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बिहार के अस्पताल ‘कोमा’ में,कोरोना मरीज ट्रॉमा में:ग्राउंड रिपोर्ट

‘डेथ बेड’ बन चुके अस्पतालों की वो कहानी बताते हैं जिसे देखने से बचने के लिए शायद सरकारों ने नींद की गोली खा ली है.

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वीडियो एडिटर- पूर्णेंदु प्रीतम/आशुतोष भारद्वाज

कैमरा- अभिषेक सिंह

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"मनोज, हमारा प्राण निकल जाएगा. ऑक्सीजन बदलता ही नहीं है. कोई नहीं आ रहा है. ऑक्सीजन नहीं बदल रहा है, जान चली जाएगी." मौत से पहले ऑक्सीजन के लिए परिवार वालों को फोन पर बार-बार कहना कि सांस रुक रही है, जान चली जाएगी. ये बात बिहार के अस्पताल में दम तोड़ता एक शख्स अपने परिवार को फोन पर कह रहा है. ये आवाज उस शख्स की ही नहीं बल्कि बिहार के दम तोड़ते, हांफते, कोमा में पड़े हेल्थ सिस्टम की भी है, जहां कोरोना के कारण एक के बाद एक लोगों की जान जा रही है.

बिहार में 3 अगस्त 2020 तक 62 हजार से ज्यादा कोरोना के मामले सामने आ चुके हैं. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 336 लोगों की मौत हो चुकी है. बिहार में कोरोना सारे रिकॉर्ड तोड़ रहा है. एक जुलाई को 10 हजार केस जोकि एक महीने में 500 फीसदी बढ़कर 62,000 हो गए. एक महीने में मरने वालों की संख्या 350 फीसदी बढ़ी है.

हमने अपने सीरीज जनाब ऐसे कैसे के पिछले एपिसोड में आपको बिहार में कोरोना की टेस्टिंग की रेंगती हुई स्पीड के बारे में बताया था, लेकिन इस बार हालात और बदतर हो गए हैं. टेस्टिंग हो भी जाए तो इलाज कहां और कैसे होगा? इलाज के लिए अस्पताल चले भी गए तो बचकर वापस आ जाएं, ये पक्का नहीं.

आपको डेथ बेड बन चुके अस्पतालों की वो कहानी बताते हैं जिसे देखने से बचने के लिए शायद सरकारों ने नींद की गोली खा ली है.

बिहार के मधुबनी के मधेपुर के रहने वाले ओम प्रकाश कोरोना पॉजिटिव पाए जाते हैं, उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के कोरोना वार्ड में 4 घंटे के इंतजार के बाद एडमिट किया जाता है. लेकिन मौत का अड्डा बन चुके अस्पताल में अभी बहुत कुछ होना बाकी था.

अस्पताल में वो ऑक्सीजन के लिए तड़पते रहे, बार-बार अपने बेटे और रिश्तेदारों को फोन कर कहते रहे कि कोई नहीं है देखने वाला, ऑक्सीजन नहीं है, मर जाउंगा.

“अस्पताल में नहीं मिला वेंटिलटर”

बिहार में अस्पताल किस हद तक फेल हो चुके हैं इसे समझने के लिए बेतिया चलिए. बेतिया में आम इंसान तो दूर बीजेपी नेता तक अस्पताल की लापरवाही से बच नहीं सके. बीजेपी के मंडल अध्यक्ष कन्हैया गुप्ता की मौत कोरोना से हो गई. कन्हैया गुप्ता को वेंटिलेटर के सपोर्ट की जरूरत थी, लेकिन बेतिया के सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटर चलाने वाला कोई नहीं था. परिवार का आरोप ये भी है कि बेतिया मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल ने इलाज के लिए ₹50,000 की मांग भी की थी.

मौत से पहले फेसबुक लाइव

तीसरा मामला भी बेतिया का ही है. बेतिया में एक स्कूल में प्रिंसिपल रहे नरेंद्र नाथ बरनवाल ने मौत से पहले सिस्टम के गुनाहों का लाइव कवरेज भी दिखाया था. खुद देखिए कैसे मौत से पहले ऑक्सीजन की कमी को लेकर वो बेबस थे.

