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चीन के साथ 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद, भारत ने चीन को आर्थिक से लेकर कूटनीतिक मोर्चों पर जवाब देना शुरू कर दिया है. चीन के 59 ऐप बैन किए गए. जिस हॉन्गकॉन्ग के मुद्दे पर भारत चुप था, उसपर अब बोलना शुरू किया है. देश के कई राज्यों में चीनी कंपनियों से जुड़े प्रोजेक्ट अटक चुके हैं.
1 जुलाई को सड़क, परिवहन और MSME मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि चीनी कंपनियों को भविष्य में भारत में किसी भी हाईवे प्रोजेक्ट में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी. गडकरी ने कहा कि चीनी कंपनी के साथ ज्वाइंट वेंचर (JV) वाली कंपनियों को भी प्रोजेक्ट के लिए बोली लगाने से बैन कर दिया जाएगा. इसके अलावा, चीन को MSME सेक्टर में भी इनवेस्टमेंट की अनुमति नहीं दी जाएगी.
वहीं, रेलवे में भी चीन के एक बड़े प्रोजेक्ट को रद्द किया गया है. भारतीय रेलवे के डेडिकेटेड फ्रीट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) ने चीन की एक कंपनी का ठेका रद्द कर दिया है. 471 करोड़ रुपये का ये कॉन्ट्रैक्ट चीन की कंपनी बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजाइन ऑफ सिग्नल एंड कम्युनिकेशन को साल 2016 में दिया गया था. इस कंपनी को 417 किमी लंबे कानपुर-दीनदयाल उपाध्याय सेक्शन में सिग्नल और टेलीकम्युनिकेशन का काम दिया गया था.
भारत सरकार ने पिछले दिनों बड़ा फैसला लेते हुए चीन के 59 ऐप्स को भारत में बैन कर दिया. इसमें से टिकटॉक, यूसी ब्राउजर, हेलो जैसे ऐप भारत में काफी पॉपुलर हैं. करीब 200 मिलियन यूजर्स के साथ, टिकटॉक भारत को अपना सबसे बड़ा मार्केट मानता है.
केंद्र सरकार ने सुरक्षा का हवाला देते हुए इन ऐप्स पर बैन लगाया है. चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बैन से टिकटॉक की पेरेंट कंपनी, बाइटडांस को करीब 6 बिलियन डॉलर, यानी कि 45 हजार करोड़ का नुकसान हो सकता है. रिपोर्ट में बाइटडांस के सूत्र के हवाले से बताया गया है कि कंपनी ने पिछले कुछ सालों में भारतीय मार्केट में 1 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश किया था.
देश में 4G कॉन्ट्रैक्ट से भी चीन को बाहर किया जा सकता है. डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन्स (DoT) ने बुधवार को बीएसएनएल 4G अपग्रेड टेंडर का रद्द कर दिया. DoT का कहना है कि इसमें एक नया टेंडर जल्द ही जारी किया जाएगा. मीडिया में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस नए टेंडर से चीनी कंपनियों को बाहर रखा जा सकता है.
हिंदुस्तान टाइम्स ने DoT अधिकारियों के हवाले से बताया, “फ्रेश टेंडर में, DoT सरकारी टेलीकॉम, BSNL और MTNL से चीनी कंपनियों के इक्विपमेंट का इस्तेमाल नहीं करने के लिए कह सकता है.”
दुकानों से लेकर ऑनलाइन, भारत में चीन का दबदबा हर जगह है. ऐसे में, भारत सरकार ऑनलाइन भी चीनी सामनों की बिक्री को लिमिटेड करने की कोशिश में है. भारत सरकार ने अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों से कहा है कि वो प्रोडक्ट पर ‘ओरिजिन ऑफ कंट्री’ यानी वो किस देश में बना है, ये साफ-साफ दिखाएं. डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) के साथ हुई एक बैठक में ई-कॉमर्स कंपनियां इसके लिए तैयार भी हो गई हैं.
