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Queen Elizabeth II और भारत की यादें, जब रानी यहां के लोगों की हो गई थीं मुरीद

Queen Elizabeth II के तीन भारत दौरों से जुड़ी कहानियां

अजय कुमार पटेल
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय का निधन</p></div>
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क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय का निधन

(फोटो: इंस्टाग्राम/The Royal Family)

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ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का 8 सिंतबर 2022 को 96 साल की उम्र में निधन हो गया. महारानी एलिजाबेथ द्वितीय (Queen Elizabeth II) ब्रिटेन की सबसे लंबे वक्त तक (70 साल) शासन करने वाली शासक रहीं. भारत के साथ उनके अच्छे संबंध रहे हैं, 7 दशक के शासनकाल में उन्होंने भारत का तीन बार दौरा किया था. जवाहर लाल नेहरु और डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के अलावा ज्ञानी जैल सिंह और डॉक्टर के आर नारायणन ने Queen Elizabeth II का भारत में स्वागत किया था.

आइए जानते हैं ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय कब-कब भारत आईं और भारत को लेकर उन्होंने क्या कहा.

Queen Elizabeth II कब-कब भारत दौरे पर आईं?

Queen Elizabeth II ने अपने 70 साल के शासनकाल में भारत की तीन यात्राएं की थीं. उन्हाेंने 1961, 1983 और 1997 में भारत का दौरा किया था.

1961 : 50 साल बाद किसी ब्रिटिश शासक का दौरा, राजघाट में अहिंसा के पुजारी को किया नमन

भारत की आजादी के करीब 15 साल बाद 1961 में Queen Elizabeth II पहली बार भारत दौरे पर आई थीं. तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दिल्ली हवाई अड्डे पर शाही जोड़े की अगवानी की थी.

महात्मा गांधी की मृत्यु के 13 साल बाद महारानी एलिजाबेथ ने उनकी समाधि स्थल राजघाट का दौरा भी किया था. अहिंसा के पुजारी गांधीजी की समाधि के पहले महारानी ने अपनी सैंडल उतार दी थी, उनको देखते हुए उनके पति और ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग, प्रिंस फिलिप ने भी ऐसा ही किया था.

1911 में महारानी के दादा-दादी किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी ने भारत की शाही यात्रा की थी. उस यात्रा के 50 साल बाद महारानी भारत आने वाली पहली ब्रिटिश शासक थीं. एलिजाबेथ द्वितीय अपने पिता किंग जॉर्ज VI की मृत्यु के बाद 6 फरवरी, 1952 को गद्दी पर बैठी थीं.

दिल्ली के राजपथ (अब कर्तव्य पथ) में महारानी ने 1961 की गणतंत्र दिवस परेड में विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया था, जिसमें भारत की नवेली सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया गया था. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी रानी के स्वागत के लिए रामलीला मैदान में एक कार्यक्रम की मेजबानी की थी. इस आयोजन के दौरान दिल्ली निगम ने रानी को हाथी के दांत से बना कुतुब मीनार का दो फीट लंबा मॉडल उपहार में दिया था और ड्यूक को एक सिल्वर कैंडेलब्रा प्राप्त हुआ था.

27 जनवरी को महारानी ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के भवनों का उद्घाटन किया, जहां उन्होंने परिसर में एक पौधा भी लगाया था.

गणतंत्र दिवस परेड से पहले रानी और ड्यूक ने जयपुर का दौरा किया था. गणतंत्र दिवस के तुरंत बाद महारानी आगरा के लिए रवाना हो गईं थीं, जहां उन्होंने ताजमहल तक जाने के लिए एक खुली कार का इस्तेमाल किया था. इस शाही जोड़े ने उदयपुर का भी दौरा किया था.

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इसके बाद महारानी पाकिस्तान गई थीं, वहां एक पखवाड़े बिताने के बाद महारानी भारत लौट आईं और दुर्गापुर स्टील प्लांट का दौरा किया, जिसे कुछ साल पहले ही ब्रिटेन की मदद से स्थापित किया गया था. कलकत्ता जाने से पहले महारानी ने स्टील प्लांट के मजदूरों से मुलाकात की थी. कोलकाता में इस शाही जोड़े ने लॉर्ड कर्जन द्वारा निर्मित विक्टोरिया मेमोरियल का दौरा किया था. 1847 में स्थापित हॉर्स राइडिंग संगठन, द रॉयल कलकत्ता टर्फ क्लब ने महारानी को सम्मानित करने के लिए एक हॉर्स रेस का आयोजन किया था. इस दौड़ के लिए पुरस्कार राशि 30,000 रुपये थी. महारानी ने विजेता घोड़े के मालिक (स्थानीय व्यापारी की पत्नी) को कप भेंट किया था.

