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महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार को एकनाथ शिंदे ने बड़ा झटका (Maharashtra Political Crisis) दिया है. बाला साहेब ठाकरे के ‘हिंदुत्व’ के पैमाने पर उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को तौलते हुए शिंदे पार्टी के 55 विधायकों में से 40 से अधिक के साथ असम चले गए हैं. एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व में शिवसेना विधायकों की बगावत से महाराष्ट्र के सियासत पर अनिश्चितता के बादल छा गए हैं.
एक तरफ संजय रावत ने कहा है कि अगर बागी शिवसेना विधायक 24 घंटों के अंदर वापस आ जाते हैं तो उद्धव ठाकरे MVA सरकार को छोड़ने पर विचार कर सकते हैं. वहीं दूसरे तरफ शिंदे गुट संख्या बल की ताकत पर उद्धव ठाकरे को कोई मुरव्वत देते नहीं दिख रहा.
जैसे ही एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के बागी विधायकों की संख्या ने 37 के जादुई आंकड़े को पार कर लिया, इसने महाराष्ट्र में नई सरकार गठन की दिशा तय कर दी.
आपको बता दें कि दल बदल कानून के अनुसार किसी पार्टी के अगर ⅔ विधायक दल-बदल करते हैं तो वे अयोग्य घोषित नहीं होते हैं. चूंकि शिवसेना के पास मौजूदा विधानसभा में कुल 55 विधायक हैं, इस स्थिति में 37 ही जादुई आंकड़ा है.
वर्तमान सदन में 106 विधायकों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है, और शिंदे के 40 MLA के दावे के साथ यह आंकड़ा 146 तक जा सकता है. साथ ही पहले से ही छोटे दलों या निर्दलीय सात विधायक शिंदे समूह की ओर बढ़ चुके हैं. ऐसी स्थिति में बीजेपी के पास 144 का बहुमत का आंकड़ा आसानी से होगा और सरकार भी उसी की होगी.
एकनाथ शिंदे के पास दूसरा विकल्प यह होगा कि वे 40 से अधिक विधायकों के गुट के साथ खुद को ‘असली’ शिवसैनिक पार्टी बताये और उद्धव ठाकरे को ही हाशिए पर ढ़केल बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार बना लें. ऐसी स्थिति में उन्हें पार्टी पर कब्जा करने और सिंबल जीतने के लिए चुनाव आयोग के पास जाना होगा.
बावजूद इस पेशकश के, एक बार उन्हें याद होगा कि बीजेपी जैसी अखिल भारतीय पार्टी राज्यों में कैसे क्षेत्रीय पार्टियों पर हावी हो जाती है और कई बार उन्हें अपने में मिलाकर उसका वजूद तक खत्म कर देती है. बिहार का उदाहरण ही बताता है कि भले ही नीतीश कुमार सरकार चला रहे हैं लेकिन बीजेपी को मिले- बिग ब्रदर के तमगे के तले वो दबे हुए हैं और उनकी राजनीतिक स्वतंत्रता की एक सीमा है.
शिंदे गुट राज्यपाल से भी संपर्क कर सकता है और एमवीए सरकार के बहुमत को चुनौती दे सकता है. इस तरह गेंद राज्यपाल के पाले में गिर सकती है.
एक सवाल यह भी है कि क्या एकनाथ शिंदे नई पार्टी बना सकते हैं? दलबदल कानून कहता है कि नहीं. अगर वह ⅔ विधायकों के साथ शिवसेना छोड़ते हैं तो उन्हें किसी मौजूदा पार्टी में शामिल/मर्ज होना पड़ेगा. अगर वह नई पार्टी बनाने की कोशिश करते हैं तो उसे दलबदल कानून के तहत स्वेच्छा से पार्टी सदस्यता को त्यागना माना जाता है, और वह उन्हें विधायक बने रहने से अयोग्य कर देगा.
नई पार्टी बनाने की दूसरी परेशानी यह भी है कि शिंदे खुद एक कद्दावर नेता नहीं बल्कि कद्दावर लॉबिस्ट हैं. यानी अपने चेहरे के दम पर वो अपने साथ आने वाले विधायकों को चुनाव में वोटों की गारंटी नहीं दे सकते. साथ ही अगर वो शिवसेना छोड़ नई पार्टी बनाते हैं तो ‘हिंदुत्व’ और बाला साहेब जैसे फैक्टर के साथ बना बनाया शिवसेना का ब्रांड उनके हाथ से निकल जाएगा.
सबसे पहले तो उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद का मोह छोड़कर अपना कुनबा- शिवसेना बचाने की कोशिश करेंगे और उन्होंने यह किया भी है. जैसे ही बुधवार, 22 जून को उन्होंने मुख्यमंत्री निवास को छोड़कर ठाकरे परिवार के पुश्तैनी आवास का रुख किया- उन्होंने साफ कर दिया कि वो अपने हाथ से बाला साहेब ठाकरे के बनाए इस पार्टी की कमान छोड़ने को तैयार नहीं है, भले ही इसके लिए उन्हें सत्ता गंवानी पड़े.
अभी तक के विकास से लगता है कि मजबूरी में ही सही उद्धव ठाकरे बीजेपी के साथ गठबंधन को ना नहीं कह रहे हैं. शिवसेना सांसद संजय रावत ने भी कहा है कि अगर बागी विधायक अगले 24 घंटों में वापस आ जाते हैं तो पार्टी MVA सरकार से निकलने पर विचार कर सकती है. उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि बातचीत के दरवाजे अभी भी खुले हैं.
उद्धव ठाकरे के पास एक विकल्प यह भी है कि वो चुनाव की ओर जाएं. शिवसेना नेता संजय राउत ने बुधवार को राज्य में विधानसभा भंग करने की धमकी दी थी. लेकिन यदि राज्य सरकार सदन को भंग करने की सिफारिश करती है तो राज्यपाल यह सवाल कर सकते हैं कि क्या सरकार के पास विधानसभा को भंग करने के लिए जरुरी बहुमत का आंकड़ा है?
जब तक 'विद्रोही' शिवसेना विधायक अपनी पार्टी से इस्तीफा नहीं देते या पार्टी व्हिप के खिलाफ वोट नहीं देते, उन्हें दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है. यदि इनमें से कोई भी बात होती है, तो डिप्टी स्पीकर नरहरि जीरवाल को स्थिति की जांच करनी होगी और तय करना होगा कि क्या उन्हें अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए.
चूंकि महाराष्ट्र में अभी स्पीकर नहीं है यहां यह काम डिप्टी स्पीकर नरहरि जीरवाल करेंगे. याद रहे कि दलबदल पर स्पीकर का निर्णय 'न्यायिक समीक्षा' के अधीन है लेकिन कानून में इसकी कोई एक समय सीमा नहीं है जिसके भीतर स्पीकर को दलबदल मामले का फैसला देना होता है.
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