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रूस (Russia) पर पश्चिम देशों के भारी प्रतिबंध (Western countries sanctions) लगाने के बमुश्किल एक महीने बाद, रूबल (Ruble) अमेरिकी डॉलर (Dollar) के मुकाबले वापस ऊपर आ गया है, इससे यह सवाल खड़े होने लगे हैं कि क्या यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद लगाए गए प्रतिबंध काम नहीं कर रहे हैं? यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका व पश्चिमी देशों ने रूस पर सख्त प्रतिबंध इस उम्मीद में लगाए थे कि वे इनके जरिए रूबल को बर्बाद कर देंगे. पर रूस ने उनके प्रयासों केा धता बता अपनी मुद्रा रूबल को संभाल लिया है. युद्ध के शुरुआती समय 23 फरवरी को एक डॉलर 76 रूबल के बराबर था. प्रतिबंधों के लगने के बाद एक मार्च तक 150 रूबल के बराबर एक डॉलर हो गया. आधा मार्च गुजरते गुजरते रूस ने रूबल को फिर से संभालना शुरू कर दिया और वर्तमान में रूबल की कीमत 82 से 85 रूबल प्रति डॉलर पर है.
तेल और गैस की बढ़ती कीमतों का मतलब है कि रूस के एक्सपोर्ट का मूल्य बढ़ गया है. एक इंटरनेशनल वेबसाइट क्वार्टज के अनुसार लंदन में एक शोध फर्म कैपिटल इकोनॉमिक्स के मुख्य अर्थशास्त्री विलियम जैक्सन ने कहा है कि प्रतिबंधों के प्रभाव ने उसी समय रूस की घरेलू मांग और आयात को तेजी से कमजोर कर दिया था.
इससे रूस का व्यापार और चालू खाता अधिशेष नाटकीय तरीके से बढ़ने लगा है, जिससे रूबल की मांग पैदा हो रही है. जब तक ऊर्जा की कीमतें ऊंची रहती हैं और जब तक रूस के तेल और गैस के अधिकांश ग्राहक उससे खरीद के लिए तैयार रहते हैं, तब तक रूबल ऊपर की ओर जाता रहेगा.
200 अर्थशास्त्रियों के साथ मिलकर रूस पर प्रतिबंधों के असर पर शोध कर रहीं अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी की अर्थशास्त्र शिक्षक तान्या बबीना ने कहा है कि
इसका सबूत भी हमें मिलता है क्योंकि रूबल में सबसे बड़ी तेजी तभी दर्ज की गई जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने घोषणा की कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ और ताइवान को रूसी गैस के लिए रूबल में ही भुगतान करना होगा.
यूरोपियन कंट्रीज 40 फीसद गैस का आयात रूस से करती हैं. इस ईंधन के लिए वे रूस पर बहुत ज्यादा डिपेंड करते हैं. पुतिन उनकी यह कमजोरी जानते हैं.
रूस ने जो सबसे बड़ा कदम उठाया वह सोने की तुलना में रूबल की कीमत तय करना है. यहां के प्रमुख बैंक ऑफ रसा ने एक ग्राम सोने की कीमत पांच हजार रूबल तय कर दी है. इसने मार्केट में रूबल को सोने के स्टैंडर्ड लेवल तक लाने में काफी मदद की.
अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्री विभिन्न मीडिया हल्कों में रूस के इस कदम को एक बड़ा दांव और दूरगामी कदम मान रहे हैं. अभी तक गोल्ड की खरीद-बिक्री डॉलर से की जाती है.
रूस ने अपनी मुद्रा को प्रतिबंधों से बचाने के लिए कई और कड़े कदम भी उठाए हैं. वहां के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में 20 फीसदी बढोतरी की है. इससे जो रूसी पहले रूबल बेचने और डॉलर या यूरो खरीदने के लिए ललचा रहे थे वे भी अब उस मुद्रा को बचाने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं. जितने कम रूबल बिक्री के लिए बाहर आते हैं, इस मुद्रा पर उतना ही कम दबाव होता है. इसके अलावा जो लोग रूबल के बदले यूरो या डॉलर की डिमांड करते हैं उन पर भी सख्त पाबंदियां लगाई हैं.