कलकत्ता के बाद शाही जोड़ा दक्षिणी भारत की यात्रा पर बैंगलोर पहुंचा था, जहां मैसूर के महाराजा और बैंगलोर के मेयर ने रानी और ड्यूक का स्वागत किया. बंगलौर में बाइबल सोसाइटी ऑफ इंडिया का मुख्यालय है, उस साल यह अपनी 100वीं वर्षगांठ मना रहा था. इस यात्रा के दौरान बाइबल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने महारानी को हिंदी में अनुवादित बाइबल से नवाजा था.

महारानी ने अपनी यात्रा की समृति में बॉटेनिकल गार्डन लाल बाग में एक पौधा लगाया था. बंगलौर के बाद, इस दौरे के अंतिम चरण में शाही जोड़ा चेन्नई, बॉम्बे और फिर बनारस गया, जहां रानी ने घाटों के साथ गंगा पर नाव की सवारी की थी.

भारतीयों की मेहमाननवाजी से प्रभावित

पहली यात्रा के दौरान महारानी ने भारत में मिली ‘गर्मजोशी और आतिथ्य’ की खूब तारीफ भी की थी. उन्होंने अपने एक संबोधन में कहा था कि “भारतीयों की गर्मजोशी और आतिथ्य भाव के अलावा भारत की समृद्धि और विविधता हम सभी के लिए एक प्रेरणा रही है."

1983 : मदर टेरेसा को दिया मानद ऑर्डर ऑफ मेरिट

1983 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के निमंत्रण पर महारानी एलिजाबेथ और राजकुमार फिलिप ने भारत का 9 दिवसीय दौरा किया था. ब्रिटिश महारानी 1983 में कॉमनवेल्थ देशों की बैठक में हिस्सा लेने भारत के दौरे पर आई थीं. इस दौरान उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी मुलाकात की थी. इस दौरान शाही जोड़े ने मदर टेरेसा को मानद ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया था. 7 नवंबर 1983 को ब्रिटेन के इस शाही जोड़े के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में समाराेह आयोजित किया गया था. दिल्ली में महारानी का आगमन किसी त्योहार से कम नहीं था. नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस को 6 महीने तक तैयार किया गया था. स्टाफ को महारानी के सामने पेश आने की तहजीब सिखाई गई थी. उनकी पसंद के अनुसार खाना पकाने के लिए खास शेफ रखे गए थे, क्योंकि महारानी भारतीय खाना नहीं खाती थीं.

भारत के दूसरे दौरे में क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय ने प्रेसिडेंशियल पैलेस में आयोजित समारोह में मदर टेरेसा को अंग्रेजो के शासन में दिए जाने वाले सिविलियन अवॉर्ड ऑर्डर ऑफ मेरिट से नवाजा था. यह मेरिट उन लोगों को दिया जाता था जोकि साहित्य, कला, आर्ट, विज्ञान और सेना में अच्छा काम करते हैं.

1997 : भारत की आजादी के 50 साल पूरे होने पर किया दौरा, जलियांवाला बाग घटना को बताया था दुखद

1997 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने भारत का आखिरी बार दौरा किया था. उनकी अंतिम यात्रा देश की आजादी की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में हुई थी. जब पूरा देश आजादी के स्वर्णिम अवसर को पूरे जोश और खुशी से मना रहा था, तब ब्रिटेन की महारानी भारत की इस खुशी में शामिल होने पहुंची थीं. वह 13 अक्टूबर को अपने पति प्रिंस फिलिप के साथ भारत पहुंची थीं. तब उनका स्वागत तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने किया था.

अपने अंतिम दौरे में क्वीन एलिजाबेथ ने कई धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया था. वह पंजाब अमृतसर में मौजूद गोल्डन टेम्पल पहुंची थी. इस दौरान उन्होंने अपने पैरों में सैंडल नहीं पहनी थी बल्कि सफेद रंग के मोजे पहनकर गुरुद्वारे में कदम रखा था. वह अमृतसर के जलियांवाला बाग (वर्ष 1919 में जहां नरसंहार हुआ था) में श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंची थी, ऐसा करने वाली वे ब्रिटेन की पहली राष्ट्राध्यक्ष थीं.

अमृतसर दौरे में महारानी को स्वर्ण मंदिर की प्रतिकृति भेंट की गई थी, उन्होंने विजिटर बुक में अपने अनुभव भी साझा किए थे.

औपनिवेशिक इतिहास को कठिन दौर बताया

तीसरी और आखिरी यात्रा के दौरान उन्होंने पहली बार औपनिवेशिक इतिहास के ‘कठोर दौर’ का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था, “यह कोई रहस्य नहीं है कि हमारे अतीत में कुछ कठोर घटनाएं हुई हैं. जलियांवाला बाग एक दुखद उदाहरण है.”

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