पिछले हफ्ते नो-कॉन्फिडेंस मोशन के पॉलिटिकल डिबेट पर तो काफी चर्चा हो चुकी, लेकिन एक बात पर बहुत कम चर्चा हुई कि इससे 2019 के चुनाव के बारे में क्या सिग्नल मिलता है. अगर आप प्रधानमंत्री के भाषण को गौर से सुनें, तो उससे ये सिग्नल मिलता है कि बीजेपी के भीतर का अंदाजा ये है कि शायद उसको लोकसभा चुनाव में बहुमत का आंकड़ा 272 हासिल न हो पाए.
पीएम का भाषण गौर से सुना?
इसका सबूत मिलता है खुद प्रधानमंत्रीजी के भाषण से क्योंकि सबसे पहली बात उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए ये कही कि देखिये कांग्रेस तो अपना कॉन्फिडेंस मोशन टेस्ट कर रही है. उसके पास उसके सहयोगी रहेंगे या नहीं. वो आपका भरोसा जीत पाएगी या नहीं. उसके बाद कांग्रेस के खिलाफ भड़काने के लिए उन्होंने कई नेताओं और पार्टियों का जिक्र किया.
किन नेताओं पर है 2019 के लिए नजर?
लेकिन उसमें तीन नाम महत्वपूर्ण हैं- एक है एचडी देवगौड़ा का कि देखिये कांग्रेस ने आपके साथ क्या दुर्व्यवहार किया था, आपको याद होगा. दूसरा उन्होंने नाम लिया शरद पवार का कि जब आपने आंख दिखाई तो आपके साथ क्या किया. चरण सिंह को याद कर के अजित सिंह को एक दोस्ताना पैगाम देना कहिये या सिग्नल देना कहिए, वो भी दिया गया. एक प्रकार से 272 का आंकड़ा न मिलने की स्थिति में जब नए सहयोगियों की जरूरत होगी तो उन्हें साधने की कोशिश की गई.
हालांकि आज की तारीख में ये तीनों पार्टियां बीजेपी के बिल्कुल खिलाफ हैं. अगले चुनाव में खिलाफ ही लड़ेंगी. आम तौर पर अपने भाषण में क्षेत्रीय पार्टियों पर, जातिवाद पर प्रधानमंत्री जी काफी अटैक करते हैं. इस भाषण में ये पॉइंट बिल्कुल गैर मौजूद था. पीएम को मालूम है कि अगर एसपी-बीएसपी की बात ज्यादा करते हैं, तो वो बेकार में उनके गठजोड़ को माइलेज मिलता है तो उस पर उन्होंने कोई जिक्र नहीं किया. ममता का नाम नहीं लिया लेकिन सुभाष चन्द्र बोस को याद करके वहां के लोगों को भी एक मैसेज देने की उन्होंने कोशिश की. लेकिन ज्यादा बड़ी बात ये है कि चंद्र बाबू नायडू उनको छोड़कर जा चुके हैं तो उनकी घनघोर आलोचना की.
अंदाजे लगाना जोखिम भरा है लेकिन 2019 में ये तय दिखता है
शिवसेना, जिन्होंने सरकार के हक में वोट नहीं किया, उसके बारे में कुछ नहीं बोले. लेकिन इनके ये दो सहयोगी इनको आंखें दिखा रहे हैं. तो नए सहयोगियों और साथियों की इनको जरूरत पड़ेगी.
आप अनुमान कहिये, पूर्वानुमान कहिये या एक नर्वसनेस कि शायद बहुमत नहीं मिलेगा, कितनी भी जी तोड़ मेहनत क्यों न कर लें. नए सहयोगियों की तलाश का सबूत आप इस भाषण में देख सकते हैं. आजकल आप जिनसे भी बात करें सब लोग 2019 और क्या आंकड़ा बनेगा, किसकी सरकार, कौन प्रधानमंत्री इस पर बहस करते मिलेंगे. हालांकि, जब तक EVM की गिनती नहीं हो जाएगी, किसी के पास इसका कोई उत्तर नहीं मिलने वाला. बहुत ही खतरनाक काम है इस प्रकार के अनुमान लगाना.
हम अयोध्या की बात सुनते हैं. हम भारत-पाकिस्तान में युद्ध की बात भी सुनते हैं. हम सुनते हैं कि और लोकलुभावन कदम उठाए जायेंगे. अगर ये सब अपनी जगह बहुत बड़े पैमाने पर अचानक न हो जाए तो जो मोटा हिसाब है ये है कि अगली सरकार बीजेपी की ही होती है तो वो पूरी तरह गठजोड़ वाले ढांचे में ही होगी. यानी, एक गठजोड़ सरकार में कई लोगों पर आपकी निर्भरता होती है और उससे जो प्रबल बहुमत में आप खुदमुख्तारी से सरकार चलाते हैं, अनियंत्रित होकर सरकार चलाते हैं, उस पर एक अंकुश लग जाएगा. तो बहुमत के आंकड़े की चिंता और गठबंधन के ढांचे में काम करने की मजबूरी की चिंता, ये मुझे उनके भाषण में साफ तौर पर दिखाई पड़ा.
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