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16 अक्टूबर को हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी (Congress Working Committee) की बैठक से बाहर आने वाली सुर्खियां मुख्य रूप से इन दो बातों पर केंद्रित थीं- सितंबर 2022 में पार्टी का अगला अध्यक्ष चुना जाएगा और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने विरोधियों को मीडिया में जाने की बजाय सीधे आलोचना करने के लिए कहा है.
लेकिन बैठक का एक हिस्सा ऐसा भी है, जिस पर उतना ध्यान नहीं दिया गया, जबकि उससे पार्टी की रणनीति का संकेत मिल सकता है.
ऐसा माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने बैठक में इस ओर इशारा किया कि जिन अन्य लोगों को उन्होंने मुख्यमंत्री बनाए जाने के बारे में सूचित किया था - चाहे वह अशोक गहलोत हों, कमलनाथ हों या भूपेश बघेल हों - किसी ने इस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी.
उत्तराखंड के पूर्व सीएम और पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत की इसी तरह की एक टिप्पणी इस संदर्भ में प्रासंगिक है. पंजाब में चन्नी की नियुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद हरीश रावत ने पिछले महीने कहा था कि उन्हें "उम्मीद है कि उत्तराखंड का भी मुख्यमंत्री एक दलित बनेगा".
इन सभी बयानों को अलग-अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए. पार्टी सूत्रों का कहना है कि ये कांग्रेस का दलित, बहुजन और आदिवासी समुदायों के बीच अपने लिए एक नया आधार बनाने या अपने पुराने आधार को मजबूत करने के प्रयास का हिस्सा हो सकते हैं.
पंजाब के सीएम के रूप में चरणजीत चन्नी की नियुक्ति आंशिक रूप से पंजाब कांग्रेस के अंदर विभिन्न गुटों के प्रतिस्पर्धी हितों के कारण हो सकती है. लेकिन इसका मतलब पार्टी के लिए कुछ बड़ा हो गया है. कांग्रेस इसे उच्च पदों पर प्रताड़ित जातियों को अधिक प्रतिनिधित्व देने की अपनी प्रतिबद्धता के रूप में प्रदर्शित कर रही है.
इस तथ्य पर भी ध्यान दें कि कांग्रेस के अन्य दो मुख्यमंत्री OBC बैकग्राउंड से हैं. जहां राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत माली जाति से हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल कुर्मी जाती से. इसके विपरीत बीजेपी के अधिकांश मुख्यमंत्री प्रभावशाली समुदायों से हैं.
नार्थ-ईस्ट को छोड़ दें, तो केवल शिवराज सिंह चौहान एक गैर-विशेषाधिकार प्राप्त जाति (OBC) वाले बैकग्राउंड से हैं. नार्थ-ईस्ट में भी बीजेपी ने लोकप्रिय आदिवासी नेता और पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल की जगह हिमंता बिस्वा सरमा (ब्राह्मण) को सीएम बनाया है.
हाल ही में वडगाम से विधायक और गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने भी कांग्रेस का दामन थामा है. कांग्रेस पप्पू यादव को अपने खेमे में लाने और उनकी जन अधिकार पार्टी का विलय सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में है. गौरतलब है कि बिहार में कोसी क्षेत्र के यादवों और अल्पसंख्यकों के बीच पप्पू यादव का कुछ प्रभाव है.
कांग्रेस में (खासकर राहुल के करीबी लोगों में) एक विश्वास है कि बीएसपी और लेफ्ट पार्टियां दोनों राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट में हैं और ऐसे में कांग्रेस दलित-समर्थक और गरीब-समर्थक राजनीति को आक्रामक रूप बढ़ा सकती है.
कांग्रेस पार्टी इसे बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति के तोड़ के रूप में भी देख रही है. संभावना है कि कांग्रेस दलित बुद्धिजीवियों और इन्फ्लुएंसरों को अपने साथ लाने की कोशिश करेगी.
एक कांग्रेस नेता ने द क्विंट को बताया कि “यह अभी शुरुआती चरण में है, इसलिए मैं ज्यादा खुलासा नहीं कर सकता. लेकिन मुझे लगता है कि दलित एक्टिविस्ट्स और बुद्धिजीवियों के साथ कांग्रेस के एक जमीन पर एकसाथ आने की संभावना है. हिंदू दक्षिणपंथ या कम्युनिस्टों के विपरीत कांग्रेस जाति उत्पीड़न के अस्तित्व को नकारती नहीं है या हिंदुत्व या वर्ग संघर्ष के ढांचे के भीतर इसे सही ठहराने का प्रयास नहीं करती है. यह एक अच्छी शुरुआत हो सकती है."
यह पार्ट पेचीदा है.
लोकनीति-CSDS के आंकड़ों के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA को पूरे भारत में ऊंची जातियों का 59%, OBC का 54%, आदिवासी वोट का 46% और दलित वोट का 41% हासिल हुआ था. हालांकि राज्य-दर-राज्य इस आंकड़े में अंतर है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी OBC और दलितों के बीच बीजेपी और महागठबंधन दोनों से काफी पीछे थी. महाराष्ट्र में NDA को दलितों के बीच यूपीए पर छोटी बढ़त थी, जबकि वंचित बहुजन अघाड़ी दोनों से आगे थी.
पंजाब को छोड़कर इन सभी राज्यों में NDA ने बाजी मारी थी. लेकिन हरियाणा और बिहार को छोड़कर दलित NDA के पीछे उतने लामबंद नहीं हुए जितने उच्च जाति, ओबीसी और यहां तक कि आदिवासी भी हुए.
इसका मतलब यह है कि कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक स्थिर दलित आधार को सक्रिय रूप से विकसित करने की कुछ संभावना है. हालांकि पार्टी को आदिवासियों के बीच, और उससे भी अधिक OBC के बीच अधिक मेहनत करने की आवश्यकता होगी. OBC एक ऐसा वर्ग है जिसमें बीजेपी का तेजी से प्रभाव बढ़ा है जबकि कांग्रेस पिछले कुछ दशकों से कमजोर हो गई है.
चुनावी विचार कहानी का केवल एक हिस्सा है. दलित समुदायों के लोगों को बढ़ावा देने की राहुल गांधी की योजना भी कांग्रेस के भीतर जड़ जमा चुके हितों को तोड़ने का एक तरीका है.
CWC की बैठक के दौरान राहुल गांधी ने वैचारिक स्पष्टता के साथ-साथ पदों के बीच मौजूद दीवारों को तोड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह सिद्धांत पार्टी और सरकार के शीर्ष पदों पर भी लागू होगा.
इससे कांग्रेस को अल्पावधि में राजनीतिक सफलता मिलती है या लंबी अवधि में भी, यह देखना बाकी है. लेकिन ऐसा लगता है कि इससे पार्टी के भीतर उथल-पुथल हो सकता है.
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