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Atiq Crime History: अपराध, आतंक, जेल और सियात, अतीक के जुर्म की पूरी कहानी

Atiq Ahmed Murder: STF से 25 सालों तक कैसे बचता रहा अतीक अहमद?

उपेंद्र कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>अतीक के आतंक की पूरी कहानी</p></div>
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अतीक के आतंक की पूरी कहानी

(फोटः उपेंद्र कुमार/क्विंट हिंदी)

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अतीक अहमद की पुलिस कस्टडी में हत्या, बेटे अशद की एनकाउंटर में मौत, वजह उमेशपाल हत्याकांड. इन तीन घटनाओं ने प्रदेश की पुलिस, सरकार की नीति और कानून व्यवस्था पर कई सवाल खड़े किए. लेकिन, इन सबके बीच, जो एक चीज सबसे ज्यादा चर्चा में रही, वो थी यूपी की STF. यानी स्पेशल टास्क फोर्स.

दरअसल, अतीक अहमद और STF की कहानी करीब-करीब एक साथ शुरू होती है...90 के दशक में एक तरफ अतीक अहमद अपराध की दुनिया के साथ-साथ राजनीति की सीढ़िया चढ़ना शुरू करता है तो दूसरी तरफ STF के जिम्मे अपराध और अपराधी को खत्म करने का टास्क सौंपा जाता है. तो क्या इन 25 सालों के बीच STF और अतीक का आमना सामना कभी नहीं हुआ? अगर हुआ तो उसमें STF ने अतीक के खिलाफ क्या कार्रवाई की?

यहां ये भी जानेंगे कि पहलवानी और घुड़सवारी का शौक रखने वाला एक गरीब घर का लड़का, आखिर इतना बड़ा माफिया कैसे बन गया? कहा जाता है कि अगर पुलिस चाह ले तो मंदिर के बाहर से एक चप्पल तक ना चोरी हो. तो फिर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 200 किमीं. दूर एक माफिया अपना साम्राज्य खड़ कर रहा था, तो यूपी की STF अपना मुंह फेरे क्यों खड़ी थी?  

सियासत में आज बात पूर्व सांसद और माफिया अतीक अहमद की...इस वीडियो में हम STF के बार में भी जानेंगे कि आखिर यूपी पुलिस के रहते STF की क्या जरूरत पड़ी? क्या STF का गठन सिर्फ अपराधियों का एनकाउंटर करने के लिए किया गया था? इस वीडियो में हम सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करेंगे.

80 और 90 का दशक. यूपी में एक तरफ डांकुओं का आंतक अपने चरम पर था, तो दूसरी तरफ प्रदेश में माफिया का उदय हो रहा था. डांकुओं के आतंक पर सरकार की पैनी नजर थी, लिहाजा साल 1980 में तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने डांकुओं के खिलाफ अभियान छेड़ दिया. डांकुओं के सफाए के लिए एक स्पेशल फोर्स का गठन किया गया.

कहा जाता है कि अभियान से पहले यूपी पुलिस की लिस्ट में जितने डाकुओं के नाम थे, उससे कहीं ज्यादा डांकू एनकाउंटर में मारे गए थे. यही वो दौर था जब प्रदेश में एनकाउंटर, आम लोगों की भाषा का हिस्सा बन गया.

यूपी पुलिस की इस स्पेशल फोर्स ने 90 के दशक के अंत तक डांकुओं पर लगभग नियंत्रण पा लिया था. लेकिन, अब उसके लिए सबसे बड़ी समस्या माफिया राज बनने लगा. कहा जाता है कि अब माफिया पर शिकंजा कसने के लिए सरकार ने इस फोर्स को STF का नाम दिया. इसी दौर में एक माफिया का उदय हुआ, जो STF की नजरों से दूर रहा और राजनीति की सीढ़ियां चढ़ता गया, फिर सियासी संरक्षण पाकर तब के इलाहाबाद और आज के प्रयागराज का बेताज बादशाह बन गया.

अगर आप प्रयागराज के जातीय समीकरण से परिचित होंगे तो आप जानते होंगे कि इलाहाबाद पश्चिमी और नवाबगंज के ग्रामीण क्षेत्रों में मुसलमानों के गद्दी बिरादरी की अच्छी खासी आबादी है. इस बिरादरी का परंपरागत पहनावा सफेद कुर्ता, सफेद साफा और सफेद तहमद होता है. इसी बिरादरी के फिरोज अहमद थे. जिनका हर रोज का काम तांगा चलाकर जीवन यापन करना था.

