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एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व वाली शिवसेना (SHS) के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट को बताया कि "BJP, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के बीच यह व्यवस्था काम नहीं करेगी. आम धारणा ये है कि कुछ महीनों में मतभेद बढ़ेंगे और भारतीय जनता पार्टी (BJP) आखिर में लीड करने की कोशिश करेगी."
उन्होंने आगे कहा कि “एनसीपी नेता अजीत पवार के पार्टी में शामिल होने पर पार्टी के भीतर हलचल तेज हो गई है.”
एनसीपी के कई दिग्गज चेहरों को लेकर अजित पवार 2 जुलाई को उपमुख्यमंत्री के रूप में महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए. अजीत पवार की इस राजनीतिक चाल ने न केवल राज्य में मतदाताओं को चौंकाया, बल्कि एकनाथ शिंदे गुट के कई विधायकों को भी जोर का झटका दे दिया. साल 2019 में उन्हें इसी तरह की दुविधा का सामना करना पड़ा था जब उद्धव ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का फैसला कर लिया था.
स्वाभाविक रूप से हालिया घटनाक्रम ने शिंदे गुट के ज्यादातर विधायकों को नाराज कर दिया है. अजित पवार के इस राजनीतिक चाल के बाद पिछले पांच दिनों से शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना इस मामले पर चुप रही है. उनमें से कुछ ने खुले तौर अपनी निराशा जताई है. बहुत से विधायक ऑफ रिकॉर्ड नाराजगी जता रहे हैं.
शिंदे खेमे में अशांति के पीछे पांच स्पष्ट कारण हैंः
सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी जिस एकमात्र पार्टी पर भरोसा कर सकती थी, उसके एकाधिकार का नुकसान
एनसीपी नेताओं को राज्य सरकार में शामिल किया जा रहा है, जबकि शिंदे-फडणवीस मंत्रिमंडल के विस्तार में लंबे समय से शिवसेना के कई लोगों शामिल करना बाकी है, जिन्हें पिछले साल जगह देने का वादा किया गया था.
एमवीए में रहते हुए जिनके साथ वे कुश्ती लड़ रहे थे, उनसे हाथ मिलाने को लेकर दुविधा.
2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे की बात आएगी तो वादे से अधिक समझौते करने पड़ सकते हैं
शिंदे के विधायकों को डर है कि अजित पवार हस्तक्षेप करेंगे और उनके लिए बाधाएं पैदा करेंगे जैसा कि उन्होंने कथित तौर पर एमवीए सरकार में किया था
गुट की ओर से दो दिनों की असहज चुप्पी के बाद, अशांति की पुष्टि पहली बार 4 जुलाई को हुई जब वरिष्ठ नेता संजय शिरसाट ने कहा कि कई विधायक निराश हैं.
शिरसाट ने बुधवार को कहा कि "शिवसेना और बीजेपी ने गठबंधन किया था. तीसरी पार्टी अप्रत्याशित रूप से आई .जब भी कोई तीसरी पार्टी आती है, तो उसे कुछ हिस्सा देना होता है जो कि देवेंद्र फड़नवीस और एकनाथ शिंदे ने दिया है. क्योंकि हमने कुछ मंत्री पद खो दिए हैं, कुछ विधायकों का परेशान होना स्वाभाविक है और उन्होंने इसे व्यक्त किया है.''
गठबंधन को एक सप्ताह से भी कम समय हुआ है और संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों को लेकर नेताओं के बीच गहमा-गहमी तेज हो गई है.
पार्थ पवार बनाम श्रीरंग बार्ने
एनसीपी और शिवसेना के बीच सबसे प्रमुख टकराव मावल लोकसभा क्षेत्र को लेकर सामने आया है. यह सीट अजित पवार के बेटे पार्थ 2019 के विधानसभा चुनाव में पुरानी शिवसेना के श्रीरंग बार्ने से हार गए थे. बार्ने ने मीडिया से कहा कि वह 2024 में भी बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी गठबंधन के लिए मावल लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे.
बार्ने ने एक स्थानीय समाचार चैनल से कहा, "अजित पवार अभी गठबंधन में शामिल हुए हैं. कुछ अन्य सहयोगी भी हैं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में मैं निश्चित रूप से मावल निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ूंगा."
अदिति तटकरे बनाम भारतशेत गोगावले
2 जुलाई को एनसीपी नेता अदिति तटकरे को अजित पवार के साथ महाराष्ट्र कैबिनेट में शामिल किया गया था. तटकरे पहले से ही रायगढ़ में शिवसेना विधायक भरतशेत गोगावले और उनके समर्थकों से खुले विद्रोह का सामना कर रही हैं.
