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क्या सावरकर (Savarkar) ने अंग्रेजों से माफी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के कहने पर मांगी थी? रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने तो ऐसा ही दावा किया है. गांधी ने सावरकर के भाई को दया याचिका डालने के लिए सलाह जरूर दी थी, लेकिन ये अर्ध्य सत्य है. पूरा सच ये है कि सावरकर गांधी की इस सलाह से पहले भी दो दया याचिकाएं भेज चुके थे. जानना जरूरी है कि गांधी ने अपनी सलाह में क्या लिखा था और उससे पहले ही भेजी जा चुकी दया याचिका में क्या लिखा था?
जिस चिट्ठी को लेकर इतना बवाल मचा हुआ है उसे पहले समझ और जान लेते हैं. ये बात है साल 1920 की. विनायक दामोदर सावरकर के भाई डॉक्टर नारायण दामोदर सावरकर ने 18 जनवरी 1920 को मोहनदास करमचंद गांधी को एक चिट्ठी लिखी. उसमें वह कहते हैं,
मोहनदास करमचंद गांधी ने 25 जनवरी, 1920 को वीडी सावरकर के भाई की चिट्ठी का जवाब दिया. उन्होंने एनडी सावरकर को लिखा, 'आपका पत्र मिला. आपको सलाह देना कठिन है. फिर भी मेरा सुझाव है कि आप एक छोटी याचिका तैयार करें जिसमें मामले के तथ्य सामने रखकर यह साफ किया जाए कि आपके भाई ने जो अपराध किया, वह पूरी तरह राजनीतिक था. मैं ऐसा सुझाव इसलिए दे रहा हूं ताकि मामले पर लोगों का ध्यान केंद्रित करना संभव हो सकेगा. तब तक, जैसा कि मैंने पहले भी एक पत्र में आपसे कहा है, मैं इस मामले में अपने तरीके से आगे बढ़ रहा हूं.’ (Volume 19 of the Collected Works of Mahatma Gandhi.)
मतलब गांधी जी ने वीडी सावरकर के ही भाई नारायण के मांगने पर ही याचिका देने की सलाह दी थी. महात्मा गांधी ने सावरकर के भाई के चिट्ठी का जवाब दिया था.
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, वीडी सावरकर ने गांधी की इस चिट्ठी से पहले भी दो बार मर्सी पिटिशन दी थी.दरअसल मोहनदास करमचंद गांधी 19 जुलाई 1914 को केप टाउन (साउथ अफ्रीका) से अपनी मातृभूमि भारत के लिए रवाना हुए और 9 जनवरी 1915 को मुंबई पहुंचे. यानी सावरकर के जेल जाने के पांच साल बाद वो भारत पहुंचे थे.
वीडी सावरकर भारत की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे. इसी दौरान उन्हें नासिक के कलेक्टर एएमटी जैक्सन की हत्या में शामिल होने के आरोप में 13 मार्च, 1910 को ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार किया गया था. हत्या के वक्त सावरकर लंदन में थे. उनपर जैक्सन को मारने के लिए इस्तेमाल की गई पिस्तौल उपलब्ध कराने का आरोप लगाया गया था. गणेश सावरकर को एक साल पहले एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.
जेल जाने के छह महीने बाद 30 अगस्त 1911 को वीडी सावरकर ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने अपनी पहली दया याचिका दी कि उन्हें रिहा कर दिया जाए.
स्कॉलर, वकील और लेखक एजी नूरानी का फ्रंटलाइन में 2005 में छपा एक है जिसके मुताबिक नवंबर 1913 में, सावरकर ने दूसरी दया याचिका दायर की. फ्रंटलाइन के आर्टिकल में बताया गया है कि वायसरॉय एग्सीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य सर रेगिनाल्ड क्रैडॉक ने 23 नवंबर, 1913 के अपने नोट में सावरकर की दया याचिका का उल्लेख किया था.
इतिहासकार आरसी मजूमदार की किताब ‘पीनल सेटलमेंट्स इन द अंडमान्स’ के मुताबिक, 1913 में सावरकर ने फिर से दया याचिका दायर की. आरसी मजूमदार की किताब में सावरकर की दूसरी दया याचिका का जिक्र है.
आरसी मजूमदार की किताब में लिखा है कि वीडी सावरकर ने दया याचिका में क्या था-
सावरकर अपने दया याचिका के आखिरी में लिखते हैं-
अब आते हैं गांधी जी की चिट्ठी के बाद सावरकर के माफीनामे पर, जिसे लेकर विवाद हो रहा है. गांधी जी की चिट्ठी के दो महीने बाद, सावरकर ने शाही क्षमादान का अनुरोध करते हुए एक नई याचिका दायर की थी. उन्होंने सैकड़ों कैदियों को रिहा करने के लिए ब्रिटिश सरकार को धन्यवाद दिया और कहा कि उन्हें और उनके भाई सहित शेष कैदियों को भी क्षमादान दिया जाना चाहिए. यह याचिका 30 मार्च 1920 की है.
इतिहासकारों से समझने और कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी, वॉल्युम 20 पढ़ने पर पता चलता है कि महात्मा गांधी सावरकर भाइयों के कारावास के दौरान उनके बारे में सम्मानजनक राय रखते थे, जो उनके लेखन में स्पष्ट रूप से साबित होता है. हालांकि महात्मा गांधी सावरकर के हिंसक तरीकों से सहमत नहीं थे. हिंदुत्व विचारक के रूप में सावरकर को प्रमुखता मिलने के बाद, गांधी उनकी आलोचना करने के लिए भी जाने गए हैं.
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