया याचिका में क्या लिखा था, गांधी की सलाह क्या थी?

Savarkar के जेल जाने के पांच साल बाद मोहनदास करमचंद गांधी साल 1915 में भारत पहुंचे थे.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

क्या सावरकर (Savarkar) ने अंग्रेजों से माफी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के कहने पर मांगी थी? रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने तो ऐसा ही दावा किया है. गांधी ने सावरकर के भाई को दया याचिका डालने के लिए सलाह जरूर दी थी, लेकिन ये अर्ध्य सत्य है. पूरा सच ये है कि सावरकर गांधी की इस सलाह से पहले भी दो दया याचिकाएं भेज चुके थे. जानना जरूरी है कि गांधी ने अपनी सलाह में क्या लिखा था और उससे पहले ही भेजी जा चुकी दया याचिका में क्या लिखा था?

गांधी ने क्या लिखा और क्यों लिखा?

जिस चिट्ठी को लेकर इतना बवाल मचा हुआ है उसे पहले समझ और जान लेते हैं. ये बात है साल 1920 की. विनायक दामोदर सावरकर के भाई डॉक्टर नारायण दामोदर सावरकर ने 18 जनवरी 1920 को मोहनदास करमचंद गांधी को एक चिट्ठी लिखी. उसमें वह कहते हैं,

"यह साफ है कि भारत सरकार (अंग्रेज) ने उन्‍हें (सावरकर बंधुओं- गणेश और विनायक) रिहा नहीं करने का फैसला कर लिया है. कृपया आप बताइए कि इन हालात में क्‍या करना चाहिए. वे (मेरे भाई) पहले ही अंडमान में 10 साल से ज्‍यादा की कड़ी सजा काट चुके हैं और उनका स्‍वास्‍थ्‍य बेहद बिगड़ चुका है. उनका वजन 118 से घटकर 95-100 के बीच आ गया है. उन्हें अस्पताल का खाना दिया जा रहा है लेकिन उनकी सेहत में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है. कम से कम बेहतर माहौल वाली किसी भारतीय जेल में उन्हें भेज देना उनके लिए सबसे जरूरी है. मुझे हाल ही में उनमें से एक से एक का पत्र मिला है (एक महीने पहले) जिसमें यह सब बताया गया है. मुझे उम्मीद है कि आप इस मामले में क्या कर सकते हैं, अवगत करवाएंगे."

जवाब में गांधी जी ने क्या कहा

मोहनदास करमचंद गांधी ने 25 जनवरी, 1920 को वीडी सावरकर के भाई की चिट्ठी का जवाब दिया. उन्होंने एनडी सावरकर को लिखा, 'आपका पत्र मिला. आपको सलाह देना कठिन है. फिर भी मेरा सुझाव है कि आप एक छोटी याचिका तैयार करें जिसमें मामले के तथ्‍य सामने रखकर यह साफ किया जाए कि आपके भाई ने जो अपराध किया, वह पूरी तरह राजनीतिक था. मैं ऐसा सुझाव इसलिए दे रहा हूं ताकि मामले पर लोगों का ध्‍यान केंद्रित करना संभव हो सकेगा. तब तक, जैसा कि मैंने पहले भी एक पत्र में आपसे कहा है, मैं इस मामले में अपने तरीके से आगे बढ़ रहा हूं.’ (Volume 19 of the Collected Works of Mahatma Gandhi.)

मतलब गांधी जी ने वीडी सावरकर के ही भाई नारायण के मांगने पर ही याचिका देने की सलाह दी थी. महात्मा गांधी ने सावरकर के भाई के चिट्ठी का जवाब दिया था.

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, वीडी सावरकर ने गांधी की इस चिट्ठी से पहले भी दो बार मर्सी पिटिशन दी थी. दरअसल मोहनदास करमचंद गांधी 19 जुलाई 1914 को केप टाउन (साउथ अफ्रीका) से अपनी मातृभूमि भारत के लिए रवाना हुए और 9 जनवरी 1915 को मुंबई पहुंचे. यानी सावरकर के जेल जाने के पांच साल बाद वो भारत पहुंचे थे.

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, वीडी सावरकर ने गांधी की इस चिट्ठी से पहले भी दो बार मर्सी पिटिशन दी थी.दरअसल मोहनदास करमचंद गांधी 19 जुलाई 1914 को केप टाउन (साउथ अफ्रीका) से अपनी मातृभूमि भारत के लिए रवाना हुए और 9 जनवरी 1915 को मुंबई पहुंचे. यानी सावरकर के जेल जाने के पांच साल बाद वो भारत पहुंचे थे.

सावरकर क्यों भेजे गए थे जेल

वीडी सावरकर भारत की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे. इसी दौरान उन्हें नासिक के कलेक्टर एएमटी जैक्सन की हत्या में शामिल होने के आरोप में 13 मार्च, 1910 को ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार किया गया था. हत्या के वक्त सावरकर लंदन में थे. उनपर जैक्सन को मारने के लिए इस्तेमाल की गई पिस्तौल उपलब्ध कराने का आरोप लगाया गया था. गणेश सावरकर को एक साल पहले एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.

उसके बाद सावरकर को 25-25 साल की दो अलग-अलग सजाएं सुनाई गईं. जिसके बाद 4 जुलाई, 1911 को अंडमान की सेलुलर जेल भेज दिया गया.

सावरकर ने कब-कब लिखी दया याचिका

जेल जाने के छह महीने बाद 30 अगस्त 1911 को वीडी सावरकर ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने अपनी पहली दया याचिका दी कि उन्हें रिहा कर दिया जाए.

