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मणिपुर में बीजेपी की वापसी के साथ कुछ चुनौतियां भी हैं, क्या हैं जीत के मायने?

बीजेपी ने राज्य में बहुमत हासिल किया है. इसके साथ ही पार्टी को कई अप्रत्याशित बातों का भी सामना करना पड़ा है.

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मणिपुर विधानसभा (BJP in Manipur) की 60 सीटों के लिए हुए चुनाव को लेकर ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने ये भविष्यवाणी की थी कि बीजेपी आधी से ज्यादा सीटें जीतेगी. वहीं ज्यादातर नेशनल मीडिया हाउसेज ने ये भी कहा कि नेशनल पीपुल्स पार्टी या Janata Dal (U) जैसे राजनीतिक दल चुनाव परिणामों के बाद की परिस्थितियों में अहम रोल निभाएंगे.

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हालांकि वो ये नहीं देख सके कि सभी क्षेत्रों में उम्मीदवारों की किस्मत चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल से हों, कैसे करवट लेगी? जहां एनपीपी के दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा. वहीं कांग्रेस के कई उम्मीदवारों की योजनाओं पर भी पानी फिर गया.

इसमें पूर्व डिप्टी सीएम Yumnam Joykumar, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री एनपीपी के L Jayantakumar, राज्य में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य Gaikhangnam Gangmei जैसे नाम शामिल हैं.

फाइनल स्कोर है, बीजेपी को 32 सीटों के साथ स्पष्ट बहुत मिला है, इसके बाद एनपीपी को सात, जनता दल (U) को 6, कांग्रेस को 5, नागा पीपुल्स पार्टी को 5 और कुकी पीपुल्स अलायंस को दो सीटें मिली हैं. इसके अलावा तीन निर्दलीय उम्मीदवार हैं.

मणिपुर असेंबली में महिलाएं

इस बार 5 महिला उम्मीदवारों ने मणिपुर विधानसभा में अपनी जगह बनाई है. ये इतिहास में पहली बार है. इनमें तीन महिला विधायक बीजेपी से हैं, एक एनपीपी से और एक केपीए से. बीजेपी की Nemcha Kipgen के अलावा सभी पहली बार विधायक होंगी.

क्या हम ये कह सकते हैं कि यह मणिपुर की राजनीति में महिलाओं के लिए अच्छी शुरुआत का संकेत है? हां, और नहीं भी. वो इसलिए क्योंकि, 265 उम्मीदवारों में 17 महिलाएं थीं और ऐसा पहली बार हुआ जब राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की संख्या डबल फिगर में गई.

60 विधायकों में 5 महिलाएं अभी भी ये सिर्फ 8 प्रतिशत ही है.

वहीं ये भी देखना भी दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी की सभी 3 महिला विधायकों को मंत्रिपद दिया जाएगा? Nemcha Kipgen की बात करें तो उन्हें मणिपुर सरकार में समाज कल्याण मंत्री बनाया गया था, लेकिन साल 2020 में उन्हें कैबिनेट से हटा दिया गया.

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चंदेल क्षेत्र से जीत हासिल करने वाली SS Ollish (BJP) ने इससे पहले 2017 और 2012 में भी चुनाव लड़ा था. वहीं Naoriya Pakhanglakpa से जीत हासिल करने वाली बीजेपी की उम्मीदवार Soraisam Kebi पहली बार चुनाव में जीत हासिल कर विधानसभा पहुंची हैं.

ये उम्मीद करना बहुत ज्यादा आत्मविश्वास दिखाना होगा कि बीजेपी की सभी तीन महिला विधायकों को मंत्रिपद दिया जाएगा और बाकी की दो महिला विधायक NPP की Irengbam Ongbi Nalini, जिन्होंने ओइनाम विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की है और KPA की उम्मीदवार Kimneo Haokip Hangshing विपक्ष में बैठेंगी. Kimneo Haokip Hangshing, Saikul विधानसभा क्षेत्र से जीती हैं.

यहां बता दें कि NPP की Irengbam Ongbi Nalini को लेकर ऐसा कहा जा रहा है कि उन्हें अपने पति Irengbam Ibohalbi की मौत के बाद सहानुभूति में वोट मिले. Irengbam Ibohalbi 2012 की मणिपुर विधानसभा में विधायक थे.

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क्या कांग्रेस पार्टी वापस आएगी?

मणिपुर में कांग्रेस पार्टी की हार, पार्टी का खत्म हो जाना नहीं है. हालांकि चुनाव परिणामों को देखकर ऐसा लग सकता है क्योंकि, पार्टी को इतनी सीटें भी नहीं मिली हैं कि वह विधानसभा में विपक्ष का नेतृत्व कर सके.

हालांकि कांग्रेस ने बीजेपी को यहां कड़ी टक्कर दी है. जहां बीजेपी ने खुले तौर पर सिटिंग कांग्रेस विधायकों को अपने खेमे में शामिल किया और Kuki National Organization जैसे सशस्त्र संगठन से समर्थन लिया.

