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छह राज्यों की 7 विधानसभा सीटों पर चुनाव आयोग ने उपचुनाव (Byelection) की घोषणा कर दी है. इनमें कई राज्य ऐसे हैं जहां चुनाव भले ही एक दो सीट का है लेकिन बहुत रोचक है. बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और बीजेपी अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं. हरियाणा में उम्मीदवार वही है बस चुनाव चिन्ह बदल गया है और महाराष्ट्र में बीजेपी (BJP) तो छोड़िए शिव सेना (Shiv Sena) के ही दो गुटों के लिए नाक की लड़ाई है.
महाराष्ट्र की अंधेरी ईस्ट चुनाव जहां एक तरफ शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के लिए जनता के बीच पावर दिखाने का मौका होगा. वहीं दूसरी तरफ इस चुनाव में जो जीतेगा वो जनता के बीच ये संदेश देगा कि वही असली शिवसेना है. बीजेपी और शिंदे गुट ने यहां से पूर्व पार्षद मुरजी पटेल को उतारा है जबकि शिवसेना ने दिवंगत रमेश लटके की पत्नी रुतुजा लटके को टिकट दिया है.
मुकाबला मजेदार इसलिए है क्योंकि बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली शिवसेना ने नतीजे आने के बाद कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही शिवसेना में बगावत हो गई और एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ जाकर सरकार बना ली. इस एपिसोड के बाद से पहली बार किसी विधानसभा सीट के चुनाव पर दोनों गुट आमने-सामने हैं और शिंदे के पीछे बीजेपी खड़ी है. जबकि उद्धव ठाकरे के पीछे एनसीपी और कांग्रेस दोनों हैं. उद्धव के लिए ईस्ट अंधेरी की सीट ज्यादा अहम इसलिए है क्योंकि जिन रमेश लटके के निधन से ये सीट खाली हुई है वो उन्हीं के गुट के थे.
अब हरियाणा चलिए और देखिए कि बीजेपी के टिकट पर कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई आदमपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते दिखेंगे. वैसे आदमपुर इनकी पारंपरिक सीट है पहले कुलदीप बिश्नोई के पिता भजनलाल यहां से जीतते रहे अब कुलदीप बिश्नोई जीतते हैं और हो सकता है आगे उनके बेटे भव्य भी जीत जायें. लेकिन रोचक बात ये है कि यहां उपचुनाव क्यों हो रहा है. क्योंकि कुलदीप बिश्नोई पहले कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. राज्यसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी के खिलाफ क्रॉस वोटिंग कर दी तो कांग्रेस ने उन्हें निलंबित कर दिया. अब कुलदीप बिश्नोई बीजेपी में आ गए हैं.
लेकिन ट्विस्ट इतना भर नहीं है, 2019 में आदमपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाली और कुलदीप बिश्नोई से हारने वाली सोनाली फोगाट की मौत हो चुकी है और उनकी बेटी ने अपनी मौसी रुकेश को मां की राजनीतिक विरासत सौंप दी है. अब रुकेश भी बीजेपी का टिकट मांग रही थीं, लेकिन उन्हें टिकट मिला नहीं. हालांकि रुकेश पहले ही कह चुकी हैं कि पार्टी ने टिकट दिया तो ठीक, नहीं तो निर्दलीय चुनाव लड़ूंगी. अगर ऐसे में कांग्रेस ने उन्हें अपना टिकट देकर उतार दिया तो मुकाबला और भी रोचक हो सकता है. क्योंकि सोनाली का मायका पहले ही कुलदीप बिश्नोई पर सोनाली की मौत की साजिश में शामिल होने का आरोप लगा चुका है. और हो सकता है आदमपुर में सोनाली की मौत के बाद सहानुभूति वोट उनकी बहन का बेड़ा पार कर दे.
अगर कांग्रेस से बात नहीं भी बनी तो बहुत मुमकिन है कि रुकेश निर्दलीय लड़कर कुलदीप बिश्नोई और उनके बेटे का खेल बिगाड़ दें.
हरियाणा का गठन 1967 में हुआ था और 1968 से लगातार बिश्नोई परिवार यहां से जीतता आ रहा है. पहले भजन लाल फिर कुलदीप बिश्नोई और उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई, इस बीच में कई परिवार पार्टियां बदलता रहा लेकिन उनका किला कभी भेद नहीं पाई.
