Home News Politics 2019 में बूथ ‘शक्ति’ के सहारे BJP से पंजा लड़ाएगी कांग्रेस पार्टी
2019 में बूथ ‘शक्ति’ के सहारे BJP से पंजा लड़ाएगी कांग्रेस पार्टी
BJP की जंबो इलेक्शन मशीनरी से निपटने की तैयारी कितनी कारगर?
नीरज गुप्ता
पॉलिटिक्स
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बूथ मैनेजमेंट के जरिए जमीनी ताकत बढ़ाने की कवायद कर रही है कांग्रेस
(फोटो ग्राफिक्स : इरम गौर/ द क्विंट)
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बूथ मैनेजमेंट- ये शब्द सुनते ही बीजेपी का लगता है. जैसे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह अपने कार्यकर्ताओं को जीत का कोई नुस्खा समझा रहे हों. लेकिन अब कांग्रेस पार्टी इसी नुस्खे से बीजेपी को मात देने का दावा कर रही है. और आने वाले चुनावों की इस नई रणनीति का जरिया बना है ‘शक्ति’.
‘शक्ति’ एक प्रोजेक्ट है जिसका एजेंडा है :
बूथ स्तर तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं की पहचान करना
नए कार्यकर्ताओं को कांग्रेस से जोड़ना
वोटर को कांग्रेस के पक्ष में लाना
और फिर उसे वोटिंग के दिन बूथ तक ले जाना
फिलहाल शक्ति प्रोजेक्ट राजस्थान, गुजरात समेत करीब दस राज्यों में लॉन्च हो चुका है.
क्या है जमीनी हकीकत?
‘बूथ तक कार्यकर्ता की पहचान’ के इस दावे को जांचने के लिए क्विंट ने राजस्थान के भरतपुर जिले की नदवई विधानसभा के लखनपुर गांव के विजय चौधरी से बात की. विजय ने बताया :
पहले गांव-देहात में लोगों को कांग्रेस पार्टी की गतिविधियों की कोई जानकारी नहीं रहती थी. लेकिन अब हम उन तक पहुंचकर उन्हें ‘शक्ति’ में रजिस्टर करते हैं. इसके बाद उन्हें एसएमएस पर ही राहुल गांधी और सचिन पायलट जैसे नेताओं के वीडियो पहुंचने शुरू हो जाते हैं. हमारे लिए लोगों को पार्टी से जोड़े रखना आसान हो गया है.
विजय चौधरी, कांग्रेस कार्यकर्ता, भरतपुर, राजस्थान
भरतपुर के लखनपुर गांव में लोगों का ‘शक्ति’ रजिस्ट्रेशन करते कांग्रेस कार्यकर्ता विजय चौधरी(फोटो : द क्विंट)
विजय चौधरी पिछले पांच महीने में करीब 6 हजार नए कार्यकर्ता ‘शक्ति’ के जरिए कांग्रेस से जोड़ चुके हैं. विजय के मुताबिक :
पहले ब्लॉक प्रमुख या जिला प्रमुख की बेवजह जी-हजूरी करनी पड़ती थी, ताकि वो आपका काम आलाकमान तक पहुंचाएं. लेकिन ‘शक्ति’ के बाद इसकी जरूरत नहीं. ‘शक्ति’ प्रोग्राम में एक फीचर है, जिसके जरिए ये पता चल जाता है कि कौन सा नया रजिस्ट्रेशन किस कार्यकर्ता के जरिए हुआ. यानी हर किसी की परफॉर्मेंस हेडक्वार्टर तक खुद-ब-खुद पहुंच जाती है.
विजय चौधरी, कांग्रेस कार्यकर्ता, भरतपुर, राजस्थान
क्यों पड़ी ‘शक्ति’ की जरूरत?
पिछले साल दिसंबर में हुए गुजरात चुनाव में बीजेपी को 99 सीट मिली और कांग्रेस को 77. 182 सीट वाली गुजरात विधानसभा का मैजिक फिगर है 92. हार के कारणों पर माथापच्ची के दौरान कांग्रेस को पता चला कि गुजरात के करीब पचास हजार बूथ में से सिर्फ 16 बूथ ऐसे थे, जिनकी वजह से बीजेपी की किस्मत पलट गई.
2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कम अंतर से हारी सीटें कांग्रेस की हार का कारण बनीं(ग्राफिक्स : कनिष्क दांगी)
गोधरा, वीजापुर, हिम्म्तनगर, ढोलका, बोताड़, गरियाधर- ये 6 विधानसभा सीट ऐसी थीं, जो कांग्रेस 250 से 2000 वोट के अंतर से हारी. इन 6 सीटों के 16 बूथ पर अगर 2012 के बराबर वोट मिले होते, तो कांग्रेस ये सीटें जीत सकती थी और बीजेपी बहुमत के बेहद करीब सिमटकर रह जाती.