बरनवाल ने साफ-साफ कहा था कि इलाज नहीं हो रहा है. आइसोलेशन वार्ड के अंदर कुत्ते घूम रहे हैं. अब बरनवाल के दो छोटे बच्चे हैं, परिवार टूट गया है. पत्नी बार-बार रोते हुए कह रही हैं, सब खत्म हो गया मेरा.

बिहार में कोरोना ही नहीं, उसके अलावा दूसरी बीमारियों का इलाज अस्पताल में कराना, मौत को आ बैल मुझे मार कहने जैसा है.

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दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल या मॉर्चरी?

दरभंगा के लोगों से पूछेंगे तो वो दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल को मॉर्चरी कहने लगे हैं. क्योंकि एक नहीं ,लापरवाही के कई मामले सामने आए हैं. दरभंगा के रहने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर उमेश चंद्रा ने DMCH में तड़प -तड़पकर दम तोड़ दिया. रातभर अस्पताल में एक स्ट्रेचर पर तड़पते रहे लेकिन कोई डॉक्टर नहीं आया. प्रोफेसर उमेश चंद्रा कोरोना पॉजिटिव भी नहीं थे. अब अस्पताल ने जांच कमेटी बैठाई है जिसमें उन्हीं के डॉक्टर जांच करेंगे. मतलब गवाह वही, गुनहगार वही और अदालत भी उसकी. तो इंसाफ कैसे मिलेगा.

एक और मामला डीएमसीएच का ही है. आरजेडी नेता और जिला परिषद सदस्य जमाल अतहर रूमी की मौत का. कोरोना का शक हुआ तो आइसोलेशन वार्ड में एडमिट कर लिया गया. उनकी मौत को लेकर इलाज में लापरवाही का आरोप लगा. हाल ये हुआ कि उनके परिजन ने जब लापरवाही का विरोध किया तो वहां के स्टाफ से झड़प हो गई.

बिना टेस्ट ही रिपोर्ट पॉजिटिव

जमाल अतहर रूमी के परिवार के 18 लोगों का कोरोना के टेस्ट के लिए रेजिस्ट्रेशन हुआ था, सिर्फ रेजिस्ट्रेशन. टेस्ट नहीं, लेकिन 18 में से 5 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव भी आ गई.

जिस जिले से केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे आते हों वहां का हाल भी कम भयावह नहीं है. ट्रे में नवजात बच्चा, कंधे पर दादा ऑक्सीजन सिलेंडर उठाए अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं. सोशल मीडिया पर मुश्ताक बंटी नाम के एक फोटो जर्नलिस्ट की खींची वायरल तस्वीर ने बक्सर के सदर अस्पताल की कहानी बयान कर दी.

दरअसल बच्चे का जन्म एक प्राइवेट अस्पताल में हुआ था, जिसके बाद बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. परिवार वालों ने सदर अस्पताल का रुख किया लेकिन सदर अस्पताल में कागजी कार्रवाई होते-होते बच्चे की मौत हो गई.

ये सब तो कुछ मामले हैं जो हमारे सामने आ सके.नहीं तो सैकड़ों मामले सरकारी नाकामी की वजह से फाइलों में दम तोड़ रही हैं. बिहार के एक वरिष्ठ अफसर उमेश रजक के 24 घंटे तक अस्पताल के बाहर एडमिशन के इंतजार में पड़े रहने का वीडियो आप देख ही चुके हैं. जब गृह विभाग के अंडर सेक्रेट्री  की मौत बिन इलाज हो जाए तो आम आदमी का क्या ठौर ठिकाना. बिहार का हेल्थ सिस्टम लोगों को मार रहा है. लोग कोरोना के हमले के साथ ही सरकारी धोखे का भी शिकार हो रहे हैं.

बिहार के हेल्थ मिनिस्टर मंगल पांडे बीजेपी कोटा से आते हैं, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री भी बिहार से आते हैं, केंद्र में बैठी बीजेपी बिहार में नीतीश कुमार के साथ सत्ता शेयर कर रही है, मतलब बहाना बनाने का कोई रास्ता नहीं. फिर भी बिहार बीमार होता जा रहा है. राजनीति भले ही नाइट्रोजन गैस वाली स्पीड से हो रही है, पर चल रही हो लेकिन जनता को नहीं मिल रहा ऑक्सीजन.

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