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लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी करते समय भारतीय जनता पार्टी (BJP) से एक छोटी सी गलती हो गई. इसने असम में अपने उम्मीदवारों का ऐलान पुराने निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर किया, न कि परिसीमन के बाद नई सीटों के आधार पर. यह गलती इस बात का सबूत थी कि असम में पार्टियां परिसीमन के बाद के राजनीतिक हालात से कैसे तालमेल बिठा रही हैं?
असम में 2024 का लोकसभा चुनाव इन मायनों में अलग है कि यहां संसदीय और विधानसभा सीटों के परिसीमन (Assam delimitation) के बाद होने वाला यह पहला चुनाव है.
असम में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन सीटों की संख्या पहले जितनी ही है, क्रमशः 14 और 126, लेकिन सीमा, आबादी का स्वरूप और स्थानीय शक्ति समीकरणों के हिसाब से बड़े बदलाव हो गए हैं.
असम में पार्टियों के साथ क्या हुआ?
परिसीमन ने कांग्रेस के लिए समीकरण कैसे बदल दिया है
जिन सीटों पर BJP मजबूत है वहां क्या हुआ है?
ऐसी सीटें जहां गैर-NDA दलों को फायदा हो सकता है
कोकराझार का मामला क्या है?
परिसीमन ने किस तरह समीकरणों को बदल दिया है?
भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस (Congress), असम गण परिषद (AGP), और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल हैं.
2009 के बाद से BJP की ताकत काफी बढ़ी है.
2009 में BJP ने 4 सीटें जीतीं और उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सहयोगी AGP ने 1 सीट जीती. दोनों को मिलाकर 30.72 फीसद वोट मिला था, BJP को 16.21 फीसद और बाकी वोट AGP को मिले थे.
2014 में BJP की सीटों की गिनती बढ़कर 7 हो गई और उसका वोट शेयर 36.41 फीसद हो गया. उस साल AGP NDA का हिस्सा नहीं थी. उसने 12 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा, एक भी सीट नहीं जीती और हर जगह सिर्फ सबसे कम वोट हासिल किया.
मगर सीटों के मामले में BJP ने 9, कांग्रेस ने 3, AIUDF ने 1 और 1 सीट पर कोकराझार से निर्दलीय नबा कुमार सरानिया ने जीत हासिल की.
मौसूदा समय में कांग्रेस के असम से 3 सांसद हैं: बारपेटा से अब्दुल खालिक, कलियाबोर से गौरव गोगोई और नौगांव से प्रद्योत बोरदोलोई. परिसीमन के बाद तीनों संसदीय क्षेत्रों में काफी बदलाव हो गया है.
कलियाबोर इकलौता निर्वाचन क्षेत्र था जिसे कांग्रेस BJP की जबरदस्त लहर के बावजूद 2014 और 2019 में लगातार तीन बार जीतने में कामयाब रही थी. असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई ने 2014 और 2019 में सीट जीती थी. परिसीमन के बाद इस संसदीय सीट का अस्तित्व खत्म हो गया है.
बाताद्रबा को नौगांव विधानसभा सीट में मिलाकर नौगांव-बताद्रबा नाम से एक नई सीट बनाई गई है. ध्यान देने की बात है कि यह वो निर्वाचन क्षेत्र है जहां कांग्रेस ने 2019 के आम चुनाव में तत्कालीन कलियाबोर संसदीय सीट पर सबसे ज्यादा वोट और अंतर से जीत हासिल की थी. मिसाल के लिए कांग्रेस ने ढिंग में 90.39 फीसद वोट हासिल किया था, जबकि मुकाबले में खड़े AGP उम्मीदवार को 8.19 फीसदी वोट मिले.
बारपेटा का मामला भी कुछ ऐसा ही है. 70-80 फीसद मुस्लिम आबादी वाले बारपेटा के पहले के तीन विधानसभा क्षेत्रों जानिया, बाघबोर और चेंगा को अब धुबरी सीट में मिला दिया गया है.
दूसरी तरफ बारपेटा में नए मिलाए गए निर्वाचन क्षेत्र- जैसे नलबाड़ी और भवानीपुर-सोरभोग- में बड़ी असमिया आबादी है, जिनका झुकाव BJP-AGP गठबंधन की ओर है. इस बदलाव को देखते हुए बारपेटा सीट अब गैर-BJP खेमे के लिए उतना आसान नहीं रहेगी, जितना पहले हुआ करती थी. कांग्रेस और AIUDF के बीच संभावित वोट बंटवारे से BJP को इस सीट पर बढ़त मिल सकती है.
