मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019K R Narayanan: देश के पहले दलित राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी से क्या पूछा था?

K R Narayanan: देश के पहले दलित राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी से क्या पूछा था?

वो राष्ट्रपति जिन्होंने 'रबर स्टाम्प' बनने से इनकार कर दिया था.

उपेंद्र कुमार
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p>K R Narayanan: देश के पहले दलित राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी से क्या पूछा था?</p></div>
i

K R Narayanan: देश के पहले दलित राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी से क्या पूछा था?

फोटो: उपेंद्र कुमार/ क्विंट हिंदी

advertisement

(भारत के 10वें राष्ट्रपति केआर नारायणन की जयंती पर इस लेख को दोबारा से पब्लिश किया जा रहा है.)

  • वो राष्ट्रपति जिसे विदेशी महिला से प्यार हुआ, तो इस शादी के लिए भारत का कानून बदला गया.

  • वो राष्ट्रपति जिसने रबर स्टाम्प बनने से इनकार कर दिया था.

  • वो राष्ट्रपति जिसने महात्मा गांधी का इंटरव्यू लिया, और गांधी से ऐसा सवाल पूछा कि वो हक्का बक्का रह गए.

सियासत में आज बात भारत के 10वें राष्ट्रपति और 9 वें उपराष्ट्रपति रहे कोच्चेरील रामन नारायणन की.

साल था 1949...लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइन्स में डिग्री हासिल करने के बाद के आर नारायणन भारत लौटे थे. इस दौरान वो अपने साथ एक पत्र भी लेकर आए थे. ये पत्र था उनके गुरु और प्रख्यात अर्थशास्त्री हेराल्ड लॉस्की का. लॉस्की ने ये पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के लिए भेजा था. दरअसल, लॉस्की, नेहरू के बहुत अच्छे मित्र थे और नेहरू भी लॉस्की का बहुत सम्मान करते थे.

लॉस्की ने के आर नारायणन से कहा था कि ये पत्र तुम खुद जाकर जवाहर लाल नेहरू को देना. भारत लौटने के बाद के आर नारायणन ने जवाहर लाल नेहरू से मिलने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से वक्त मांगा.

दरअसल, वो दूसरा दौर था, उस समय पीएम से मिलना इतना मुश्किल नहीं होता था. नारायणन को भी जवाहर लाल नेहरू से मिलने का वक्त मिल गया.

अपने एक इंटरव्यू में नारायणन ने बताया था कि "पंडित नेहरू ने संसद भवन में मुझसे मुलाकात की. हमने कुछ देर लंदन की बातें कीं और कुछ औपचारिक बातें भी हुईं. उसके बाद मैंने आभास कर लिया कि मुलाकात का वक्त खत्म हो गया है. तब मैंने उन्हें अलविदा कहा और कमरे से बाहर जाने से पहले लॉस्की का पत्र पंडित नेहरू को सौंप दिया.

"मैं बाहर घुमावदार आधे गलियारे तक ही पहुंच पाया था कि मुझे लगा कि मैं जिस दिशा से आया हूं, उधर कोई ताली बजा रहा है. मैंने घूमकर देखा तो पंडित नेहरू ने मुझे वापस आने का इशारा किया. दरअसल, मेरे जाने के बाद पंडित नेहरू ने वह पत्र खोलकर पढ़ लिया था. मैं जैसे ही पंडित नेहरू के करीब पहुंचा तो उन्होंने झट से पूछा कि तुमने यह पत्र मुझे पहले क्यों नहीं दिया? तो मैंने जवाब दिया कि क्षमा चाहता हूं, मुझे यही बेहतर लगा कि मैं ये पत्र आपको जाते वक्त सौंपूं."

इस मुलाकात के कुछ दिनों बाद ही पंडित नेहरू ने के आर नारायणन को भारतीय विदेश सेवा के तहत म्यानमार में भारत का राजदूत बनाकर भेज दिया. म्यानमार में भारत का राजदूत रहते हुए ही नारायणन की वहां की एक महिला मित्र से नजदीकीयां बढ़ने लगीं. ये नजदीकी धीरे-धीरे प्यार में बदली और मामला शादी तक पहुंच गया.

