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राजनाथ सिंह का दावा- गांधी की सलाह पर सावरकर ने मांगी थी माफी, क्या सच है?

महात्मा गांधी 1915 में साउथ अफ्रीका से भारत लौटे. विनायक दामोदर सावरकर इससे पहले ही 2 दया याचिकाएं दायर कर चुके थे

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केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने 12 अक्टूबर (मंगलवार) को नई दिल्ली में किताब 'वीडी सावरकर' की लॉन्चिंग के दौरान ये दावा किया कि सावरकर ने महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की सलाह पर ब्रिटिश सरकार को माफीनामा लिखा था.

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सावरकर के खिलाफ झूठ फैलाया गया. बार बार ये बात कही गई कि उन्होंने अंग्रेज सरकार के सामने अनेकों मर्सी पिटीशन (दया याचिकाएं) फाइल कीं. सच्चाई ये है कि मर्सी पिटीशन उन्होंने खुद को रिहा किए जाने के लिए नहीं फाइल की थीं. सामान्यत: एक कैदी को अधिकार होता है कि मर्सी पिटीशन फाइल करना चाहे तो कर सकता है. महात्मा गांधी ने उन्हें कहा था कि आप मर्सी पिटीशन फाइल करो. महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने मर्सी पिटीशन फाइल करी. महात्मा गांधी ने अपील की थी कि सावरकर को रिहा किया जाना चाहिए. जैसे हम शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे हैं वैसे सावरकर जी भी ये आंदोलन चलाएंगे. लेकिन उनको बदनाम करने के लिए इस तरह की बातें की जाती हैं कि उन्होंने क्षमा मांगी थी.ये सब सारी बातें बेबुनियाद और गलत हैं.
राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री
तो क्या राजनाथ का ये दावा सच है? है भी और नहीं भी. क्योंकि सावरकर को गांधी ने सलाह तो दी थी लेकिन सावरकर उससे पहले भी दया याचिकाएं दे चुके थे. सिलसिलेवार ढंग से जानते हैं सावरकर की सभी दया याचिकाओं के बारे में और ये भी कि किस याचिका का महात्मा गांधी से संबंध है.

1911 : जब सावरकर ने दायर की पहली दया याचिका

स्कॉलर, वकील और लेखक एजी नूरानी का फ्रंटलाइन में 2005 में छपा एक लेख हमें मिला. इसमें सावरकर द्वारा दायर की गई उन सभी दया याचिकाओं की सूची और विस्तार से जानकारी है, जो 1911 के बाद दायर की गईं.

  • जुलाई 1911 में,जब सावरकर को अंडमान और नीकोबार स्थित सेलुलर जेल भेजा गया, उसके ठीक 6 महीने बाद ही उन्होंने पहली दया याचिका दायर की.

  • नवंबर 1913 में, सावरकर ने दूसरी दया याचिका दायर की. फ्रंटलाइन के आर्टिकल में बताया गया है कि वायसरॉल एग्सीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य सर रेगिनाल्ड क्रैडॉक ने 23 नवंबर, 1913 के अपने नोट में सावरकर की दया याचिका का उल्लेख किया था.

  • 1920 की इम्पीरियल लेजिसलेटिव काउंसिल में एक सवाल के जवाब में होम मेंबर विलियम विनसेंट ने कहा कि उन्हें विनायक दामोदर सावरकर की तरफ से 1914 और 1917 में दो दया याचिकाएं प्राप्त हुईं. यहां 1917 के अलावा विनसेंट ने 1914 में एक ही याचिका दायर होने के बारे में बताया. फ्रंटलाइन के आर्टिकल के मुताबिक, ऐसा शायद इसलिए क्योंकि 1914 और 1918 में सावरकर ने याचिका में दो अन्य लोगों का भी जिक्र किया था.

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सावरकर की दया याचिकाओं से महात्मा गांधी का क्या संबंध है? 

वकालत पढ़ने साउथ अफ्रीका गए महात्मा गांधी 9 जनवरी, 1915 को भारत लौटे. यानी सावरकर की पहली दया याचिका दायर होने के चार साल बाद.

गांधी सेवाग्राम आश्रम के पास उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक, विनायक दामोदर सावरकर के भाई नारायण दामोदर सावरकर के पत्र के जवाब में गांधी ने 25 जनवरी, 1920 को एक पत्र लिखा.

''मुझे आपका पत्र मिला. तुम्हें सलाह देना कठिन है. मेरी सलाह है, हालांकि विस्तार से एक याचिका तैयार करके इस तथ्य को स्पष्ट रूप से राहत दी जा सकती है कि कि आपके भाई द्वारा किया गया अपराध विशुद्ध रूप से राजनीतिक था.''

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गौर करने वाली बात ये है कि इस दस्तावेज के इंडेक्स के मुताबिक, गांधी ने जिस पहले वाले पत्र का उल्लेख किया है, उसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है.


इसके बाद 26 मई, 1920 को भी महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में लिखा कि उस वक्त जिन लोगों को जेल में डाला गया था, वो रिहा गए. लेकिन, सावरकर के भाई गणेश दामोदर सावरकर और विनायक दामोदर सावरकर को ये लाभ नहीं मिला

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''वो उसी आरोप में राजनीतिक बंदी बनाए गए थे, जिसमें वो सभी जिन्हें पंजाब में रिहा कर दिया गया है. लेकिन, अब तक उन दो भाइयों को रिहाई नहीं मिली है.'' आर्टिकल 'Collected Works of Mahatma Gandhi' किताब के पेज नं 369 पर है.

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राजनाथ सिंह के दावे पर इतिहासकार और फिल्ममेकर की टिप्पणी 

मॉडर्न पॉलिटिकल हिस्ट्री के एक्सपर्ट इतिहासकार एस इरफान हबीब ने राजनाथ सिंह के दावे पर तंज कसते हुए लिखा कि जब मंत्री ही ऐसे दावे करते हैं तब किसी सुबूत, दस्तावेज की जरूरत क्यो होगी.

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फिल्ममेकर राकेश शर्मा ने लिखा कि महात्मा गांधी के भारत लौटने से पहले ही सावरकर ने 2 याचिकाएं दायर कर दी थीं.

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