2019 में कांग्रेस ने जो तीसरी सीट जीती, वह नौगांव थी, जहां प्रद्योत बोरदोलोई 1 फीसद से थोड़े ज्यादा अंतर से जीते थे. यह सीट 2009 और 2014 में BJP के राजेन गोहेन ने जीती थी. तब के नौगांव संसदीय क्षेत्र में 9 विधानसभा सीटें थीं और अब परिसीमन के बाद, इनकी गिनती 8 हो गई है.
पुरानी सीटों में जगीरोड (SC), लहरीघाट, मोरीगांव और राहा (SC) में कमोबेश कोई बदलाव नहीं हुआ है. नौगांव विधानसभा सीट अब बाताद्रबा के साथ मिला दी गई है, जो पहले कालियाबोर संसदीय सीट का हिस्सा थी. पुरानी कालियाबोर संसदीय सीट के तीन और विधानसभा क्षेत्रों- ढिंग, रूपोइहाट और सामागुरी को नौगांव में मिला दिया गया है.
इन तीनों इलाकों में मुसलमानों की संख्या तुलनात्मक रूप से ज्यादा है. यह बदलाव कांग्रेस के लिए 2019 के मुकाबले में नौगांव को आसान और काजीरंगा को ज्यादा मुश्किल सीट बना सकता है.
असम की वोटर लिस्ट 2024 के अनुसार दीफू मौजूदा समय में सबसे कम (लगभग 9 लाख) और धुबरी सबसे ज्यादा (लगभग 26 लाख) मतदाताओं वाली संसदीय सीट है. सिलचर सामान्य से SC रिजर्व सीट बना दी गई है.
पिछले तीन चुनावों में गुवाहाटी (पूर्व में गौहाटी), दरांग-उदलगुरी (पूर्व में मंगलदोई) और सोनितपुर (पूर्व में तेजपुर) BJP की सबसे मजबूत सीटें रही हैं. परिसीमन के बाद भी ये सीटें BJP के लिए मजबूत बनी हुई हैं. गुवाहाटी सीट के तहत आने वाली 10 विधानसभा सीटों में से 4 पर BJP विधायक हैं और 1 पर AGP विधायक (NDA सहयोगी) है.
इन तीन सीटों के अलावा, दीफू (पूर्व में स्वायत्त जिला) संसदीय सीट BJP के लिए एक और गढ़ हो सकता है, जिसके पास इस सीट के छह में से चार विधायक हैं. बाकी दो सीटें नई बनाई गई हैं और वहां BJP की मजबूत पकड़ है.
नवगठित काजीरंगा संसदीय सीट, जिसे पहले की कलियाबोर की जगह बनाया गया है, परिसीमन के बाद BJP का एक और गढ़ बन गया है क्योंकि इस समय 10 में से 9 विधानसभा सीटों पर BJP-AGP के विधायकों का कब्जा है.
राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा जनवरी 2024 में 6 संसदीय सीटों- जोरहाट, लखीमपुर, सोनितपुर, नौगांव, काजीरंगा और बारपेटा से गुजरी. इनमें से सिर्फ नौगांव ही कांग्रेस के लिए मजबूत सीट नजर आ रही है. इनके अलावा, धुबरी, करीमगंज और कोकराझार में भी गैर-BJP ताकतें मुकाबले में हैं. बारपेटा में भी कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है.
धुबरी AIUDF प्रमुख बदरुद्दीन अजमल का गढ़ रहा है, जो पिछले तीन बार से यह सीट जीत रहे हैं. परिसीमन के बाद, धुबरी संसदीय सीट के पहले के इलाकों को बरकरार रखा गया है, लेकिन इसमें कुछ नए इलाकों को शामिल किया गया है, जिसमें ज्यादातर पुरानी बारपेटा सीट से हैं.
परिसीमन के बाद नौगांव में 8 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 4 में कांग्रेस के विधायक हैं और 1 में AIUDF का विधायक है. यह कांग्रेस के लिए मजबूत सीट हो सकती है. हालांकि अगर वोट कांग्रेस और AIUDF के बीच बंटता है तो NDA को फायदा हो सकता है.
पिछले दो बार से कोकराझार से जीतने वाले निर्दलीय सांसद नबा कुमार सरानिया उर्फ हीरा सरानिया असम की राजनीति में एक दिलचस्प शख्सियत हैं.