अदिति तटकरे के पिता सुनील तटकरे शरद पवार के पूर्व वफादार माने जाते थे. अदिति को हाल ही में अजीत पवार ने महाराष्ट्र एनसीपी 'प्रमुख' घोषित किया था. अदिति रायगढ़ क्षेत्र की एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं. शपथ लेने के दो दिन बाद ही उन्हें रायगढ़ का संरक्षक मंत्री बना दिया गया.
गोगावले के अलावा अदिति की नियुक्ति का रायगढ़ के पांच अन्य विधायक भी विरोध कर रहे हैं. कर्जत से शिवसेना विधायक महेंद्र थोर्वे ने कहा, "मैं स्पष्ट रूप से कह रहा हूं कि हम उन्हें संरक्षक मंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे."
हसन मुश्रीफ बनाम सुनील घाटगे
कोल्हापुर ग्रामीण जिले के बीजेपी प्रमुख सुनील घाटगे ने कहा है कि वे कागल निर्वाचन क्षेत्र से एनसीपी नेता और अब कैबिनेट मंत्री हसन मुश्रीफ के खिलाफ 2024 का चुनाव लड़ेंगे.
हलचल सिर्फ शिवसेना के भीतर ही नहीं बल्कि प्रहार जनशक्ति पार्टी (PHJSP) के भीतर भी है.
पिछले कुछ दिनों से खुले तौर पर नाराजगी जताने वाले पीएचजेएसपी नेता और अचलापुर विधायक बच्चू कडू ने कहा, "एकनाथ शिंदे के साथ 40 विधायकों के भीतर एक ही चिंता है कि क्या उन्होंने बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर गलती कर दी. कई लोगों का मानना है कि निर्णय से पहले उन्हें विश्वास में लिया जाना चाहिए था, क्योंकि वे भी गठबंधन का हिस्सा हैं.''
कडू ने एक समाचार चैनल से बात करते हुए कहा, "अगर दादा (अजित पवार) अब यहां हैं, तो वह अपने विधायकों के लिए धन हड़पने और हमारी पार्टी के मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करेंगे."
काडू को मनाने की कोशिश करते हुए, महाराष्ट्र बीजेपी प्रमुख चन्द्रशेखर बावनकुले ने गुरुवार को सार्वजनिक रूप से गठबंधन में उन्हें "बड़ी भूमिका" देने का वादा किया.
बावनकुले ने कहा "कोई भी परेशान नहीं है, लेकिन कुछ निराशा स्वाभाविक है. वह एक मंत्री हुआ करते थे, इसलिए उनका रुख गलत नहीं है. इस गठबंधन में बच्चू कडू जैसे नेताओं को प्रमुखता दी गई है जो उन्हें एमवीए में नहीं मिली. इसलिए, देवेंद्र फड़नवीस उनके लिए एक बड़ी भूमिका सुनिश्चित करेंगे.''
इस बीच उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना कह रही है कि अजीत पवार के गठबंधन के बाद शिंदे लंबे समय तक सीएम नहीं रहेंगे. वहीं उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने दावा किया है कि शिंदे के 8-10 विधायकों ने "मूल शिवसेना" में लौटने के लिए उनसे संपर्क किया था. मीडिया को संबोधित करते हुए शिवसेना (यूबीटी) सांसद विनायक राउत ने दावा किया कि पार्टी उनमें से किसी को भी वापस स्वीकार नहीं करेगी.
संजय राउत ने शिंदे गुट के विधायकों से यहां तक कहा कि वे छगन भुजबल के खिलाफ अपनी टिप्पणी याद रखें और "अगर उनमें थोड़ी भी नैतिकता है तो इस्तीफा दे दें."
सीएम शिंदे ने बाद में बढ़ती अशांति पर अपनी चुप्पी तोड़ी और घटनाक्रम को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. मंत्री पद पर टिप्पणी करते हुए शिंदे ने कहा, "कोई निराशा नहीं है. मैंने सभी विधायकों से मुलाकात कर उनसे बात की है. हमने सत्ता के पद छोड़ दिए और दूसरी तरफ आ गए. हमें नहीं पता था कि भविष्य में क्या होगा."
कैबिनेट मंत्री और शिवसेना नेता उदय सामंत ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि न तो शिरसाट और न ही गोगावले 'परेशान या निराश' हैं. हालांकि, सामंत ने कहा कि शिंदे को अब उम्मीद है कि कैबिनेट विस्तार जल्द से जल्द होगा.
सामंत ने कहा, "हमारी पार्टी के सहयोगियों को भी न्याय मिलना चाहिए. ये एकनाथ शिंदे जी का स्पष्ट रुख है, इसलिए लंबित कैबिनेट विस्तार जल्द ही होगा."
जबकि शिवसेना और बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व गठबंधन के भीतर अशांति को कम करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है. यह स्पष्ट है कि एनसीपी के प्रवेश से दोनों भगवा दलों के बीच एक सहज समीकरण बनने में केवल जटिल मामले ही सामने आए हैं.
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