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राजनीतिक इतिहास (Political History) और परंपरा को देखें तो भारत में राजनीति लगातार मिसाल कायम करते हुए दो कारणों से बदलती रही है. पहला कारण है राजनीतिक आंदोलनों का उभार और दूसरा है, नेतृत्व के वादों के साथ कुछ क्षेत्रीय दलों की चुनावों में स्वाभाविक जीत.
दोनों ही स्थितियों में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय परिदृश्य ने एक समरूप विशेषता दिखाई है. लेकिन समकालीन राजनीतिक संदर्भ में देखें तो आपको इसमें एक राजनीतिक बहाव (political ‘flux) नजर आएगा. ये कई घटनाक्रमों को देखकर लगता है चाहे वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का बयान हो, पंजाब में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन हो या कांग्रेस को लगातार मिली हार.
हाल में सामने आए चुनावी ट्रेंड्स और राज्यों के चुनाव परिणामों में भारत के राजनीतिक परिदृश्य में आए एक सकारात्मक बदलाव को देखा गया है. बीजेपी जो कि एक राष्ट्रवादी पार्टी है, इसने कमाल की राजनीतिक और चुनावी उपलब्धियां देखीं. उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अपना वोट शेयर 4 प्रतिशत तक बढ़ा लिया और करीब तीन दशक में ये अकेली ऐसी पार्टी है, जो लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है. वहीं उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भी पार्टी की जीत ऐतिहासिक है और उस युग के आगमन को दिखाती है जहां पार्टी अचूक और पूरी तरह से नियंत्रण में नजर आती है.
हाल के संदर्भों को देखें तो आम आदमी पार्टी का शानदार और सहज उभार पार्टी को एक मजबूत और विश्वसनीय संगठन के तौर पर दिखाता है. आम आदमी पार्टी ने पहले एक संरचनात्मक राजनीतिक एक्शन प्लान, तकनीकों और कैम्पेनिंग पर भरोसा किया, जिससे वो अपने लिए एक अलग तरह का पॉलिटिकल स्पेस बना सके. पार्टी का विकास, इसका विस्तार और इसकी स्वीकृति दिलचस्प है.
आप के उदय को लेकर ये कहा जा सकता है कि ये एक ऐसी पार्टी के तौर पर उभरी है, जो धीरे धीरे बीजेपी के खिलाफ एक प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर अपनी जगह बना रही है और इसका लक्ष्य कांग्रेस की जगह लेना है.
हाल के राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो आम आदमी पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी के दावेदार के तौर पर उभरती हुई और राष्ट्रीय स्तर पर एक खाली जगह को भरती हुई नजर आती है, लेकिन आप के भविष्य को लेकर राय बंटी हुई है. कांग्रेस और तृणमूल की परफॉर्मेंस ने पार्टी को विस्तार करने का एक अच्छा राजनीतिक मौका दिया है.
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने सभी कैम्पेनों को बहुत सफलतापूर्वक चलाया है. सदस्यता को लेकर मुहिम और वैचारिक संवर्धन के मामले में बीजेपी एक कदम आगे हैं.
बीजेपी अपनी पद्धतियों, पहुंच और विस्तार में समय से आगे नजर आती है. लेकिन यहां आम आदमी पार्टी का राजनीतिक प्रबंधन भी दिलचस्प है और इसका कमाल का कैम्पेन भी जिसने हाल के समय में वोटिंग बिहेवियर को प्रभावित किया.
लगातार दो बार चुनावों में जीत हासिल करने के बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपना गढ़ स्थापित कर लिया और पंजाब में भी उसे बड़ी जीत मिली है. वहीं उत्तराखंड और गोवा में भी तेज कैम्पेन के जरिए पार्टी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.
दस सालों में आम आदमी पार्टी अपनी शानदार सफलता की गवाह बनी है. पार्टी ने अप्रत्याशित चुनाव नतीजे और राष्ट्रीय राजनीतिक स्पेस में अपना विकास देखा. वहीं शैक्षणिक और राजनीतिक विमर्शों में पार्टी के बने रहने की क्षमता इसकी सबसे बड़ी मजबूती है और इसके विकास और विस्तार की सबसे बड़ी वजह भी.
पंजाब में महत्वपूर्ण और विश्वसनीय जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी ने सत्ताधारी बीजेपी की प्रमुख विपक्षी पार्टी बनने के लिए अपनी कूटनीतिक शुरुआत कर दी है. पंजाब में आम आदमी पार्टी को 117 में से 92 सीटों पर जीत मिली है.
यहां आप और बीजेपी के बीच के पारस्परिक प्रभाव को समझना जरूरी है कि जहां आम आदमी पार्टी गोवा, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में विस्तार की तरफ देख रही है. वहीं बीजेपी 2024 लोकसभा चुनावों के लिए एक सुविधाजनक स्थिति में है.
बीजेपी और आप दोनों ने पॉलिटिकल सिस्टम पर एक पकड़ बना ली है. ये कई बातों में अलग है, लेकिन इनमें कुछ समानताएं भी हैं. ये हैं, संस्थागत प्रबंधन, व्यवहारवादी नीतियों का ढांचा और जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ाव.
आम आदमी पार्टी ने संस्थागत लोकप्रियता, स्थानीय नीतियों के ढांचे और क्षेत्रीय विस्तार का फायदा उठाया है.
लेकिन यहां ये समझना भी जरूरी है कि बीजेपी की वैचारिक विशेषता और आप की लोकप्रिय पहुंच में फर्क है, जो हो सकता है कि भविष्य में राजनीतिक स्पेस को अस्थिर बना दे.
इन पार्टियों की क्षेत्रीय उपस्थिति है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी बीजेपी का प्रभुत्व है. पार्टी को मिला वैचारिक समर्थन और इसका विस्तार ग्रामीण इलाकों के सभी वर्गों में है. इसमें दलित, ओबीसी, अनूसूचित जनजातियां, महिलाएं सभी शामिल हैं और ये बात पार्टी की मजबूत स्थिति को दिखाती है.
राष्ट्रीय विकल्प बनने के लिए विपक्षी पार्टियों के बीच एक पार्टनरशिप होनी चाहिए, नहीं तो केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी की लहर जारी रहेगी. वहीं एक तरह से बुझ चुकी कांग्रेस पार्टी अपनी जमीन खो रही है.
हालांकि ये कहना जल्दबाजी होगी कि अगर इसका नेतृत्व दोबारा खुद को जगाने की कोशिश नहीं करता तो कांग्रेस मुक्त भारत वाला बयान जल्द ही असलियत में बदल जाएगा. ये अंतत: आम आदमी पार्टी और तृणमूल जैसे क्षेत्रीय दलों के लिए एक राजनीतिक विरोधाभास जैसा होगा. जहां इन पार्टियों को क्षेत्रीय स्तर पर तो फायदा हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सफलता नहीं मिलेगी. आम आदमी पार्टी की संभावनाओं के बावजूद इसे राष्ट्रीय विकल्प कहना जल्दबाजी होगी. समय, पार्टी की परफॉर्मेंस और पार्टनरशिप्स इसका भविष्य तय करेंगी. पार्टी के लिए अभी सबसे बड़ी चुनौती एक प्रमुख विपक्षी पार्टी बनना है और ये इस पर निर्भर करता है कि आम आदमी पार्टी कहां तक एक जोड़ने वाला और एक परफॉर्मेटिव पॉलिटिकल मॉडल देश को उपलब्ध करा पाएगी.
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