दरअसल, नारायणन अपनी विदेशी महिला मित्र ‘मा टिन टिन’ से पहली बार लंदन में मिले थे. नारायणन के गुरु लॉस्की ने राजनीतिक आजादी पर एक व्याख्यान रखा था. जिसमें नारायणन ने राजनीतिक आजादी पर बहुत ही प्रभावशाली भाषण दिया था.

इसी व्याख्यान के दौरान नारायणन की मुलाकात ‘मा टिन टिन’ से हुई थी. उस समय वो YWCA यानी यंग वुमेन क्रिश्चियन एसोसिएशन में काम कर रहीं थी और नारायणन एक छात्र थे.

नारायणन और मा टिन टिन की शादी के बीच एक पेंच फंस रहा था. क्योंकि, नारायणन 'भारतीय विदेश सेवा' में कार्यरत थे और मा टिंन टिंन एक विदेशी महिला थीं. ऐसे में भारतीय कानून दोनों की शादी की इजाजत नहीं देता था. ये बात नारायणन भलीभांती जानते थे.

इस समस्या के हल के लिए उन्होंने पंडित नेहरू से संपर्क किया और सारी बातें पंडित नेहरू को बताईं. पंडित नेहरू ने इस शादी के लिए हां कर दी. इसके बाद 8 जून 1951 को दिल्ली में नारायणन और मा टिन टिन की शादी हुई. शादी के बाद मा टिन टिन का नाम उषा रखा गया.

साल 1945 में पढ़ाई करने के लिए लंदन जाने से पहले नारायणन ने महात्मा गांधी का इंटरव्यू लिया था. दरअसल, नारायणन एक पत्रकार भी थे. उन्होंने साल 1943 से 1945 के बीच द हिंदू और टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए मुंबई संवाददाता के रूप में काम किया था. इसी दौरान उन्होंने महात्मा गांधी का इंटरव्यू लिया था.

जब वो महात्मा गांधी का इंटरव्यू लेने पहुंचे तो पता चला कि गांधी मौन व्रत धारण किए हुए हैं. तब ये हुआ कि इंटरव्यू कैसे होगा. तब नारायणन ने महात्मा गांधी का इंटरव्यू स्लेट पर लिया था. नारायणन स्लेट पर लिखकर प्रश्न पूछते थे और महात्मा गांधी लिखकर उसका जवाब देते थे.

गोपालकृष्ण गांधी अपनी किताब "ऑफ ए सर्टेन एज: ट्वेंटी लाइफ स्केचेज" में लिखते हैं कि के आर नारायणन ने महात्मा गांधी के सामने दो प्रश्न खड़े किए थे.

पहला ये था कि "आपने हमारे लिए सत्य और असत्य को सरल बनाया है. लेकिन, जब एक साथ दो सत्य सामने आकर खड़े हो जाएं तो ऐसी स्थिति में क्या करना होगा?

और दूसरा सवाल ये था कि “जब इंग्लैंड में लोग मुझसे छुआछूत के बारे में पूछेंगे, तो क्या मुझे सच कह देना चाहिए, या भारतीय होने के नाते अपने देश का बचाव करना चाहिए.

नारायणन के दोनों सवालों को सुनकर महात्मा गांधी हक्का बक्का रह गए थे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

के आर नारायणन का जन्म 27 अक्टूबर 1920 में केरल के उझावूर में एक फूस की झोपड़ी में हुआ था. नारायणन के पिता के आर वेद्यार आयुर्वेद के डॉक्टर थे, लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वो अपने बेटों की फीस भर सकें. नारायणन सात भाइयों में चौथे थे. नारायणन का परिवार काफी गरीब था. इनके पूर्वज पारवान जाति से आते थे, जो नारियल तोड़ने का काम किया करता था.

नारायणन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि "स्कूल के दिनों हमें बहुत अपमान सहना पड़ा था. क्योंकि, जब भी फीस मांगी जाती थी, तो हमारे पास उतने पैसे नहीं होते थे कि हम स्कूल का फीस दे सकें. तो हमें क्लास से बाहर कर दिया जाता था. ऐसे में हम क्लास के बाहर खड़े होकर खिड़की से ही देखकर पढ़ा करते थे."

नारायणन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि "स्कूल के दिनों हमें बहुत अपमान सहना पड़ा था. क्योंकि, जब भी फीस मांगी जाती थी, तो हमारे पास उतने पैसे नहीं होते थे कि हम स्कूल का फीस दे सकें. तो हमें क्लास से बाहर कर दिया जाता था. ऐसे में हम क्लास के बाहर खड़े होकर खिड़की से ही देखकर पढ़ा करते थे."

