advertisement
वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव.
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग.
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह.
गीत नवल,
प्रीति नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल!
सोचिए अगर 2023 (New Year) का इस्तकबाल आज खुद हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) अपनी कविता से कर रहे होते तो कैसा लगता. अगर हरिवंश राय बच्चन मौजूदा वक्त के हिंदुस्तान में होते तो वो कौन सी कविता सुनाते, हम आपको बताएंगे कि आज के दौर के हुक्मरानों को हरिवंश राय बच्चन की कौन सी कविताएं सुननी चाहिए.
हरिवंश राय जी की पैदाइश उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी (Babu Patti, Pratapgarh) में हुई थी. उन्हें घर में प्यार से बच्चन पुकारा जाता था और बाद में ये लफ्ज उनके नाम का अटूट हिस्सा बन गया.
साल 1932 में ‘तेरा हार’ नाम से उनकी पहली कविता छपी. इसके बाद 1935 में उमर ख़ैय्याम की रूबाइयों से प्रेरित उनकी कविता ‘मधुशाला’ पाठकों के सामने आई, जिससे उन्हें प्रसिद्धि हासिल हुई. आज भी मधुशाला पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय है. हरिवंश राय बच्चन जिस एक रचना के लिए सबसे ज्यादा जाने पहचाने गए और विवादो में भी रहे हैं, वो मधुशाला ही है.
जब भी हरविवंश राय बच्चन साहब का जिक्र आता है तो आपके जेहन में उनकी ये कालजयी कृति आ ही जाती है. कोई मधुशाला की पंक्तियां गुनगुनाने लगता है तो कोई उन पंक्तियों में खुद को खोया हुआ पाता है, मगर आज मैं आपको उस बच्चन से मिलवाऊंगा जो मधुशाला के इतर भी कृतित्व के मामलों में बहुत बड़े कवि हैं. आज मैं आपके सामने उनके उस पहलू को साझा करूंगा, जिससे नई पीढ़ी को मोटीवेशन और कॉन्फीडेंस मिलता है.
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
वृक्ष हों भलें खड़े,
हों घने, हों बड़ें,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी!—कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
हिंदी कवि ज्ञान प्रकाश आकुल ने क्विंट से बात करते हुए कहा कि बच्चन जी की ‘अग्निपथ’ कविता हमेशा-हमेशा के लिए प्रासंगिक है...जब भी कोई व्यक्ति हारा और टूटा हुआ महसूस करेगा, ये कविता उसे संबल देगी.
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से संवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीया जलाना कब मना है.
ज्ञान प्रकाश आकुल ने कहते हैं-
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकार
कभी नही जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचार
एक अकेले हों, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ग
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
18 जनवरी, 2003 को 95 बरस की उम्र में हरिवंश राय बच्चन नाम के सितारे इस दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन आज भी उस सितारे की चमक के सहारे न जाने कितने लोगों का सफर आसान हो जाता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)