स्कॉलर, वकील और लेखक एजी नूरानी का फ्रंटलाइन में 2005 में छपा एक है जिसके मुताबिक नवंबर 1913 में, सावरकर ने दूसरी दया याचिका दायर की. फ्रंटलाइन के आर्टिकल में बताया गया है कि वायसरॉय एग्सीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य सर रेगिनाल्ड क्रैडॉक ने 23 नवंबर, 1913 के अपने नोट में सावरकर की दया याचिका का उल्लेख किया था.

इतिहासकार आरसी मजूमदार की किताब ‘पीनल सेटलमेंट्स इन द अंडमान्स’ के मुताबिक, 1913 में सावरकर ने फिर से दया याचिका दायर की. आरसी मजूमदार की किताब में सावरकर की दूसरी दया याचिका का जिक्र है.

आरसी मजूमदार की किताब में लिखा है कि वीडी सावरकर ने दया याचिका में क्या था-

"...अंत में, हुजूर, मैं आपको फिर से याद दिलाना चाहता हूं कि आप दयालुता दिखाते हुए सजा की माफी पर मेरी 1911 में भेजी गयी याचिका पर पुनर्विचार करें और इसे भारत सरकार को आगे बढ़ाने की अनुशंसा करें. भारतीय राजनीति के ताजा घटनाक्रमों और सबको साथ लेकर चलने की सरकार की नीतियों ने संविधानवादी रास्ते को एक बार फिर खोल दिया है. अब भारत और मानवता की भलाई चाहने वाला कोई भी व्यक्ति, अंधा होकर उन कांटों से भरी राहों पर नहीं चलेगा, जैसा कि 1906-07 की नाउम्मीदी और उत्तेजना से भरे वातावरण ने हमें शांति और तरक्की के रास्ते से भटका दिया था. इसलिए अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादार रहूंगा, जो कि विकास की सबसे पहली शर्त है. जब तक हम जेल में हैं, तब तक महामहिम के सैकड़ों-हजारें वफादार प्रजा के घरों में असली हर्ष और सुख नहीं आ सकता, क्योंकि खून के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता. अगर हमें रिहा कर दिया जाता है, तो लोग खुशी और कृतज्ञता के साथ सरकार के पक्ष में, जो सजा देने और बदला लेने से ज़्यादा माफ करना और सुधारना जानती है, नारे लगाएंगे..."
मजूमदार की किताब ‘पीनल सेटलमेंट्स इन द अंडमान्स’

किताब के मुताबिक सावरकर आगे लिखते हैं-

सावरकर अपने दया याचिका के आखिरी में लिखते हैं-

"...इससे भी बढ़कर संविधानवादी रास्ते में मेरा धर्म-परिवर्तन भारत और भारत से बाहर रह रहे उन सभी भटके हुए नौजवानों को सही रास्ते पर लाएगा, जो कभी मुझे अपने पथ-प्रदर्शक के तौर पर देखते थे. मैं भारत सरकार जैसा चाहे, उस रूप में सेवा करने के लिए तैयार हूं, क्योंकि जैसे मेरा यह रूपांतरण अंतरात्मा की पुकार है, उसी तरह से मेरा भविष्य का व्यवहार भी होगा. मुझे जेल में रखने से आपको होने वाला फायदा मुझे जेल से रिहा करने से होने वाले होने वाले फायदे की तुलना में कुछ भी नहीं है. जो ताकतवर है, वही दयालु हो सकता है और एक होनहार पुत्र सरकार के दरवाज़े के अलावा और कहां लौट सकता है. आशा है, हुजूर मेरी याचनाओं पर दयालुता से विचार करेंगे."
मजूमदार की किताब ‘पीनल सेटलमेंट्स इन द अंडमान्स’

अब आते हैं गांधी जी की चिट्ठी के बाद सावरकर के माफीनामे पर, जिसे लेकर विवाद हो रहा है. गांधी जी की चिट्ठी के दो महीने बाद, सावरकर ने शाही क्षमादान का अनुरोध करते हुए एक नई याचिका दायर की थी. उन्होंने सैकड़ों कैदियों को रिहा करने के लिए ब्रिटिश सरकार को धन्यवाद दिया और कहा कि उन्हें और उनके भाई सहित शेष कैदियों को भी क्षमादान दिया जाना चाहिए. यह याचिका 30 मार्च 1920 की है.

इसके बाद वीडी सावरकर को अंडमान की सेलुलर जेल से रिहा कर दिया गया और मई 1921 में रत्नागिरी जिले की एक जेल में स्थानांतरित कर दिया गया. साल 1924 में सावरकर को पुणे की यरवदा जेल से दो शर्तों के आधार पर छोड़ा गया. एक तो वो किसी राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेंगे और दूसरे वो रत्नागिरी के जिला कलेक्टर की अनुमति लिए बिना जिले से बाहर नहीं जाएंगे.

इतिहासकारों से समझने और कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी, वॉल्युम 20 पढ़ने पर पता चलता है कि महात्मा गांधी सावरकर भाइयों के कारावास के दौरान उनके बारे में सम्मानजनक राय रखते थे, जो उनके लेखन में स्पष्ट रूप से साबित होता है. हालांकि महात्मा गांधी सावरकर के हिंसक तरीकों से सहमत नहीं थे. हिंदुत्व विचारक के रूप में सावरकर को प्रमुखता मिलने के बाद, गांधी उनकी आलोचना करने के लिए भी जाने गए हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×