दरअसल, के आर नारायणन को पढ़ने का बहुत शौक था.  लेकिन, पैसे नहीं होने की वजह से किताबें भी नहीं खरीद पाते थे, तो उनके बड़े भाई के आर नीलकंतन छात्रों से पुस्तकें मांग कर उनकी हू-ब-हू नकल उतार कर नारायणन को देते थे.

नारायणन ने सेंट मेरी हाई स्कूल से मैट्रिक और CMS स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की. इसके बाद कला में स्नात्तक किया और फिर साल 1943 में त्रावणकोर विश्वविद्यालय से स्नात्तकोत्रर की परीक्षा में टॉप किया. नारायणन त्रावणकोर विश्वविद्यालय के पहले दलित छात्र थे, जिसने यूनिवर्सिटी टॉप किया था.

साल 1945 में जे.आर.डी टाटा से छात्रवृत्ति मिलने के बाद नारायणन पढ़ाई के लिए लंदन चले गए. जब वहां से लौटे तो भारतीय विदेश सेवा में नौकरी की. अमेरिका, लंदन, टोक्यो, चीन, तुर्की, रंगून, कैनबरा और हनोई में भारतीय राजदूत के रूप में काम किया.

इसके बाद इन्होंने राजनीति में एंट्री की तो केरल की ओट्टापलल सीट से 1984, 1989 और 1991में लगातार तीन बार सांसद चुने गए. राजीव गांधी सरकार में विदेश मंत्री रहे और साल 1992 में देश के 9वें उपराष्ट्रपति चुने गए. इसके बाद 25 जुलाई साल 1997 में देश के 10वें राष्ट्रपति बने.

राष्ट्रपति चुने जाने के बाद नारायणन ने अपने संबोधन में कहा था कि “देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद एक ऐसे व्यक्ति को प्रदान किया गया है, जो धरातल से जुड़ा है, धूल और गर्मी के बीच चला है. यह निर्वाचन साबित करता है कि एक सामान्य नागरिक भी सामाजिक और राजनीतिक जीवन में केन्द्रीय भूमिका निभा सकता है. मैं इसे अपनी व्यक्तिगत प्रसन्नता न मानकर एक सार्थक और प्रतिष्ठापूर्ण परम्परा का आरम्भ मानता हूं."

राष्ट्रपति रहते नारायणन ने कई फैसले लिए जो मिसाल बन गए. उन्होंने उत्तर प्रदेश और बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने की केंद्र सरकार की अनुशंसा को खारिज कर दिया था और पुर्नविचार करने के लिए भेज दिया था. अपने कार्यकाल के दौरान ही दो लोकसभा के कार्यकाल को भंग कर दिया था.

जब साल 2002 में गुजरात दंगा हुआ था तो उन्होंने एक बयान दिया था, जिसकी दुनिया भर में चर्चा हुई थी. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत के राष्ट्रपति के रूप में मैंने बेहद दु:ख और स्वयं को असहाय महसूस किया. ऐसे कई अवसर आए जब मैं देश के नागरिकों के लिए कुछ नहीं कर सका. इन अनुभवों ने मुझे काफी दु:ख पहुंचाया. सीमित शक्तियों के कारण मैं पीड़ा महसूस करता था.

9 नवंबर साल 2005 को के आर नारायणन ने दिल्ली के आर्मी रिसर्च एण्ड रैफरल हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली.

नारायणन ने अपने राष्ट्रपति पद से विदाई के भाषण पर कहा था कि “जब मैं केरल के उझावूर में विभिन्न धर्मावलम्बियों के साथ रहते हुए बड़ा हो रहा था, तब धार्मिक सहिष्णुता और एकता के साथ हिन्दू और क्रिश्चियन लोगों ने हमारी आरम्भिक शिक्षा में मदद की थी. इसी तरह में चुनाव प्रचार में भी सभी धर्मों के लोगों ने हिस्सा लिया था. ऐसे में भारत की एकता और प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए धार्मिक सहिष्णुता का होना बहुत जरूरी है. हिन्दुओं को चाहिए कि वे बहुसंख्यक होने के कारण हिन्दुत्व के पारम्परिक मूल्यों के अनुसार सभी धर्मों का सम्मान करें."

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 05 Nov 2022,07:20 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT