कुछ रातें बहुत लंबी होती हैं. लंबी.. काली और डरावनी. 24 जुलाई, 1982 की रात भी कुछ ऐसी ही थी. इसी दिन ‘कुली’ फिल्म की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को वो चोट लगी, जिसने उन्हें करीब-करीब मौत के मुंह तक पहुंचा दिया.
उन दिनों अमिताभ अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे. उस हादसे से पूरा देश जैसे ठहर गया. मंदिर की घंटी से दिल की दुआ और चौराहे की चर्चा से अखबार की सुर्खी तक हर जगह अमिताभ थे. जिंदगी और मौत की वो जंग आखिरकार अमिताभ ने जीत ली, लेकिन एक महीने से ज्यादा का वक्त उन्हें मुंबई में ब्रीच कैंडी अस्पताल में बिताना पड़ा.
उनके छोटे से कमरे की खिड़की समंदर की तरफ खुलती थी. ‘बाहर और भीतर’ के उन बेबस दिनों में अमिताभ ने समंदर की लहरें से दोस्ती कर ली. वो उन लहरों को निहारते थे, अपना दुख-दर्द बांटते थे, उनसे बातें करते थे.
उन्हीं किन्हीं जज्बाती लम्हों में अमिताभ ने 29 अगस्त, 1982 को एक कविता लिखी, इंग्लिश में. उस कविता का तर्जुमा उनके पिता हरिवंश राय बच्चन ने किया, हिंदी में. कलाकार अमिताभ के दिल से निकली उस रचना को जब कवि हरिवंश राय ने छुआ, तो वो और निखर गई. ठीक वैसे ही जैसे बारिश की बूंदों में नहाकर पेड़ के पत्ते और निखरते हैं.
31 अगस्त को हिंद के नामचीन साहित्यकार धर्मवीर भारती और उनकी पत्नी पुष्पा भारती अमिताभ से मिलने गए. उसी मुलाकात में अमिताभ ने कहा था:
कचरे में फाड़कर फेंक देने लायक मेरी लाइनों को बच्चन जी ने कविता बना दिया.
बेटे की इस तारीफ से पिता का दर्द भी छलक उठा. हरिवंश जी बोले:
असल में अमिताभ की ‘एगोनी’ (पीड़ा) से हमने खुद को ‘आइडेंटिफाई’ कर लिया था. उन्हें जब पहली बार हमने यहां बिस्तर पर देखा, तो हमारे मन में यही उठा कि I should have been here. WHY HE? WHY HE?
तो आगे से कभी हरिवंश जी की कोई कविता सुनते वक्त आपको लगे कि अमिताभ बच्चन की आवाज में इतनी गहराई कैसे आ जाती है, तो पिता-पुत्र के बीच हुए इस भावुक किस्से को याद कर लीजिएगा.
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(तथ्य और फोटो, वाणी प्रकाशन से छपी पुष्पा भारती की किताब ‘अमिताभ आख्यान’ से लिए गए हैं)
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