कांग्रेस के कई नेता बागी होकर बीजेपी में शामिल हो गए, जिससे पार्टी को नुकसान पहुंचा. वहीं कांग्रेस की परफॉर्मेंस से ज्यादा, एनपीपी की जो संख्या घटी, वो राज्य में पार्टी की संभावनाओं को लेकर अधिक नुकसान पहुंचाने वाला लग रहा है. जहां कई चेहरों ने चुनाव जीता, दिग्गज नेता धराशायी हो गए.

हो सकता है कि एक समय में कांग्रेस फिर से रिवाइव करे. हाल में हुई इस हार से पार्टी के लिए अभी एक यही दिलासा है.

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मुख्यमंत्री कौन होगा?

बीजेपी के पास अब नंबर हैं. लेकिन उसके पास कुल सीटें, अपने साथ कुछ अप्रत्याशित और निराशाजनक बातें भी लेकर आई हैं. इनमें Oinam Lukhoi Singh और Laishram Radhakishore का नाम भी शामिल है, जिन्हें एनपीपी के उम्मीदवारों ने बुरी तरह हरा दिया.

वो लोग जो ये सोच रहे हैं कि मणिपुर विधानसभा में बीजेपी को बहुमत गुड गवर्नेंस और मोदी या बीजेपी की लहर की वजह से मिला है, वो कुछ ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं.

वहीं वो लोग जो ये दावा कर रहे हैं कि सीएम एन बिरेन के कार्यकाल में गुड गवर्नेंस की बात विधानसभा चुनावों में जीत के लिए एक बड़ा फैक्टर साबित हुई है, वो इस बात को जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं कि राज्य सरकार सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन और पेंशन देने में नाकाम रही है.

दरअसल, अगले 5 साल और ज्यादा दिलचस्प होने वाले हैं, बीजेपी के विधायक बहुमत के साथ सत्ता में होंगे और उनके साथ कोई सहयोगी पार्टी नहीं होगी जिस पर वो सरकार के खराब प्रदर्शन का ठीकरा फोड़ सकें.

इसके अलावा एक और अहम बात ये कि मुख्यमंत्री पद की हॉट सीट किसे मिलेगी और मंत्रियों के विभागों का बंटवारा कैसे होगा? चुनाव में जीत हासिल करने वाले सभी विधायक मुख्यमंत्री कौन बनेगा इस पर अपने बयानों को लेकर बेहद सतर्क हैं. सभी ये दावा कर रहे हैं कि पार्टी की केंद्रीय कमेटी अंतिम निर्णय लेगी.

लेकिन ये कोई छुपी हुई बात नहीं है कि पदस्थ मुख्यमंत्री एन बिरेन की नजर अपने दूसरे कार्यकाल पर है. वहीं Thongam Biswajit भी हैं. इसके अलावा पूर्व कांग्रेस नेता Govindas Konthoujam हैं, जो कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य रहे और हाल में उन्होंने बीजेपी जॉइन की है. ये तीन लोगों के बीच की प्रतियोगिता है जिस पर सभी की नजर है.

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ये भी कहा जा रहा है कि Singjamei के विधायक और पूर्व स्पीकर Y Khemchand भी सीएम पद की इस दौड़ में शामिल हैं और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ये तय करेगा कि मुख्यमंत्री पद किसे मिलेगा.

मणिपुर के लोगों ने किसके लिए वोट किया है? क्या उन्होंने अपना वोट किसी राजनीतिक दल के खिलाफ या किसी भी पार्टी के लिए दिया है या उन वादों के लिए जो राजनीतिक दलों ने उनसे किए?

इस पर भी ध्यान देना होगा कि क्या उन्होंने पॉपुलर चेहरों को देखकर वोटिंग की है या ये बस पैसों की बात है? हालांकि इन सब बातों का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है, जो मणिपुर विधानसभा चुनाव के परिणामों के पीछे क्या कारण रहे, इसे समझा सके.

बीजेपी ने राज्य में Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) को हटाने के बारे में बात नहीं की. ये एक भावनात्मक मुद्दा होने के साथ सालों से चली आ रही एक राजनीतिक मांग भी रही है, जो समय के साथ तेज होती गई.

पार्टी ने इससे पहले के चुनावों में घोषणापत्र में जो वादे किए थे, वो अभी तक पूरे नहीं हुए हैं और इसके भी कोई संकेत नहीं नजर आ रहे कि इस बार भी घोषणापत्र में जो कुछ भी है, वो भी पूरा हो सकेगा.

चुनाव से ठीक पहले राज्य में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली और उनका बयान कि केंद्र सरकार विद्रोही समूहों से शांति वार्ता करेगी, इस बात ने भी कई लोगों को चौंकाया है क्योंकि, United National Liberation Front (UNLF) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) जैसे कई दूसरे संगठन दशकों से इस तरह की बातचीत को नामंजूर करते आए हैं.

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चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए ये कहना जल्दबाजी होगी कि उनका पूरा फोकस मणिपुर और अपने अपने क्षेत्रों के विकास पर होगा. ये एक सामान्य सा बयान है और किसी खास तरह की कार्रवाई या एक्शन को लेकर प्रतिबद्धता से दूर करता है. ये बातें यही दिखाती हैं कि मणिपुर के लोगों के लिए अगले 5 साल निरर्थक और बिना किसी बदलाव के होने वाले हैं.

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