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Himachal Elections: चुनाव में हाटी समुदाय महत्वपूर्ण, BJP-कांग्रेस पर क्या असर?

Hatti Community का प्रभाव हिमाचल प्रदेश की शिमला और सिरमौर क्षेत्रों की नौ सीटों पर पड़ेगा.

क्विंट हिंदी
पॉलिटिक्स
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Himachal Elections: चुनाव में हाटी समुदाय महत्वपूर्ण, BJP-कांग्रेस पर क्या असर?

फोटो- क्विंट हिंदी

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हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh Elections) में 12 नवंबर को चुनाव लड़ा जाना है और नतीजे 8 दिसंबर को आएंगे. इस बीच राज्य में एक ऐसा समुदाय है जो कांग्रेस (Congress) और बीजेपी (BJP) पर चुनाव के दौरान प्रभाव डाल सकता है. हिमाचल का हाटी समुदाय (Hatti Community). इस समुदाय की दशकों से एक मांग रही है कि इसे अनुसुचित जन जाति की सूची में शामिल किया जाए. यहां तक की समुदाय ने इस साल की शुरुआत में चुनाव के बहिष्कार की बात भी कही थी. ऐसे में यह समुदाय बीजेपी-कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है. लेकिन हाटी कौन कहलाते हैं और इनका हिमाचल की राजनीति पर कैसा असर पड़ सकता है.

हाटी समुदाय के लोग कौन हैं?

हाटी समुदाय में लगभग 3 लाख लोग हैं. इस समुदाय के लोग घर की खेती से उपजाई हुई सब्जियों, अनाज, ऊन, मास, आदी को हाट (बाजार) में जा कर बेचने का काम करते हैं. यहीं से इस समुदाय को अपना नाम मिला है.

हाटी समुदाय के पुरुष आम तौर पर समारोहों के दौरान सफेद टोपी पहने हुए नजर आते हैं. यह सिरमौर से गिरि और टोंस नामक दो नदियों से अलग हो जाता है. टोंस नदी इसे उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र से विभाजित करती है. ट्रांस-गिरी क्षेत्र में रहने वाले हटी और उत्तराखंड में जौनसार बावर में रहने वाले हाटी एक समय में 1815 तक सिरमौर की शाही संपत्ति का हिस्सा थे. लेकिन फिर जौनसार बावर अलग हो गया.

हालांकि दोनों कुलों में समान परंपराएं हैं और अंतर-विवाह आम बात है. हाटी समुदाय में जाति व्यवस्था भी कठोर है. इसमें भट और खश ऊंची जातियां हैं, जबकि बधोई नीचली जाति मानी जाती है. वहीं अंतर्जातीय विवाह के लिए परंपरागत रूप से मनाही रही है.

कामरौ, संगरा और शिलियाई इलाकों में रहने वाले हाटी शिक्षा और रोजगार के मामले में पीछे हैं. हाटी को खुंबली नामक एक पारंपरिक परिषद द्वारा चलाया जाता है जैसे हरियाणा में खाप पंचायत हैं पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना के बावजूद खुंबली हाटी पर अपना दमखम रखती है.
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हिमाचल की राजनीति पर कितना प्रभाव डाल सकते हैं हाटी?

राज्य के 3 लाख हाटी अनुसुचित जन जाति में शामिल होने के लिए 1967 से मांग कर रहे हैं. ये तब की बात है जब उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके में रहने वाले लोगों को आदिवासी का दर्जा दिया गया था, जिसकी सीमा सिरमौर जिले से लगती है.

हाटी समुदाय सिरमौर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों- शिलाई, पांवटा, रेणुका और पछड़ में केंद्रित है. लेकिन वे शिमला और सिरमौर में फैली कम से कम नौ सीटों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

बता दें कि 2009 में बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में हाटी को एसटी का दर्जा देने का वादा किया था. यह पहली बार था कि किसी राजनीतिक दल ने अपने घोषणा पत्र में इस मांग को शामिल किया था. हालांकि वादा अब तक पूरा नहीं हुआ और बीजेपी के संकल्प पत्र में अभी यह वादा दर्ज होता है. कभी कांग्रेस का गढ़ रहे शिमला के संसदीय चुनावों में हाटी के समर्थन से बीजेपी को फायदा हुआ था.

बता दें कि 2016 में तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने जनजातीय मामलों के संस्थान शिमला द्वारा किए गए एक अध्ययन के आधार पर ट्रांस-गिरी क्षेत्र और रोहड़ू में डोडरा क्वार को आदिवासी का दर्जा देने के लिए केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को एक फाइल भेजी थी. लेकिन केंद्रीय मंत्रालय ने कहा कि जानकारी अधूरी है और पूरी रिपोर्ट भेजने को कहा था.

इस साल की शुरुआत में हाटी समुदाय के लोगों ने चुनाव को बहिष्कार करने की बात कही थी क्योंकि इनकी मांगे पूरी नहीं की जा रही थी. हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने अप्रैल में कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें आश्वासन दिया था कि केंद्र राज्य में अनुसूचित जनजातियों की सूची में हाटी समुदाय को शामिल करने के राज्य सरकार के अनुरोध पर अनुकूल विचार करेगा.

इस साल मार्च में सीएम जय राम ठाकुर सरकार ने केंद्रीय मंत्रालय को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी है.

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Published: 26 Oct 2022,06:39 PM IST

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