कभी वह इस समय प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के कमांडर थे. उन्होंने 2014 में भारी बहुमत से जीत हासिल की. वह 2019 में भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे,
हालांकि उनका वोट प्रतिशत 2014 में 51.82 फीसद के मुकाबले में घटकर 32.74 फीसद रह गया. नबा सरानिया ने गण सुरक्षा पार्टी नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई और वह अभी तक न तो कभी INDIA और न ही कभी NDA गठबंधन में शामिल हुए.
कुछ संसदीय सीटों में आबादी के स्वरूप के साथ-साथ भौगोलिक सीमा में बड़े पैमाने पर बदलाव कर दिया गया है, जिससे प्रमुख दलों के लिए राजनीतिक समीकरण भी बदल गए हैं. ऐसे आरोप लगे हैं कि सीटों का इस तरह से पुनर्गठन किया गया है, जिससे BJP को मदद मिले.
बारपेटा और धुबरी संसदीय सीट पर सोच-समझकर और खास इरादे से बदलाव के सबसे बड़े उदाहरण हैं. परिसीमन के बाद बारपेटा के मौजूदा सांसद अब्दुल खालिक के अपने विधानसभा क्षेत्र जानिया का अस्तित्व खत्म हो गया है और इसे बाघबोर में मिला दिया गया है, जिसे अब मंडिया विधानसभा सीट के नाम से जाना जाता है. यह अब धुबरी लोकसभा सीट का हिस्सा है.
खलीक और अजमल दोनों के असर वाले इलाके अब धुबरी में हैं. इस सीट पर अब AIUDF बनाम कांग्रेस का सीधा मुकाबला होने की संभावना है.
वह बताते हैं, धुबरी लोकसभा सीट की मौजूदा सीमा ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों तरफ लगभग 300 किलोमीटर तक फैली हुई है और अगर कोई पूरे निर्वाचन क्षेत्र में घूमना चाहता है तो इसमें कई दिन लग जाएंगे.
ढेकियाजुली के कांग्रेस नेता भास्कर ज्योति नाथ कहते हैं, “मौजूदा सोनितपुर संसदीय सीट में, सीमा बदलाव ने आदिवासी और बोडो बहुल इलाकों पर भी असर डाला है.”
कोकराझार संसदीय सीट का पूर्व में हिस्सा रही सोरभोग विधानसभा सीट हमेशा से CPI(M) का गढ़ थी और मौजूदा CPI(M) विधायक मनोरंजन तालुकदार इसकी नुमाइंदगी करते हैं. यह 2021 के चुनाव में किसी वामपंथी पार्टी द्वारा जीती इकलौती सीट है. परिसीमन के बाद, इसे भवानीपुर के साथ मिलाकर एक नया निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया है, जिसे अब भवानीपुर-सोरभोग के नाम से जाना जाएगा. बदली हुई सीमाओं और नए जनसंख्या समीकरणों के बीच CPI(M) के लिए अगले चुनाव में अपना कब्जा बनाए रखना मुश्किल होगा.
धुबरी सीट के तहत पिछली दो विधानसभा सीटों (दोनों AIUDF के पास थीं) बिलासीपारा ईस्ट और बिलासीपारा वेस्ट की जगह अब सिर्फ बिलासीपारा विधानसभा सीट है. इसी तरह करीमगंज संसदीय क्षेत्र के तहत दो विधानसभा सीटें अल्गापुर और काटलीछड़ा (दोनों AIUDF विधायकों के कब्जे में हैं) अब मिला दी गई हैं. बारपेटा और नोबोइचा विधानसभा क्षेत्र में पहले AIUDF की असरदार मौजूदगी थी. अब दोनों SC आरक्षित सीटें हैं.
इसी तरह बारपेटा संसदीय सीट के तहत अभयपुरी नॉर्थ और अभयपुरी साउथ और गुवाहाटी संसदीय सीट के तहत बोको और चायगांव ऐसे उदाहरण हैं जहां कांग्रेस की दो मजबूत सीटों को एक विधानसभा सीट में मिला दिया गया है.
प्रमुख दलों के साथ-साथ रायजोर दल, असम जातीय परिषद और वामपंथी दल जैसी दूसरे राजनीतिक दल भी लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस रहे हैं. हालांकि परिसीमन फैक्टर BJP के पक्ष में काम कर सकता है.
(देवयानी बोरकाटाकी एक स्वतंत्र रिसर्चर हैं और प्रोबिन पेगु असम के एक पॉलिटिकल एक्टिविस्ट हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखिकों के अपने विचार हैं. क्विंट हिंदी इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)
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