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करीब महीने भर से ज्यादा का सफर, चैंपियनशिप की दावेदारी, कुछ शानदार जीत, कभी हार के मुंह से जीत निकालना और फिर सबसे बड़े टेस्ट में हार. भारत का वर्ल्ड कप 2019 में जैसा आगाज हुआ था, अंजाम उसके बिल्कुल उलट रहा.
कुछ दिन पहले तक जो टीम वर्ल्ड कप जीतने की सबसे बड़ी दावेदार थी, उसे टूर्नामेंट की एक ऐसी टीम से हार का सामना करना पड़ा, जिसे कई जीत के बाद भी लगातार ‘अंडर डॉग’ कहा जाता रहा.
बहरहाल अब वो टीम लगातार दूसरे वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंची और जो टीम घर वापस जा रही है, वो है भारतीय टीम, जिसे लगातार दूसरी बार वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल से बाहर जाना पड़ा.
इस पूरे टूर्नामेंट में भारतीय टीम में कुछ कमियां भी दिखीं, लेकिन टीम की जीत की आड़ में वो छुपती चली गई. आखिरकार टीम को उसका खामियाजा भुगतना पड़ा.
ऐसे ही कुछ सेमीफाइनल में बने टीम की हार का कारण
अगर भारतीय पारी की शुरुआत को देखा जाए, तो कोई भी यही कहेगा कि शानदार गेंदबाजी के आगे बल्लेबाज बेबस नजर आए. ये सही भी है. इसके बावजूद कुछ खिलाड़ियों ने बेहद खराब शॉट खेले. खुद कप्तान कोहली ने भी ये बात मानी.
रोहित और कोहली दो बेहद शानदार स्विंग गेंदों पर आउट हुए, लेकिन केएल राहुल जिस तरह आउट हुए, वो सिर्फ खराब शॉट सलेक्शन का ही नतीजा था. लगातार 2 ओवरों में 2 सबसे बड़े विकेट गंवाने के बाद उम्मीद थी कि केएल राहुल टीम को संभालेंगे.
लेकिन सिर्फ राहुल ही दोषी नहीं हैं. दिनेश कार्तिक ने भी खुद से दूर जाती गेंद पर बिना ज्यादा मूवमेंट के स्लैश करने की कोशिश की और जिमी नीशम ने प्वाइंट पर टूर्नामेंट के सबसे बेहतरीन कैच में से एक लपक लिया.
इसी तरह सेट हो चुके पांड्या ने भी सैंटनर की गेंद पर वही गलती दोहराई और टीम को नुकसान पहुंचाया.
जिस एक परेशानी से भारतीय टीम पिछले साल भर से और पूरे वर्ल्ड कप में जूझती रही, आखिर वही घातक साबित हुई. टीम के टॉप ऑर्डर ने पूरे वर्ल्ड कप में टीम के हिस्से के ज्यादातर रन बनाए. जब कभी भी मिडिल ऑर्डर को प्रदर्शन करने के लिए मौका मिला, वो नाकाम ही रहा.
इस मैच में भी वही कहानी दोहराई गई और टीम को खामियाजा भुगतना पड़ा. टॉप 3 के सिर्फ 5 रन पर आउट होने के बाद जरूरत थी कि बीच के बल्लेबाज जिम्मेदारी उठाकर टीम को जीत तक ले जाएं, मगर ये हो न सका.
वहीं अंबाती रायडू जैसे अनुभवी बल्लेबाज पर तरजीह पाने वाले ऋषभ पंत ने दिखाया कि उनमें क्षमता है, लेकिन अनुभव की कमी घातक साबित हुई और क्रीज पर जमने के बाद वो भी गलत शॉट खेलकर आउट हुए.
अगर टीम इंडिया के थिंक टैंक की सबसे बड़ी गलती कुछ रही तो वो यही रही. आमतौर पर पांचवे नंबर पर आने वाले इस बड़े मैच में सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए उतरे. पूरे टूर्नामेंट में ज्यादातर मौकों पर टीम के टॉप ऑर्डर ने रन बनाए और ऐसे में बाकी खिलाड़ियों का बैटिंग ऑर्डर सही से तय नहीं हो पाया.
कुछ मैचों में धोनी पांचवे नंबर पर उतरे तो कुछ मैच में छठवें नंबर पर. इन सभी नंबरों पर धोनी ने जब भी बैटिंग की, उसकी ज्यादातर मौकों पर आलोचना की गई.
कार्तिक या पांड्या के बजाए अगर धोनी को पांचवे या छठे नंबर पर उतारा जाता, तो वो पंत के साथ मिलकर टीम को आगे बढ़ाते. साथ ही पंत को ऐसे गैर जरूरी शॉट मारने से रोक भी सकते. पंत को उस वक्त धोनी का अनुभव मिलता तो टीम को थोड़ा स्थायित्व मिलता.
ये एक कमी भी भारतीय बल्लेबाजी में ज्यादातर मौकों पर इस वर्ल्ड कप में दिखी और एक बार फिर ये कमी हमें मिडिल ऑर्डर में दिखी. अफगानिस्तान, वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के खिलाफ ये परेशानी सामने आई थी.
वहीं साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड के खिलाफ हुए मैचों में भी यही कमी दिखी, जहां टीम को शुरु में ही झटके लग गए थे और फिर बल्लेबाजों ने अति रक्षात्मक रुख अपना लिया था.
स्पिनरों के खिलाफ टीम इंडिया के बल्लेबाज इस वर्ल्ड कप में जरूरत से ज्यादा रक्षात्मक दिखे. अफगानिस्तान का मैच अगर याद करें तो उसमें भारतीय बल्लेबाज मुजीब उर रहमान, राशिद खान, मोहम्मद नबी और यहां तक कि रहमत शाह जैसे पार्ट टाइम स्पिनर ने भी टीम के बल्लेबाजों को परेशान किया और भारतीय खिलाड़ी रन चुराने में नाकाम दिखे.
इसके बावजूद टीम इंडिया अपनी इस कमी को नहीं सुधार पाई और आखिरी में तीसरी बार वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना अपनी आंखों के सामने टूटता हुआ देखा.
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