आंकड़ों की इस बाजीगरी पर बारीक काम करने के लिए फरवरी, 2018 में कांग्रेस पार्टी ने डेटा एनालिटिक्स डिपार्टमेंट बनाया. मुंबई के इकनॉमिस्ट प्रवीण चक्रवर्ती की अगुवाई में 14 आईटी इंजीनियर फिलहाल इस डिपार्टमेंट में काम कर रहे हैं. मई, 2018 में हुए कर्नाटक चुनाव में इस विभाग का आकलन था:
मई, 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 78 और बीजेपी को 104 सीट मिली थीं(फोटो ग्राफिक्स: शादाब मोइजी)
यानी बीजेपी को पता है कि फोकस कहां करना है और बूथ पर उसकी पकड़ कांग्रेस से कहीं ज्यादा मजबूत है. इस पर पार पाने के लिए डेटा एनालटिक्स डिपार्टमेंट ने कुछ समाधान सुझाए:
बूथ और ब्लॉक लेवल पर समर्पित कार्यकर्ताओं की जरूरत
हर बूथ पर कार्यकर्ताओं की नियुक्ति
हर कार्यकर्ता को काम का बंटवारा
कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए इनाम दिए जाने की शुरुआत
अगर ये सब किया तो वोटिंग के दिन ये कार्यकर्ता अहम ताकत बनेंगे.
पिछले कई सालों से कांग्रेस पार्टी इंदिरा, राजीव गांधी के पोस्टरों और सोनिया, राहुल की रैलियों के सहारे चुनाव लड़ रही है. लेकिन अब जमाना बदल चुका है और चुनावी युद्ध के हथियारों को तकनीकी धार देने की जरूरत है. ये करके हम 5 परसेंटज प्वाइंट वोट शेयर और 50 सीटें बढ़ा सकते हैं. यानी 2014 में अगर 44 सीटें आई थीं, तो उन्हें बढ़ाकर 95-100 तक तो ऐसे ही ले जाया जा सकता है.
हालांकि बीजेपी नमो ऐप और वॉट्सऐप मैसेज के जरिए अपने वोटरों/कार्यकर्ताओ तक पहुंच रही है, लेकिन कांग्रेस ने खुद को एसएमएस पर ही सीमित रखा है.
किसी भी राज्य में ‘शक्ति’ से जुड़ने के लिए उस राज्य के ‘शक्ति’ नंबर पर अपना वोटर आईडी कार्ड एसएमएस के जरिये भेजना होता है. उसके बाद वोटर आईडी कार्ड के वेरीफिकेशन के बाद मैसेज भेजने वाले का रजिस्ट्रेशन ‘शक्ति’ में हो जाता है. महिला कांग्रेस में रजिस्ट्रेशन का भी अलग नंबर है.
कांग्रेस का दावा है कि अगले तीन महीने में पूरे देश के कांग्रेस कार्यकर्ता ‘शक्ति’ से जुड़ जाएंगे(फोटो: ग्राफिक्स स्तुति मिश्रा)
रजिस्ट्रेशन के बाद कार्यकर्ता को अहमियत का अहसास करवाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की आवाज में उसे एक ‘वेलकम कॉल’ आती है. साथ ही रजिस्ट्रेशन करवाने वाले की विधानसभा, उसका बूथ, उम्र, लिंग और मोबाइल नंबर तक कांग्रेस पार्टी के डेटा में पहुंच जाता है.
अलग और असरदार?
कांग्रेस पार्टी के मुताबिक ये तरीका बीजेपी के ‘मिस्ड कॉल मेंमबरशिप’ के तरीके से अलग भी है और असरदार भी. पार्टी का ये भी दावा है:
देश के कुल 968,000 बूथ को कमजोर, ठीक-ठाक और मजबूत की तीन श्रेणियों में बांटा जा रहा है.
हर बूथ पर तीन लीडर कार्यकर्ताओं की पहचान कर जरूरत मुताबिक उनकी जिम्मेदारियां तय की जा रही हैं.
पहले कांग्रेस कार्यकर्ताओं को चुनाव में इस्तेमाल किया जाता था और फिर पार्टी उन्हें भूल जाती थी. लेकिन अब उन्हें पहचान और इनाम देने का सिस्टम शुरू किया जा रहा है.
‘शक्ति’ का तकनीकी काम देख रहे एक पदाधिकारी के मुताबिक :
अगर कांग्रेस के दिल्ली दफ्तर को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की किसी दूरदराज विधानसभा में 20-35 साल की महिला कार्यकर्ताओं की पहचान करनी हो, तो ‘शक्ति’ की मदद से वो भी हो सकती है.
लेकिन दावों की दौड़ में सवालों के स्पीडब्रेकर भी हैं.
कार्यकर्ता तक पहुंच तो जाओगे, लेकिन उसमें बीजेपी वाला उत्साह कैसे भरोगे?
आम चुनाव में सिर्फ 8-9 महीने का वक्त बचा है. इतमे कम समय में क्या देशभर में नेटवर्क खड़ा हो सकेगा?
आरएसएस के संगठन और बीजेपी के पैसे का मुकाबले का ब्लूप्रिंट क्या है?
पन्ना प्रमुख से आगे निकलकर वॉट्सऐप ब्लॉक प्रमुख और वॉट्सऐप पंचायत प्रमुख तक पहुंच चुकी बीजेपी की तैयारी का मुकाबला ‘शक्ति’ कैसे करेगी?
बहरहाल 8 राज्यों के करीब 20 लाख कार्यकर्ता रजिस्टर हो चुके हैं और पार्टी का दावा है कि अगले तीन महीने में पूरे भारत के कांग्रेस कार्यकर्ता ‘शक्ति’ के सिस्टम में दर्ज हो चुके होंगे. लेकिन बीजेपी की जंबो चुनावी मशीनरी से पंजा लड़ाने के लिए ‘देर से जागी’ कांग्रेस पार्टी की ये कवायद कंप्यूटर से निकलकर कार्यकर्ता तक किस शिद्दत से पहुंचेगी, आने वाले महीनों में ये देखना दिलचस्प होगा.