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रेमडेसिविर का नाम भारतीय वैज्ञानिक ‘रमेश’ के ऊपर होने का दावा गलत

रेमडिसिवर बनाने वाली कंपनी ने बताया कि भारतीय वैज्ञानिक के नाम पर दवा रखे जाने की बात सही नहीं है

हिमांशी दहिया
वेबकूफ
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रेमडिसिवर बनाने वाली कंपनी ने बताया कि  भारतीय वैज्ञानिक के नाम पर दवा का नाम नहीं रखा गया है.
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रेमडिसिवर बनाने वाली कंपनी ने बताया कि  भारतीय वैज्ञानिक के नाम पर दवा का नाम नहीं रखा गया है.
(फोटो: Altered by The Quint)

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सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है जिसमें दावा किया जा रहा है कि कोविड 19 के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंटीवायरल दवा रेमडेसिविर का नाम तमिलनाडु के रमेश ईएम देसिगन नाम के एक भारतीय वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है.

क्विंट ने सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध दवा के विकास और ट्रायल से जुड़े डेटा को खंगाला और दवा की पैरेंट कंपनी Gilead Sciences से भी बात की. कंपनी ने बताया कि ये दावा सही नहीं है.

दावा

वायरल हो रहे मैसेज में ये दावे किए जा रहे हैं:

  • रेमडेसिविर को कैलिफोर्निया की फॉर्मास्युटिकल कंपनी Gilead Science ने बनाया है. यहां एक चेक वैज्ञानिक तोमस सिलार (Tomas Cihlar) के नेतृत्व में एक टीम इबोला की दवा पर काम कर रही थी.

  • इस दवा का नाम सिलार की टीम के प्रमुख वैज्ञानिक रमेश ईएम देसिगन के नाम पर पड़ा. तमिलनाडु के रासीपुरम में रहने वाले रमेश साल 2002 में Gilead के लिए काम करने के लिए कैलिफोर्निया चल गए थे.

  • रेमडेसिविर का शुरुआत में Ebpantuvir नाम रखा गया था जिसे बाद में बदलकर रमेश ईएम देसीगन के नाम पर कर दिया गया. और Gilead कंपनी की ओर से तमिलनाडु में रमेश के प्राइमरी स्कूल, रासी इंटरनेशनल स्कूल को 20 लाख डॉलर डोनेट भी किया गया.

पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें(सोर्स: स्क्रीनशॉट/फेसबुक)

ये मैसेज फेसबुक और ट्विटर सहित कई सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर वायरल हो रहा है. दावे के आर्काइव आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.

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पड़ताल में हमने क्या पाया

वायरल मैसेज में किया जा रहा पहला दावा सही है कि कैलिफोर्निया की Gilead Science रेमडेसिविर की पैरेंट फार्मास्युटिकल कंपनी है. कंपनी की वेबसाइट में हमें दवा के विकास से जुड़ी जानकारी वाला दस्तावेज मिला.

डॉक्युमेंट में उस रिसर्च के बारे में बताया गया है जिसकी वजह से रेमडेसिविर का निर्माण साल 2009 में शुरू हुआ था. हेपेटाइटिस C (HCV) और रेस्पिरेटरी सिंसीशियल वायरस (RSV) से जुड़े रिसर्च प्रोग्राम के दौरान इस दवा के निर्माण की शुरुआत हुई थी. बाद में, इस दवा को साल 2014 में इबोला और हाल ही में कोरोना वायरस के लिए टेस्ट किया गया.

हमें कंपनी की वेबसाइट पर एक और आर्टिकल मिला जिसका टाइटल है:Four Questions with Tomas Cihlar: Committed to the Field of Emerging Viruses'. इसमें बताया गया है कि सिलार वायरोलॉजी के वाइस प्रेसीडेंट हैं और Gilead की एंटीवायरल रिसर्च का नेतृत्व करते हैं. उन्होंने रेमेडिसिविर के विकास से जुड़े प्रयासों का नेतृत्व किया है.

सिलार वायरोलॉजी के वाइस प्रेसीडेंट हैं(सोर्स: स्क्रीनशॉट/Gilead Sciences)

हालांकि, हमें कंपनी की वेबसाइट पर रमेश ईएम देसिगन (Ramesh EM Desigan) के बारे में कुछ भी नहीं मिला.

हमने Gilead Sciences से भी संपर्क किया, ताकि पुष्टि की जा सके कि रेमडेसिविर बनाने वाली और इसके ट्रायल से जुड़ी टीम में, क्या रमेश ईएम देसिगन नाम का कोई था?

कंपनी ने क्विंट की वेबकूफ टीम को ईमेल के जरिए बताया कि इस नाम का कोई भी शख्स उनके साथ काम नहीं करता है.

‘’ये दावा सही नहीं है. आपके ईमेल में पूछे गए नाम वाला कोई भी शख्स नहीं है, जिसका रेमडेसिविर से कोई संबंध है.’’
Bahar Turkoglu, सीनियर डायरेक्टर (पब्लिक अफेयर्स), Gilead Sciences

हमने तमिलनाडु के रासी इंटरनैशनल स्कूल से भी संपर्क किया. क्विंट से बातचीत में स्कूल के प्रिंसिपल डॉ. डी विद्यासागर ने बताया कि वायरल हो रहा ये मैसेज पूरी तरह से गलत है कि हमें किसी कैलिफोर्निया बेस्ड कंपनी से दान मिला है.

उन्होंने हमें ये भी बताया कि स्कूल साल 2008 में खुला था, तो ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी स्कूल के खुलने के पहले ही कोई स्टूडेंट वहां से इनरोल्ड हो जाए.

मतलब साफ है कि एंटीवायरल ड्रग रेमडेसिविर से जुड़े कई झूठे दावों वाला मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. ये दावा गलत है कि रेमडिसिविर का नाम भारतीय वैज्ञानिक रमेश के नाम पर रखा गया है.

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