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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
जेएनयू के स्टूडेंट बार-बार विरोध क्यों करते हैं, टैक्स पेयर्स के पैसे पर पढ़ते हैं और हो हल्ला मचाते हैं, थोड़ी सी फीस क्या बढ़ा दी गई मानो इनकी डफली ही छीन ली गई हो. कंडोम, शराब सब खरीद सकते हैं, लेकिन हॉस्टल की फीस मांग लो तो हंगामा शुरू. वहां बॉर्डर पर हमारे जवान अपनी जान देने को तैयार हैं, लेकिन इनको तो आंदोलन, विरोध, धरना, बस यही करना है. यही तर्क देते हैं न कुछ लोग?
लेकिन इन तर्क-वीरों से जरा पूछ लीजिये कि कल तक तो इन छात्रों के लिए सरकार के पास पैसे थे फिर अब क्या हो गया? जिस यूनिवर्सिटी के छात्र ने देश को नोबेल पुरस्कार दिलाया हो, वित्त मंत्री जहां से पढ़ी हों, जिसने देश को विदेश मंत्री दिया हो, उस यूनिवर्सिटि की हर बात कुछ लोगों को चुभती क्यों हैं? अब अगर हर बात पर चुभन होगी तो हम तो पूछेंगे ही जनाब ऐसे कैसे.
जेएनयू में हॉस्टल फीस को लेकर बवाल मचा है. पुलिस हांग-कांग की तरह उग्र है, छात्रों पर डंडे बरसा रही है, पानी की बौछार कर रही है. मानो छात्र नहीं गुंडे हों. लेकिन सवाल ये है कि अगर ये छात्र प्रदर्शन कर रहें हैं, सड़कों पर उतर रहे हैं, पुलिस से झड़प कर रहे हैं, तो ये नौबत क्यों आई?
कई लोग जो टीवी स्टूडियो में बैठकर सरकार की वाहवाही करते हैं, वो कह रहे हैं कि बस थोड़ी सी फीस बढ़ी फिर इतना हंगामा क्यों? ये हंगामा महज राजनीति है या सच में छात्रों के हक की लड़ाई?
एक और सवाल-जेएनयू में पढ़ने वाले छात्र कई-कई साल तक क्यों पढ़ते हैं? क्या वो जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं?
चलिए इस सवाल के जवाब के लिए आसान भाषा में देश में एजुकेशन सिस्टम को समझते हैं. एक औसत समाज में जब बच्चा ढाई से तीन साल का होता है तब वो स्कूल पहुंचता है. 14 साल की उम्र में 10वीं पास. 16 साल में 12वीं, 19-20 साल में ग्रेजुएट और 22-23 साल में मास्टर. फिर एमफिल किया तो 25 साल, उसके बाद पीएचडी किया तो 30 से 31 साल. ये सब तब,जब आप आसानी से बिना किसी रुकावट के पढ़ाई कर रहे हों.
और स्टूडेंट सवाल पूछते हैं तो क्या बुरा करते हैं? क्या हममें से कोई ये चाहेगा देश में कोई किसी से सवाल ही न पूछे? सवाल पूछना जरूरी है. जब सबको एक बात सही लग रही हो तो भी हो सकता है कि वो बात गलत हो. गैलिलियो ने कहा धरती सूर्य के गिर्द घूमती है. लोगों ने उसे सजा दी. बाद में पता चला वही सही है.
जनाब JNU से नफरत करते-करते ये भूल गए कि गरीब परिवार प्राइवेट कॉलेज में चढ़ावा नहीं चढ़ा सकता, इसलिए उसे सरकारी संस्थाओं के प्रसाद पर निर्भर होना पड़ता है. अब यहां भी दर्शन फ्री लेकिन मंदिर के बाहर चप्पल रखने के लिए पैसे देने होंगे वाला लॉजिक लगाइएगा तो शिक्षा का मंदिर नहीं व्यापार का अड्डा बन जाएगा. फिर कहीं एक दिन ऐसा ना हो जाए कि आप खुद ही पूछेंगे जनाब ऐसे कैस?
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