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इजरायल में लापता नेपाली छात्र की मां का दर्द, 'उम्मीद खत्म हो रही कि बेटा जिंदा है'

Israel Hamas War: बिपिन को खोजने के लिए 'सर्च ऑपरेशन' जारी है. दूसरी तरफ इजरायल में 10 अन्य नेपाली छात्र मारे गए हैं.

मधुश्री गोस्वामी
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>आशीष चौधरी (बाएं) और बिपिन जोशी</p></div>
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आशीष चौधरी (बाएं) और बिपिन जोशी

(फोटो- अल्टर्ड बाई द क्विंट) 

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Israel-Hamas War: पश्चिमी नेपाल के सुदूर में स्थित कंचनपुर जिले में स्थित है भासी. यहां रहने वाले बिपिन जोशी के परिवार के लिए ऐसा लगता है कि समय रुक सा गया है. इसकी वजह है कि, परिवार को बिपिन से बात किए लगभग एक सप्ताह हो गया है.

पिछले सप्ताह शनिवार, 7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर हमला किया था. उसके बाद से बिपिन लापता हैं.

बिपिन की मां पद्मा जोशी ने द क्विंट को बताया, "हर गुजरते दिन के साथ, हमारी उम्मीद कम होती जा रही है कि हमारा बेटा जीवित है. यह केवल और अधिक पीड़ा पैदा कर रहा है."

बिपिन दो महीने पहले इजरायल पहुंचा था. वह नेपाल के टीकापुर में स्थिति सुदुरपाशिम यूनिवर्सिटी के उन 49 एग्रीकल्चर अंडरग्रेजुएट छात्रों में से एक थे, जिन्हें इजरायल सरकार के 'सीखो और कमाओ' प्रोग्राम के लिए चुना गया था.

बिपिन गाजा पट्टी के करीब, दक्षिणी इजरायल में अलुमिम किबुत्ज (फार्म) में रह रहा था. नेपाल के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, उसके साथ वहां कम से कम 16 अन्य नेपाली छात्र भी थे.

हमास के हमले से कुछ घंटे पहले शुक्रवार, 6 अक्टूबर को बिपिन की अपने चचेरे भाई ईश्वर जोशी से फोन पर बातचीत हुई थी.

"बिपिन ने हमें बताया कि एक बंकर में छिपने के लिए एक नोटिस जारी किया गया था क्योंकि कभी भी हमला हो सकता था. उस समय अलुमिम पर गोलियों और बमों से हमला किया जा रहा था. उस दिन के बाद बिपिन से हमारी कोई भी बातचीत नहीं हो पाई है."

ईश्वर ने कहा कि बिपिन की बहन पुष्पा को नेपाल के कैलाली जिले के रहने वाले एक घायल नेपाली छात्र से एक मैसेज मिला. उस छात्र ने दावा किया कि हमास हमले के दौरान बिपिन को अगवा कर लिया गया था.

नेपाल के विदेश मंत्री एनपी सऊद ने शुक्रवार, 13 अक्टूबर को स्थानीय मीडिया को बताया, "हमले के बाद लापता हुए बिपिन जोशी के लिए तलाशी अभियान जारी है. जैसे ही हमें इस बारे में अतिरिक्त जानकारी मिलेगी हम शेयर करेंगे."

'अब मेरे जीने का क्या मतलब है?'

हां बिपिन के परिवार को यह उम्मीद तो है कि वो सुरक्षित होगा. लेकिन दूसरी तरफ इस हमले में अपने बच्चों को खोने वाले परिवारों के लिए कोई उम्मीद नहीं बची है.

इजरायल में हुए हमले में कम से कम 10 नेपाली छात्र मारे गए हैं. काठमांडू पोस्ट के अनुसार, 2016 के बाद से आतंकवादी हमलों में विदेशी धरती पर मरने वाले नेपालियों की यह सबसे अधिक संख्या है - 2016 में अफगानिस्तान में तालिबान के आत्मघाती हमले में 14 नेपाली नागरिक मारे गए थे.

मरने वाले ये सभी छात्र उसी समूह से हैं जो इजरायली सरकार के 'सीखो और कमाओ' प्रोग्राम के तहत इजरायल में थे. बिपिन की तरह, आशीष चौधरी को भी अलुमिम किबुत्ज को सौंपा गया था.

25 वर्षीय छात्र, आशीष पिछले महीने इजरायल चला गया था. उसके माता-पिता बेंगलुरु में रहते हैं और काम करते हैं. जबकि आशीष का पालन-पोषण उसके 70 वर्षीय दादा, कन्हैयालाल चौधरी ने नेपाल के कैलाली जिले के एक गांव में किया था.