वह हर सुबह इलाहाबाद रेलवे स्टेशन से तांगा सवारी बैठाते और खुल्दाबाद, हिम्मतगंज, चकिया पर सवारी उतारते चढ़ाते रेलवे स्टेशन से करीब 5 किमी दूर स्थित कसारी मसारी जाते और फिर वहां से इसी तरह प्रयागराज रेलवे स्टेशन आ जाते थे. ये काम हर दिन सुबह 7 बजे से शुरू होकर शाम 4-5 बजे तक चलता रहता और इससे जो कमाई होती उससे परिवार चलता.

इसी फिरोज अहमद के घर 10 अगस्त 1962 को एक बेटे का जन्म होता है, जिसका नाम अतीक अहमद रखा जाता है. अतीक जैसे-जैसे बड़ा होता है, उसका पढ़ाई में मन कम और दबंगई में ज्यादा लगने लगता है.

जब पिता तांगा लेकर घर आते तो वह तांगा से घोड़े को निकालकर अटाला, नखस कोहना और रोशन बाग की तरफ निकल जाता. रोशनबाग में छोटे मोटे दबंगों के साथ बैठकी करता और गप्पे मारकर फिर वापस आ जाता. अतीक अहमद घुड़सवारी के साथ-साथ पहलवानी भी अच्छे से करने लगा. कुछ वक्त के बाद लोग उसे पहलवान के नाम से भी बुलाने लगे.

उस समय इलाहाबाद में भुक्खल महाराज का एकछत्र राज था. भुक्खल महाराज अपने समय के सबसे बड़े बमबाज थे. उनके पिता पंडित जगत नारायण करवरिया की कौशांबी में धाक थी. तब कौशांबी इलाहाबाद का ही हिस्सा हुआ करता था.

पंडित जगतनारायण कौशांबी के घाटों से बालू खनन करवाने में बेताज बादशाह थे. उन्होंने भुक्खल महाराज को इलाहाबाद की घाटों से बालू खनन का कारोबार सौंपा था. इससे भुक्खल महाराज ने अकूत संपत्ति कमाई थी. इलाके में उनका रुतबा ऐसा कि जिधर निकलते थे उधर जिप्सी और महेंद्रा जीप की गाड़ियों के काफिले में उनके बैठे लोग अपने असलहे बाहर‌ निकालकर चलते थे.

अतीक अहमद को यह नागवार गुजर रहा था कि कोई उनके मुहल्ले से असलहों का प्रदर्शन करते हुए जा रहा है. कहते हैं कि एक‌ दिन उसने हाथों में असलहा लिए भुक्कल महाराज का काफिला रोक लिया और दबंगई से चेतावनी दी कि कल से काफिला गुजरे तो असलहा गाड़ी के बाहर दिखाई ना‌ दे‌. उस समय भुक्कल महाराज ने तो कुछ नहीं बोला, लेकिन जब अतीक के बारे में उन्होंने पता करवाया तो पता चला कि वो चांद बाबा का आदमी है.

दरअसल, उस वक्त इलाहाबाद में चांद बाबा अपराध का पर्याय बन गया था. जब जिसको चाहे बम से उड़ा देता था. कहा जाता है कि पुलिस उससे इतना आजिज हो गई थी कि जब उसे पकड़ने के लिए घेरा बंदी की गई तो पुलिस पर उसने इतना बमबाजी करवाई की पुलिस को जान बचाकर भागना पड़ा. उसको काबू करने के लिए पुलिस ने उसके घर के पास चौकी स्थापित कर दी, लेकिन उसके लोगों ने चौकी को बम से उड़ा दिया. अतीक उसी के अंडर में काम कर रहा था.

साल 1989 के विधानसभा चुनाव में चांद बाबा और अतीक के बीच चुनाव लड़ने पर ठन गई. इधर, अतीक ने भी अपनी छोटी-मौटी गैंग तैयार कर ली थी. कहा जाता है कि चांद बाबा से आजिज आ चुकी पुलिस ने अतीक अहमद का खूब साथ दिया. अतीक और चांद बाबा 1989 के विधानसभा चुनाव में आमने सामने थे.

कहा जाता है कि चुनाव खत्म होने के बाद अतीक से खुन्नस खाए चांद बाबा उसे पागलों की तरह ढूढ़ रहा था. इसी बीच किसी ने सूचना दी की अतीक अहमद रोशन बाग की कवाब पराठे वाली दुकान पर खाना खा रहा है.

