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लाडली बहना और महालक्ष्मी: MP-छत्तीसगढ़, राजस्थान-तेलंगाना में महिलाएं थीं किंगमेकर?

महिलाओं द्वारा अपनी चुनावी ताकत बढ़ाने के साथ, विश्लेषकों का कहना है कि अब समय आ गया है कि हम उन्हें भी सत्ता में देखें.

गरिमा साधवानी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>लाडली बहना और महालक्ष्मी:MP-छत्तीसगढ़, राजस्थान-तेलंगाना में महिलाएं थीं किंगमेकर?</p></div>
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लाडली बहना और महालक्ष्मी:MP-छत्तीसगढ़, राजस्थान-तेलंगाना में महिलाएं थीं किंगमेकर?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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3 दिसबंर को नवबंर में हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित किए गये, तो सभी विश्लेषकों ने जीत का श्रेय महिलाओं और विभिन्न राज्यों में महिलाओं के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की कल्याण योजनाओं को दिया

क्या वाकई विधानसभा चुनाव में महिलाएं किंगमेकर थीं? राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में महिलाओं ने कैसे किया वोट? क्विंट हिंदी ने एक्सपर्ट से पूछा.

'प्रमुख योगदानकर्ता, लेकिन अकेले किंगमेकर नहीं'

राजनीतिक टिप्पणीकार और पॉलिटिकल शक्ति की सह-संस्थापक तारा कृष्णास्वामी क्विंट हिंदी को बताया, "हम यह नहीं कह सकते कि महिलाएं अकेले किंगमेकर थीं, वे एक प्रमुख कारक थीं. ऐसे कई मुद्दे और डेमोग्राफिक्स थे जिन्होंने चुनाव को प्रभावित किया, उदाहरण के लिए तेलंगाना, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता विरोधी लहर.

सीवोटर के संस्थापक संपादक यशवंत देशमुख कहते हैं:

"दशकों से महिलाएं चुनावों में निर्णायक रूप से मतदान करती आ रही हैं. डेटा स्पष्ट रूप से बताता है कि वे शासन के वास्तविक मुद्दों, व्यावहारिक चीजों पर वोट करते हैं जो मायने रखती हैं. और महिलाएं ऐसी किसी चीज के लिए वोट क्यों नहीं करेंगी जो उनकी आर्थिक स्वतंत्रता, या आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में मदद करे?"

नंबर क्या दर्शातें हैं? तेलंगाना की 119 विधानसभा सीटों में से 56 में महिला वोटर्स ने पुरुषों की तुलना अधिक मतदान किया. इनमें से 37 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली.

राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी महिला मतदाताओं का मतदान अधिक रहा. कृष्णास्वामी का कहना है कि बीजेपी को वोट देने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है.

मध्य प्रदेश में 2018 के चुनाव की तुलना में महिलाओं का मतदान प्रतिशत दो प्रतिशत बढ़ गया और बीजेपी का वोट प्रतिशत भी बढ़ गया.

पार्टियों के लिए क्या काम आया?

संक्षेप में कहें तो महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं. चुनाव से कुछ महीने पहले, जब मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर चरम पर थी, तब शिवराज सिंह चौहान ने लाडली बहना योजना की घोषणा की.

इस योजना के तहत, उन्होंने 23-60 वर्ष की आयु के बीच एमपी की 1,25,00,000 महिलाओं को 1,200 रुपये का नकद हस्तांतरण करने का वादा किया.
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चूंकि इस योजना की घोषणा 6 मार्च को की गई थी, जब राज्य में चुनाव हुए थे, इस योजना के कार्यान्वयन के लिए एक करोड़ से अधिक महिलाओं के बैंक खाते खोले गए थे.

इससे (लाडली बहना योजना) सरकार के प्रति गुस्से की मात्रा में काफी कमी आई. मेरी जानकारी में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट शिवराज सरकार को नहीं दिये. लेकिन उन्होंने उनके खिलाफ भी वोट नहीं किया, जो कि कुछ महीने पहले की स्थिति थी.
तारा कृष्णास्वामी, पॉलिटिकल शक्ति की सह-संस्थापक

तेलंगाना में कांग्रेस के साथ भी यही हुआ. महालक्ष्मी योजना के तहत उन्होंने महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता और मुफ्त बस सेवा का वादा किया.

कृष्णास्वामी का कहना है कि महिला मतदाता केवल वादों के बजाय दिए गए लाभों पर वोट करती हैं.

महिलाओं ने इसे कर्नाटक में डिलीवर होते देखा. विश्वास कारक ने उन्हें तेलंगाना में कांग्रेस को वोट देने के लिए प्रेरित किया.
तारा कृष्णास्वामी, सह-संस्थापक, पॉलिटिकल शक्ति

छत्तीसगढ़ में मतदान से कुछ ही दिन पहले बीजेपी ने विवाहित महिलाओं को सालाना 12,000 रुपये की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की और गरीब परिवारों को 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने का वादा किया.

लेकिन अगर यही आधार है तो फिर राजस्थान में कांग्रेस के लिए क्या गलत हुआ? कृष्णास्वामी का मानना है कि कांग्रेस का प्रचार-प्रसार बीजेपी की तरह शक्तिशाली नहीं था.

राजस्थान में केंद्रीय योजनाओं को 'मोदी की गारंटी' के रूप में प्रचारित किया गया था. अशोक गहलोत ने महिलाओं के लिए कई अच्छी योजनाएं शुरू कीं - जैसे विधवाओं, वृद्धों या निराश्रित महिलाओं के लिए पेंशन - लेकिन उनकी ठीक से मार्केटिंग या ब्रांडिंग नहीं की गई और लोगों ने यह सोच लिया कि वे केंद्र सरकार की योजनाएं हैं.
तारा कृष्णास्वामी, पॉलिटिकल शक्ति की सह-संस्थापक

हालांकि, देशमुख इससे सहमत नहीं हैं. उन्होंने कहा, "राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अनूठे तरीकों से शुद्ध सत्ता विरोधी लहर थी. कांग्रेस का वोट शेयर कम नहीं हुआ. यह अंदरूनी कलह, विद्रोही कारक और कांग्रेस के लिए संगठनात्मक ताकत की कमी थी जिसके कारण उसे नुकसान हुआ.

'महिलाओं को भी अब सत्ता में लाओ'

महिलाओं द्वारा अपनी चुनावी ताकत बढ़ाने के साथ, विश्लेषकों का कहना है कि अब समय आ गया है कि हम उन्हें भी सत्ता में देखें.

कृष्णास्वामी ने कहा, “अब समय आ गया है कि राजनीतिक दल न केवल महिलाओं के लिए योजनाओं और शासन के बारे में सोचें, बल्कि उन्हें शासन में शामिल करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करें. महिलाओं को टिकट दें, सुनिश्चित करें कि महिलाओं के साथ सत्ता की साझेदारी हो, यही अगला कदम है.”

वहीं, देशमुख ने कहा, "कल्पना करें कि अगर महिलाएं अपनी चुनावी भागीदारी और मतदान से चुनावों को इतना प्रभावित कर सकती हैं, तो उनके प्रभाव की कल्पना करें जब वे नेता बन जाती हैं और एक तिहाई सीटों पर कब्जा कर लेती हैं. यही वास्तविक सशक्तिकरण होगा."

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