"मैं आशीष के लिए जीता था और वह मेरे लिए जीता था. मैंने उसे बचपन से अकेले ही पाला है. अब जब वह चला गया है, तो मेरे जीने का क्या मतलब है?"
कन्हैयालाल चौधरी

कन्हैयालाल की पत्नी की पहले ही मौत हो चुकी है. आशीष के इजरायल जाने से पहले वह आशीष और अपनी लकवाग्रस्त बेटी के साथ रहते थे.

कन्हैयालाल ने द क्विंट को बताया, "जिस दिन वह जा रहा था, उसने बोर्डिंग से पहले त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट (काठमांडू) से मुझे फोन किया था. वह अपना एक्साइटमेंट नहीं रोक पा रहा था..."

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द नेपाली टाइम्स के अनुसार, पहले तो नेपाली छात्र एक बंकर पर हमास के ग्रेनेड हमले में बच गए. फिर उन्होंने थाईलैंड के 20 वर्कर्स के साथ पास के एक दूसरे बंकर में शरण ली. लेकिन फिर वह बंकर भी हमास के उग्रवादियों के हमले की चपेट में आ गया.

पांच अन्य नेपाली छात्रों के साथ आशीष की मौके पर ही मौत हो गई. हमास के उग्रवादी कथित तौर पर बिपिन सहित थाईलैंड के 7 वर्कर्स को अपने साथ ले गए.

इजरायल में नेपाल के दूतावास के अनुसार, चार अन्य घायल हो गए, और दो के सुरक्षित होने की सूचना है.

'मरने वालों की लिस्ट में उसका नाम देखा'

गणेश नेपाली के परिवार के लिए अक्टूबर दुर्भाग्य का महीना रहा है.

पहले तो 3 अक्टूबर को, पश्चिमी नेपाल के बझांग जिले के चैनपुर में उनके घर में भूकंप के बाद दरारें आ गईं. कुछ दिन बाद उन्हें पता चला कि इजरायल में मारे गए लोगों में उनका बेटा भी शामिल है.

गणेश नेपाली

(फोटो: फेसबुक/गणेश नेपाली)

गणेश ने आखिरी बार अपने परिवार को 6 अक्टूबर को फोन किया था. उनके भाई विकास ने नेपाली समाचार आउटलेट कांतिपुर को बताया:

"पिछले हफ्ते आए भूकंप के कारण हमारे परिवार के घर में दरारें पड़ गई थीं. भूकंप के बाद पहली दो रातों के लिए, हमने गांव के केंद्र के करीब तिरपाल से गुजर-बसर करने लायक संरचना बनाई. लेकिन फिर, हम जोखिमों के बावजूद घर लौट आए क्योंकि हम इस तरह जीना जारी नहीं रख सकते थे. मेरे भाई ने भूकंप के बाद हमारी चिंता के कारण मेरे माता-पिता को फोन किया था. हमने उससे आखिरी बार यही सुना था."

गणेश के भाई ने कहा कि शनिवार शाम को उन्होंने इजरायल पर हमले की खबर देखी. "हमने उसे वीडियो कॉल करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. बाद में शाम को, मैंने मरने वाले नेपाली नागरिकों की लिस्ट में अपने भाई का नाम देखा."

कांतिपुर की रिपोर्ट के अनुसार, एक गरीब दलित परिवार में जन्मा गणेश सहज स्वभाव का एक मेधावी छात्र था. गणेश के पिता पेशे से एक दर्जी हैं और उन्होंने अपने बेटे को शिक्षित करने के लिए लोन लिया था.

परिवार अब अपने प्रियजनों के पार्थिव शरीरों के उन तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं.

एक इजरायली राजनयिक ने द काठमांडू पोस्ट को बताया कि मृत छात्रों के शवों को नेपाल वापस भेजे जाने में कुछ दिन लग सकते हैं.

अखबार के अनुसार, श्रीलंका ने जोखिम भरे क्षेत्रों में रहने वाले नेपालियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के अलावा, मृतकों के शवों को वापस लाने को प्राथमिकता दी है. नेपाल में इजरायली राजदूत हनान गोडर ने द काठमांडू पोस्ट को बताया, "इसमें कुछ और दिन लगेंगे क्योंकि वे (इजरायली अधिकारी) अभी भी शवों की पहचान कर रहे हैं."

उन्होंने कहा, "हमारे पास 900 से अधिक शव हैं जिनकी अभी तक पहचान नहीं हो पाई है."

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