22 नवंबर 1989 की रात. चांद बाबा अपने गैंग के साथ अतीक अहमद को मारने कवाब पराठे वाले की दुकान पहुंच गया. इसकी खबर अतीक अहमद को भी लग चुकी थी. अचानक इस पूरे क्षेत्र की बिजली चली गई और चारों तरफ घोर अंधेरा ही अंधेरा.

कहा जाता है कि रोशन बाग के उस पराठे वाली दुकीन से लगी सभी सड़कें ब्लाक कर दी गयीं थीं. आने जाने पर पूरी तरह से रोक. रात में दोनों तरफ से बमबाजी शुरू हो गई और रात 10 बजे खबर आई की चांद बाबा की हत्या हो गई है. कहा जाता है कि चांद बाबा की हत्या अतीक ने खुद अपने हाथों से की थी. लेकिन, अतीक पर चांद बाबा की हत्या का कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.

खैर चांद बाबा की हत्या के अगले ही दिन विधानसभा चुनाव का परिणाम आया और अतीक अहमद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 25906 वोट पाकर विजयी हुआ. जबकि, चांद बाबा को 9281 वोट मिले थे.

चांद बाबा की हत्या के बाद पूरे इलाहाबाद में अतीक अहमद का खौफ पैदा हो गया. उसकी कहीं भी मौजूदगी सनसनी पैदा करने लगी. 1991 का चुनाव आया. इस चुनाव में भी अतीक ने 36424 वोट पाकर बीजेपी उम्मीदवार रामचंद्र जायसवाल को 15743 वोटों से हरा दिया.

इसके बाद 1993 में भी उसने बीजेपी उम्मीदवार तीरथराम कोहली को हरा दिया. उसने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लगातार तीन विधानसभा चुनावों में हैट्रिक मारकर सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया.

साल 1997 का चुनाव आया तो मुलायम सिंह ने सियासी नफा देखकर अतीक को टिकट दे दिया. ये पहला मौका था जब अतीक किसी पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ रहा था. इस चुनाव में उसने बीजेपी उम्मीदवार रहे तीरथराम कोहली को मात दी. हालांकि, सरकार बीजेपी की बनी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने.

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यही वो दौरा था, जब अपराध की दुनिया में श्रीप्रकाश शुक्ला बड़ा नाम बन चुका था. हत्या, लूटपाट, फिरौती और रेलवे टेंडर हर जगह श्रीप्रकाश शुक्ला का ही नाम. उसने विधायक, मंत्री, पुलिस समेत कई लोगों की हत्या की. लेकिन, सीएम की सुपारी लेनी उसके लिए महंगी पड़ गई.

कहा जाता है कि उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने के लिए 6 करोड़ की सुपारी ली थी. इसके बाद यूपी पुलिस ने उसे जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए आदेश जारी कर दिए थे. साल 1998 में श्रीप्रकाश शुक्ला को ही जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए औपचारिक रूप से STF का गठन हुआ था.

आखिरकार, STF को सफलता मिली थी और 22 सिंतबर 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर कर दिया गया था. लेकिन, इधर अतीक अहमद सियासी संरक्षण पाकर राजनीति और अपराध दोनों में आगे बढ़ रहा था.

इस दौरान अतीक अहमद की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी बढ़ती गई. इस बीच साल 1999 का लोकसभा चुनाव आया. उसने समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव में टिकट की मांग की, लेकिन बात बनने के बजाए पार्टी से मनमुटाव हो गया.

उसने 1999 में एसपी का साथ छोड़कर सोने लाल पटेल की पार्टी अपना दल को जॉइन कर लिया. यह वह दौर था जब अतीक को पूर्वांचल में अल्पसंख्यक वोटरों में सेंध लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा था.

अपना दल ने उसे प्रतापगढ़ से टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गया लेकिन अतीक को खुश करने के लिए अपना दल ने उसे यूपी का अध्यक्ष बना दिया. फिर साल 2002 के विधानसभा चुनाव में अपना दल ने उसे इलाहाबाद पश्चिमी से टिकट दे दिया.

इस बार वह एसपी उम्मीदवार गोपालदास यादव को हराकर पांचवीं बार विधायक बना. लेकिन, अभी भी उसकी महत्वकांक्षा लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर तक जाने की थी.

साल 2004 का लोकसभा चुनाव आया. मुलायम सिंह ने अतीक की समाजवादी पार्टी में वापसी कराई. मुलायम सिंह को लगता था अतीक के आने से पूर्वांचल के मुसलमानों के बीच समाजवादी पार्टी मजबूत होगी. लिहाजा, मुलायम सिंह ने अतीक को साल 2004 में फूलपुर लोकसभा से टिकट दे दिया.

