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हर बार बजट से आम आदमी को उम्मीदें होती हैं. टैक्स में राहत मिलेगी, देश के विकास का बढ़िया खाका दिखेगा. लेकिन हमेशा ऐसा संभव नहीं है. एक बार तो इस देश में ब्लैक बजट पेश किया गया था. बजट पेश करते हुए खुद तब के वित्त मंत्री ने कहा था कि वो ब्लैक बजट पेश करने को मजबूर हैं. तो आखिर क्या होता है ब्लैक बजट? और इसे क्यों पेश किया गया था? ये भी बताएंगे कि इस ब्लैक बजट का भारत की सियासत पर क्या असर पड़ा?
भारत में सिर्फ एक बार ब्लैक बजट आया था. साल था 1973. इसकी नौबत क्यों आई. ये समझने के लिए आपको 1973 से काफी पीछे जाना होगा. साल 1962 में चीन से युद्ध ने भारत को अपने रक्षा क्षेत्र को मजबूत करने के लिए विवश कर दिया. उसपर बेतहाशा पैसा खर्च हुआ. इसके 3 साल बाद ही 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध ने भारत की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी. आर्थिक संकट से जूझ रहे भारत को एक और झटका तब लगा जब मानसून ने भारत का साथ छोड़ दिया. सूखा और खाद्य संकट ने भारत में अकाल को जन्म दिया. आजादी के बाद भारत सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भारी उद्योगों के बजाए खेतों की तरफ रुख किया. लाल बहादुर शास्त्री के इसी रुख ने फैसले ने भारत में हरित क्रांति को जन्म दिया.
साल 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद देश की कमान इंदिरा गांधी के हाथों में आई और इसी के साथ इंदिरा गांधी के हिस्से में आई महंगाई, बेरोजगारी, खाद्य संकट और देश की ठहरी अर्थव्यवस्था. इधर, पाकिस्तान के साथ युद्ध की वजह से भारत के रिश्ते अमेरिका से खराब हो गए थे. लिहाजा अमेरिका से गेहूं का आयात राजनीतिक विवादों के कारण कम हो गया. अमेरिका के गेहूं निर्यात पर निर्भर रहने वाले भारत में और कठिनाई पैदा हो गई.
अवमूल्यन का मुख्य उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना और देश में विदेशी पूंजी लाना था. भारत में वित्तीय संकट से बचने के लिए ये जरूरी था. जानकारों का मानना है कि यह अर्थव्यवस्था में सुधार की सही दिशा में एक कदम भी था. धीरे-धीरे ही सही भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी थी. लेकिन, साल 1971 में दोबारा पाकिस्तान के साथ युद्ध ने भारत को नए आर्थिक संकट में डाल दिया.
उधर, अमेरिका से साल दर साल गिरते गेहूं आयात और सूखे ने भारत की अर्थव्यस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया और महंगाई बढ़ाई. ऊपर से भारत की बढ़ती जनसंख्या और ऊर्जा जरूरतों ने इंदिरा गांधी को दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया. अब इंदिरा गांधी के सामने दो चुनौतियां थी. पहली ये कि ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला खदान मालिकों की मनमानी को खत्म करना और दूसरा ये कि आने वाले अगले साल के बजट में जनता को राहत देना.
28 फरवरी 1973 को बजट पेश किया जाना था. जनता को उम्मीद थी कि इस बजट से कुछ राहत मिलेगी. बजट पेश करने के लिए संसद में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत राव बी चव्हाण खड़े हुए. संसद में उपस्थित सदस्य चव्हाण की तरफ देख रहे थे कि चव्हाण क्या घोषणा करने वाले हैं. चव्हाण ने अपने बजट भाषण में कहा कि "देश में सूखे के कारण पैदा हुए हालात और खाद्यान्न उत्पादन में भारी कमी की वजह से घाटा बढ़ गया है. इसलिए 'ब्लैक बजट' पेश करने की स्थिति आ पड़ी है. इसी बजट में सामान्य बीमा कंपनियों, भारतीय कॉपर कॉरपोरेशन और कोल माइन्स का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया.
ब्लैक बजट पेश के बाद उम्मीद थी कि हालात ठीक होगी लेकिन राष्ट्रीयकरण के बाद कोयला खनन में गिरावट ही दर्ज की गई.
साल 1973 का बजट 550 करोड़ घाटे का बजट था. यानी सरकार के पास योजनाएं तो थीं, लेकिन उन योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए पैसे नहीं थे. इसलिए सरकार को ब्लैक बजट पेश करना पड़ा था. लेकिन, आप सोच रहे होंगे की आखिर ये ब्लैक बजट होता क्या है?
दरअसल, जब सरकार का खर्च उसकी कमाई की तुलना में बहुत ज्यादा हो जाता है तो इसी स्थिति को ब्लैक बजट कहते हैं. ज्यादा खर्च के लिए पैसा जुटाने का एक एक तरीका है कर्ज. लेकिन राजकोषीय घाटा इतना ज्यादा था कि एक तो कर्ज लेना मुश्किल था, दूसरे तब अमेरिका से भारत के रिश्ते खराब थे, लिहाजा भारत को किसी देश से लोन लेने में भी दिक्कत थी. इसलिए भारत को ब्लैक बजट पेश करना पड़ा था.
इस ब्लैक बजट के बाद सरकार की लोकप्रियता और कम हुई. इसके महज दो साल बाद देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई. इमरजेंसी से पहले ये ब्लैक बजट भी देश की सियासत को बदलने वाला साबित हुआ. उसके बाद की कहानी किसी और दिन, किसी और एपिसोड में. जाते-जाते एक बात बता दें, हर देश में ब्लैक बजट का मतलब वो नहीं होता है जो भारत में होता है. जैस अमेरिका या न्यूजीलैंड ब्लैक बजट का मतलब है जब बजट में किसी गुप्त राशि का प्रावधान किया जाता है.
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