इन सबके अलावा, भारत सरकार चीनी कंपनियों- Huawei और ZTE के इक्विपमेंट पर भी रोक लगाने की तैयारी में है. इकनॉमिक टाइम्स की 18 जून की एक रिपोर्ट में, एक अधिकारी ने कहा है कि भारत सरकार, चीनी कंपनियों को टेलीकॉम उपकरण मुहैया कराने और निजी मोबाइल फोन ऑपरेटरों को भी Huawei और ZTE के गियर का इस्तेमाल करने से रोक सकती है.
मार्च में जब पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने HDFC लिमिटेड में हिस्सेदारी बढ़ाई, तब भारत सरकार ने FDI पॉलिसी में बड़ा बदलाव किया. सरकार ने तय किया कि अब जिन देशों की सीमा भारत से लगती है, उन्हें सरकार से मंजूरी के बाद ही निवेश की अनुमति मिलेगी. जाहिर है इस कानून में बदलाव से सबसे ज्यादा अगर किसी पड़ोसी देश पर पड़ेगा तो वो है चीन.
हॉन्गकॉन्ग के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पारित करने पर भी चीन चौतरफा आलोचना का शिकार हो रहा है. हॉन्गकॉन्ग में प्रदर्शन के अलावा, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में भी चीन की कड़ी आलोचना हुई. भारत ने बुधवार को UNHRC में कहा कि हॉन्गकॉन्ग को स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन बनाना और इसके लिए कानून लाना चीन का घरेलू मसला है, लेकिन भारत घटनाओं पर नजर बनाए हुए है. हालांकि भारत की प्रतिक्रिया बेहद कमजोर ही है, लेकिन शुरुआत हो गई है.
ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन ने भी इस कानून को लेकर चीन को जमकर तलाड़ लगाई थी. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इस विवादित कानून पर अपनी नाराजगी जता चुके हैं.
चीन के साथ अमेरिका की नाराजगी जगजाहिर है. हाल ही में अमेरिका ने चीन की दो कंपनियों- Huawei और ZTE को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए बैन कर दिया है और इनकी फंडिंग पर रोक लगा दी है. अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशन कमिशन (FCC) ने भी अपने बयान में चीन के डेटा शेयरिंग कानून का हवाला दिया. FCC के चेयरमैन अजित पाई ने कहा, “दोनों कंपनियों के चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी सेना से करीबी संबंध हैं, और दोनों व्यापक रूप से चीन के कानून के अधीन हैं जो, उन्हें देश की इंटेलीजेंस सर्विसेज के साथ सहयोग करने के लिए बाध्य करते हैं.”
भारत में चीनी ऐप के बैन को अमेरिका से भी समर्थन मिला है. अमेरिकी विदेश मंत्री, माइक पॉम्पियो ने भारत सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “हम कुछ मोबाइल ऐप्स पर भारत के प्रतिबंध का स्वागत करते हैं, जो CCP (चाइना कम्युनिस्ट पार्टी) के सर्विलांस के रूप में काम कर सकते हैं. भारत के क्लीन ऐप अप्रोच से भारत की संप्रभुता को बढ़ावा मिलेगा. ये भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को भी बढ़ावा देगा, जैसा कि भारत सरकार ने खुद कहा है.”
अमेरिकी नेता निक्की हेली ने भी चीनी ऐप्स को बैन करने के भारत सरकार के फैसले का समर्थन किया है.
निक्की हेली ने ट्विटर पर लिखा, “भारत को चीनी कंपनियों के स्वामित्व वाले 59 पॉपुलर ऐप्स को बैन करता देखकर अच्छा लगा. इसमें टिकटॉक भी शामिल है, जो भारत को अपने सबसे बड़े बाजारों में गिनता है. भारत ने ये दिखाना जारी रखा है कि वो चीन की आक्रामकता से पीछे नहीं हटेगा.”
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Published: 02 Jul 2020,05:59 PM IST