अतीक वहां से चुनाव जीतकर लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर लोकसभा में पहुंच गया. लेकिन, अतीक को इलाहाबाद पश्चिमी सीट खाली करनी पड़ी. उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने इस सीट से अतीक के भाई अशरफ को टिकट दिया.

वहीं, बीएसपी ने अशरफ के भाई के खिलाफ राजू पाल को उतार दिया. उपचुनाव में राजू पाल की जीत हुई. लेकिन, एक साल बाद ही 2005 में बीएसपी विधायक राजू पाल की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. आरोप लगा अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ पर.

यहीं से अतीक अहमद का साम्राज्य बिखरना शुरू हुआ. लेकिन, अभी भी अतीक STF की नजरों से दूर ही रहा. इस बीच STF छोटे बड़े कई माफिया और अपराधियों का एनकाउंटर कर चुकी थी, लेकिन इतने बड़े कांड के बाद भी अतीक उसकी पहुंच से बहुत दूर ही रहा.

साल 2007 में यूपी सरकार बदली तो अतीक का साम्राज्य 360 डिग्री पर घूम गया. मायावती सरकार ने उसके खिलाफ एक के बाद एक कई मुकदमे दर्ज कर दिए. उसे वॉन्टेड घोषित कर दिया गया. उसकी गिरफ्तारी के लिए पूरे देशभर में अलर्ट जारी कर दिया गया.

30 जनवरी 2008 के अतीक ने दिल्ली में खुद को सरेंडर कर दिया. जब 2009 में जेल से बाहर आया तो अपना दल ने उसे प्रतापगढ़ से टिकट दे दिया. लेकिन, वो हार गया. फिर, 2012 के विधानसभा चुनाव में वो जेल से नामांकन दाखिल किया. लेकिन, इस बार वो भी राजू पाल की पत्नी पूजा पाल के सामने हार गया.

2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उसे श्रावस्ती से टिकट दिया लेकिन वहां भी उसे हार मिली. साल 2017 में हाई कोर्ट के दखल पर पुलिस ने फरवरी 2017 में अतीक को अरेस्ट कर लिया. उसके बाद उसे देवरिया जेल में रखा गया. फिर योगी सरकार ने उसे वहां से शिफ्ट कर गुजरात की साबरमती जेल भेज दिया.

साबरमती जेल जाने के बाद उसकी पकड़ लगातार कमजोर होती गई. लेकिन, 24 फरवरी 2023 को प्रयागराज में एक ऐसी घटना घटी जिसने अतीक के खौफ को लोगों के जेहन में दोबारा जिंदा कर दिया. इस राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की उनके घर के गेट पर दो सुरक्षाकर्मियों समेत गोली मारकर हत्या कर दी गई.

इस हत्या का आरोप अतीक, उसके भाई अशरफ, बेटे अशद और पत्नी शाइस्ता समेत गुड्डु मुस्लिम और उसके गई शूटरों पर लगा. ये हत्या इतनी खौफनाक थी कि जिसने भी हत्या के वीडियो को देखा उसकी रूह कांप गई. चारों तरफ से घेरकर बदमाशों ने बम और गोलियों से उमेश पाल की हत्या की थी. 

उमेश पाल हत्याकांड ने यूपी सरकार के कानून व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी. यूपी सरकार ने अतीक और उसके परिवार के खिलाफ उमेश पाल की हत्या की FIR दर्ज की. अतीक का पूरा परिवार घर छोड़कर फरार हो गया.

यूपी पुलिस ने अतीक के बेटे अशद, पत्नी शाइस्ता परवीन और उसके शूटरों को पकड़ने के लिए टीमें गठित कर दी और जिम्मेदारी STF को सौंप दी गई. ये पहला मौका था जब STF अतीक के मामले में इनवॉल्व हुई. इस बीच अतीक को उमेश पाल अपहरण कांड में सुनवाई के लिए साबरमती जेल से प्रयागराज लाया गया.

कोर्ट ने अतीक को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 13 अप्रैल को यूपी पुलिस ने अतीक के बेटे असद का एनकाउंटर कर दिया. उमेशपाल हत्याकांड में सुनवाई के लिए प्रयागराज लाए गए अतिक और उसके भाई अशरफ की 15 अप्रैल की रात 10ः30 बजे तीन हमलावरों ने पुलिस कस्टडी में गोली मारकर हत्या कर दी. आज अतीक उसी मिट्टी में मिल गया है, जहां से उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा था. 

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