बिहार में एक बार फिर लालू-नीतीश की जोड़ी एक साथ दिखाई देगी. बिहार में गोपालगंज और मोकामा दो विधानसभा सीटों पर चुनाव है. गोपालगंज पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पास थी जहां के विधायक सुभाष सिंह के निधन के बाद उपचुनाव हो रहा है. जबकि मोकामा से आरजेडी ने जीत दर्ज की थी, यहां से आरजेडी विधायक अनंत सिंह ने सजायाफ्ता होने के बाद अपनी सदस्यता खो दी है. दोनों ही सीटों पर मुकाबला रोचक है क्योंकि जब बीजेपी ने गोपालगंज सीट जीती थी तब उनके साथ नीतीश कुमार हुआ करते थे.
अब नीतीश कुमार आरजेडी के साथ आ गए हैं तो बीजेपी के लिए राह आसान नहीं होगी. दूसरी तरफ महागठबंधन के लिए भी चुनौती कड़ी है क्योंकि अगर जीत नहीं हुई तो एक मैसेज जाएगा जिसका इस्तेमाल बीजेपी आगे आने वाले चुनावों में कर सकती है. इसके अलावा मोकामा सीट तो पहले से ही आरजेडी के पास है तो उन्हें अपने परफॉर्मेंस को दोहराना होगा. नहीं तो बीजेपी कह सकती है कि नीतीश के साथ आने के बाद भी हमने हरा दिया. इसके अलावा अगर देखें तो नीतीश कुमार के लिए ये उपचुनाव काफी अहम है क्योंकि अगर वो यहां महागठबंधन के साथ जीत दर्ज करते हैं तो कह सकते हैं कि हमारा फैसला सही साबित हुआ. वहीं हार के बाद बीजेपी उन पर और भी ज्यादा हमलावर हो जाएगी कि आपके गठबंधन को जनता ने भी नकार दिया है.
गोपालगंज सीट 2005 से लगातार बीजेपी के पास है. यहां से हर बार बीजेपी के सुभाष सिंह जीतते आ रहे थे. जिनकी अब मौत हो चुकी है. 2020 के विधानसभा चुनाव में सुभाष सिंह को यहां 43.49 प्रतिशत वोट मिले थे. जबकि महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस के हिस्से में ये सीट आई थी. जिसके टिकट पर आसिफ गफूर को 20.38 प्रतिशत वोट मिले थे. हालांकि वो तीसरे नंबर पर रहे थे, दूसरे नंबर पर बीएसपी के उम्मीदवार थे जिन्हें 22.94 फीसदी वोट मिले थे.
बिहार की मोकामा विधानसभा सीट पर आज तक कभी भी बीजेपी ने जीत दर्ज नहीं की है. हालांकि 2020 में आरजेडी ने भी यहां से पहली बार जीत दर्ज की थी. इससे पहले ये सीट जेडीयू और उससे पहले कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी.
तेलंगाना की मुनूगोड़े सीट भी ऐसी ही है जहां उम्मीदवार वही है बस चुनाव चिन्ह बदल गया है. दरअसल 2018 में कांग्रेस की टिकट पर इस सीट से कोमतिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी ने चुनाव जीता था. जो हाल ही में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए. इसीलिए इस सीट पर चुनाव हो रहा है. बीजेपी ने अब उन्हें ही अपना उम्मीदवार बनाया है. अब मुकाबला रोचक है क्योंकि बीजेपी इस सीट पर कभी जीती नहीं है और 2018 विधानसभा चुनाव में भी उसके उम्मीदवार को मात्र 8 फीसदी वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस के टिकट पर कोमतिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी 50 फीसदी से भी ज्यादा वोट लेकर जीते थे.
ऐसे में कांग्रेस के लिए ये नाक की लड़ाई इसलिए है क्योंकि इस सीट पर हमेशा कांग्रेस या कम्युनिस्ट पार्टी जीतती रही है. अगर हार हुई तो ये मैसेज जाएगा कि कोमतिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी का अपना वोट बैंक बन गया. जबकि अगर बीजेपी के टिकट पर रेड्डी हार गए तो जो परसेप्शन पार्टी तेलंगाना में बनाने की कोशिश कर रही है उसकी हवा निकल सकती है.
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