रूस पर पश्चिमी जगत द्वारा लगाए सबसे बड़े और प्रभावशाली प्रतिबंधों में से एक था, उसके विदेशी खातों को फ्रीज करना. रूस के पास दुनिया भर के बैंकों में करीब 640 अरब डॉलर मूल्य के यूरो, डॉलर, येन और अन्य विदेशी मुद्राएं हैं.
लगभग आधी राशि यूएसए और यूरोप में है. इन प्रतिबंधों ने उस धन तक रूस की पहुंच को रोक दिया था. पर इस प्रतिबंध में अमेरिकी ट्रेजरी ने वित्तीय मध्यस्थों को रूस के लिए भुगतान प्रोसेज करने की अनुमति देने की एक महत्वपूर्ण खिड़की खुली छोड़ दी, जिसका नाम था संप्रभु ऋण निकासी (sovereign debt carve-out), इसके अंतर्गत छूट थी कि जब अपने संप्रभु ऋण पर ब्याज भुगतान करने की बात आती है तो रूस इन खातों का उपयोग कर सकता था. शेयर बेचने पर प्रतिबंध
क्रेमलिन ने रूसी दलालों को विदेशियों के स्वामित्व वाली शेयरों को बेचने पर प्रतिबंध लगाने का एक आदेश भी जारी किया. कई विदेशी निवेशक रूसी कॉर्पोरेट शेयर और सरकारी बॉन्ड के मालिक हैं, और वे शायद उन शेयरों को बेचना चाहते थे. उस बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर रूस सरकार स्टॉक और बॉन्ड बाजार दोनों को बढ़ा रही है और देश के अंदर पैसा रख रही है. इस प्रयास से भी रूबल को गिरने से बचाने में काफी मदद मिल रही है. चीन और भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ रूस के व्यापारिक संबंधों में लचीलापन रहा है. उसी का परिणाम यह है कि रूस में विदेशी मुद्रा का एक स्थिर प्रवाह अभी भी बना हुआ है. इसने उन चिंताओं को कम कर दिया है कि रूस दिवालिया हो जाएगा.
क्रेमलिन ने रूसी दलालों को विदेशियों के स्वामित्व वाली शेयरों को बेचने पर प्रतिबंध लगाने का एक आदेश भी जारी किया. कई विदेशी निवेशक रूसी कॉर्पोरेट शेयर और सरकारी बॉन्ड के मालिक हैं, और वे शायद उन शेयरों को बेचना चाहते थे.
उस बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर रूस सरकार स्टॉक और बॉन्ड बाजार दोनों को बढ़ा रही है और देश के अंदर पैसा रख रही है. इस प्रयास से भी रूबल को गिरने से बचाने में काफी मदद मिल रही है.
विशेषज्ञों का मानना है कि रूबल का मूल्य भी प्रतिबंध के प्रभाव को आंकने का सबसे अच्छा बैरोमीटर नहीं है. रूबल में भले ही फिर तेजी आ गई हो पर इसके बावजूद प्रतिबंध रूस की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं. यहां मुद्रास्फीति पहले से ही बढ़ रही है, बैंक टेंशन में हैं और वित्तीय स्थिति भी गड़बड़ हो गई है.
रूबल के आगे अभी भी बड़ी चुनौतियां हैं. जर्मनी, फ्रांस और रूसी गैस के अन्य बड़े यूरोपीय खरीदारों पर रूस रूबल की वैल्यू के आधार पर भुगतान करने के लिए दबाव बना रहा है. यदि वे आगे रूबल की वैल्यू में पेमेंट से मना करते हैं और अपनी मुद्रा में ही पेमेंट करते हैं तो उनका यह कदम रूबल पर काफी असर डालेगा.
यदि व्लादिमीर पुतिन उन्हें व्यापार से काटने की अपनी धमकी को असल में लागू करते हैं, तो रूस को होने वाले भुगतान में अचानक कमी आएगी और यह रुकावट रूबल को बुरी तरह प्रभावित करेगी.
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