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बिहार विधानसभा का अंकगणित, इतना अहम क्यों है ये उपचुनाव?

उपचुनाव के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का किला भेदने की तैयारी कर रही RJD

उत्कर्ष सिंह
पॉलिटिक्स
Updated:
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बिहार विधानसभा का अंकगणित, इतना अहम क्यों है ये उपचुनाव

क्विंट हिंदी

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बिहार (Bihar) में होने वाला उपचुनाव और भी दिलचस्प हो गया है, क्योंकि आरजेडी (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) अब खुद मैदान में उतर चुके हैं. लालू का दावा है कि आरजेडी (RJD) दोनों सीटें जीतेगी और सरकार बनाएगी. लेकिन क्या आरजेडी वाकई में दोनों सीटें जीतकर सरकार बना सकती है? ये समझने के लिए हमें बिहार विधानसभा का अंक गणित समझना होगा..

लालू बुधवार 27 अक्टूबर को वो तारापुर और कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीटों पर एक-एक रैली को संबोधित करने वाले हैं जबकि तेजस्वी यादव पहले से ही जनसभाएं कर रहे हैं. इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और एनडीए (NDA) के तमाम नेता भी लगातार रैलियों को संबोधित कर रहे हैं. तमाम राजनीतिक दलों के नेता दरभंगा और मुंगेर में कैंप कर रहे हैं.

6 साल बाद चुनावी रैली करेंगे लालू यादव

लेकिन सबकी निगाहें पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की होने वाली रैलियों पर टिकी हैं. लालू यादव अपनी वाकपटुता और जनता से सीधे कनेक्ट करने की क्षमता के लिए जाने जाते रहे हैं. हालांकि चारा घोटाले में जेल जाने के बाद से बीते सालों में वो जनता से दूर रहे हैं

उनकी पिछली रैली 2017 में गांधी मैदान में हुई थी, तब तमाम विपक्षी दलों के साथ मिलकर की उनकी 'देश बचाओ, भाजपा भगाओ' महारैली ने काफी सुर्खियां बटोरी थी. हालांकि वोट मांगते हुए लालू यादव आखिरी बार 2015 के विधानसभा चुनावों में ही दिखे थे.

2015 विधानसभा चुनाव की अपनी पहली रैली में ही लालू ने 'अगड़ा बनाम पिछड़ा' का नारा देकर चुनाव की दिशा और दशा तय कर दी थी. लालू ने अपने बेटे तेजस्वी यादव के लिए राघोपुर के तेरसिया में हुई उस जनसभा में मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए बयान के आधार पर 'बैकवर्ड और फॉरवर्ड की लड़ाई' बताकर विरोधियों को सकते में डाल दिया था. बस लालू यादव इसी अंदाज के लिए जाने जाते हैं.

हालांकि जेल में होने की वजह से वो 2020 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रचार से दूर थे लेकिन करीब 6 साल बाद एक बार फिर वह चुनावी मोड में नजर आने वाले हैं. मैदान में उतरने से पहले ही लालू यादव ने बड़ा दावा कर दिया है.

लालू ने कहा कि तारापुर और कुशेश्वरस्थान सीट पर विरोधियों में भगदड़ मचेगी और आरजेडी दोनों सीटें जीतकर सरकार बनाएगी. सिर्फ लालू ही नहीं बल्कि तेजस्वी भी ये दावा लगातार करते आ रहे हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये संभव है?

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बिहार में सरकार बनाने का गणित

बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं, किसी भी गठबंधन को सरकार बनाने के लिए कम से कम 122 सीटें चाहिए. 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए को 125 सीटें मिली थीं यानी बहुमत से 3 सीटें ज्यादा. इनमें HAM और VIP के 4-4 विधायक शामिल हैं.

जबकि महागठबंधन 110 सीटें ही हासिल कर पाया था और इनके अलावा एआईएमआईएम के 5 विधायक भी जीते हैं, जो जरूरत पड़ने पर महागठबंधन को समर्थन दे सकते हैं. नीतीश कुमार ने एलजेपी, बीएसपी और एक निर्दलीय विधायक को अपने साथ लाकर एनडीए गठबंधन का आंकड़ा 128 पहुंचा दिया था लेकिन तारापुर और कुशेश्वरस्थान के 2 जेडीयू विधायकों की मौत के बाद ये संख्या 126 हो चुकी है.

आरजेडी को उम्मीद है कि उपचुनाव जीतने के बाद उनकी संख्या 112 हो जाएगी, एआईएमआईएम के 5 और किसी तरह HAM-VIP के 8 विधायक जोड़कर उनके पास सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ा हो जाएगा. हालांकि ये आंकड़ों का खेल इतना आसान नहीं दिखाई पड़ता.

लालू के साथ जाने का सवाल ही नहीं उठता- मांझी

पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने क्विंट से खास बातचीत में कहा कि लालू और तेजस्वी दिन में ही मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं. मांझी ने कहा कि लालू यादव ने दलितों का अपमान किया है जबकि नीतीश कुमार ने हमेशा दलितों को सम्मानित किया है. कुशेश्वरस्थान आरक्षित सीट है लेकिन लालू ने कांग्रेस प्रभारी का अपमान किया, फिर दलित लालू यादव का साथ क्यों देंगे?

लालू यादव के साथ जाने की संभावनाओं पर मांझी ने कहा कि इसका सवाल ही नहीं उठता, वो नहीं चाहते कि तेजस्वी मुख्यमंत्री बने इसीलिए वो महागठबंधन छोड़कर एनडीए में आए. वो नीतीश कुमार के साथ हैं और उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाकर रखेंगे. मांझी ने दावा किया कि उपचुनाव में एनडीए की ही जीत होगी.

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Published: 26 Oct 2021,07:47 PM IST

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