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China चांद के साउथ पोल पर इसी हफ्ते भेजेगा रोबोटिक स्पेसक्राफ्ट, NASA क्यों है परेशान?

चीन चांद पर कुल 3 मिशन लांच करने वाला है जिसमें Chang'e-6 इसी हफ्ते चांद पर जाने को तैयार है.

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<div class="paragraphs"><p>China Moon Mission</p></div>
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China Moon Mission

Photo: क्विंट हिन्दी 

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China: चीन एक बार फिर चांद पर कदम रखने के लिए तैयार है. चीन चांद पर अपना रोबोटिक स्पेसक्राफ्ट भेजने जा रहा है. चीन के इस नये मिशन का नाम Chang'e-6 है. इसी मिशन की कड़ी में चीन कुल 3 मिशन चांद पर भेजने वाला है. Chang'e-7, 2026 में और Chang'e-8, 2028 चांद के साउथ पोल पर जाने वाले हैं.

इस पूरे मिशन का उद्देश्य 2030 तक चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजना है. जो तभी मुमकिन है जब वहां पर किसी भी तरह के ईंधन के साधन उपलब्ध हों. अगर चांद की सतह पर पानी मिलता है तो वैज्ञानिक हाइड्रोजन ऑक्सीजन को अलग करके ईंधन बना सकते हैं.

चलिए आपको इस मिशन के बारे में सबकुछ बताते हैं:

क्या है चीन का मिशन 

चीन का नया मिशन, Chang'e-6, 3 मई 2024 को लॉन्च होने जा रहा है. चीन चांद पर कुल 3 मिशन लांच करने वाला है जिसमें Chang'e-6 इसी हफ्ते चांद पर जाने को तैयार है. वहीं Chang'e-7, साल 2026 और Chang'e-8 साल 2028 में चांद पर जायेंगे.

चीन का Chang'e-6 मिशन 53 दिनों का है. चीन 2030 तक अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने की तैयारी कर रहा है. उसके ये तीनों मिशन चांद के साउथ पोल पर जाकर वहां के भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन करेंगे और यदि चांद की सतह पर पानी मिलता है तो ये वहां अस्थायी कॉलोनी पोस्ट बनाने में मददगार साबित होगा. चीन और रुस मिलकर इस दिशा में कदम उठायेंगे.

चीन का Chang'e-6 मिशन चांद से 2 किलो सैंपल इकट्ठे करके उसे वापस लाएगा.

चांद की फार साइड क्या है?

चांद की सतह का एक हिस्सा धरती से नजर आता है जबकि एक हिस्सा पीछे की तरफ होता है जो नजर नहीं आता है. चांद का यही हिस्सा साउथ पोल है.

चुंकि यह हिस्सा पृथ्वी से नजर नहीं आता है इसलिए रेडियो सिग्नल्स भेजने में स्पेसक्राफ्ट को खासा दिक्कत आती है. चांद के साउथ पोल पर कई ज्वालामुखी भी हैं और यहां की जमीन काफी ज्यादा ऊबड़-खाबड़ है. इसलिए इस क्षेत्र में लैंड करना काफी मुश्किल है.

नासा की वेबसाइट से पता चलता है कि जब थोड़ी भी सूर्य की रौशनी चांद के साउथ पोल पर पड़ती है तो उसका तापमान 130°F (54°C) पहुंच जाता है. बाकी समय में जब ये अंधेरे से घिरा रहता है तो इसका तापमान काफी कम होता है. चांद की कुछ ऐसी भी जगहें हैं जहां कई बिलियन साल से सूर्य की रौशनी नहीं पड़ी है. इसका तापमान -334°F (-203°C) तक होता है.

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मून की फार साइड में जमे हुए बर्फ होने के संकेत भी मिले हैं. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि सबसे पहले 2009 में भारत के चंद्रयान-1 मिशन में इसके साक्ष्य मिले की चंद्रमा की सतह के अंदरूनी हिस्से में बर्फ है. कई देश लगातार इस कोशिश में हैं कि इस फ्रोजन आइस को प्राप्त कर सकें जिससे चांद पर कॉलोनी बनाने की राह खुल सकती है.

नासा है परेशान?

रॉयटर्स की रिपोर्ट से पता चलता है कि नासा परेशान है कि कहीं चीन चांद के पानी तक न पहुंच जाए. नासा के एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन बार-बार ये चेतावनी दे रहे हैं कि अगर चीन को पानी मिलता है तो वो उसे अपने अधिकार क्षेत्र में रखने की कोशिश करेगा. जबकि चीन का कहना है कि वो साझा भविष्य के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है.

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